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UP Election 2022 करहल में सियासी तूफान: भाजपा के एसपी सिंह बघेल का सपा के दुर्ग में प्रवेश, अखिलेश यादव की चौतरफा घेराबंदी, बीबीसी की रिपोर्ट में बड़ा संकेत

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Mainpuri, Uttar Pradesh, India. उत्तर प्रदेश के मैनपुरी जिले की करहल विधानसभा सीट वीआईपी सीट हो गई है। यहां से समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव चुनाव लड़ रहे हैं। भारतीय जनता पार्टी ने सपा का यह मजबूत दुर्ग ध्वस्त करने के लिए आगरा के सांसद और केन्द्रीय मंत्री प्रोफेसर एसपी सिंह बघेल को चुनावी पिच पर उतारा है। एसपी सिंह बघेल ने आते ही ऐसी बातें कह दी हैं कि समाजवादी पार्टी के होश उड़ गए हैं। अखिलेश यादव की घेराबंदी कर दी है। योजना है कि अखिलेश को करहल में आकर वोट मांगने पड़ें। एसपी सिंह बघेल समाजवादी पार्टी की नस-नस से वाकिफ हैं। मुलायम सिंह यादव के बेहद करीबी रहे एसपी सिंह बघेल के कारण हर किसी की निगाह करहल सीट पर जमी हुई हैं। सपा के जीत के समीकरण ध्वस्त कर दिए हैं। अखिलेश को करहल में बुरी तरह घेर लिया है। इसी कारण जो लोग अखिलेश यादव की एकतरफा जीत की बात कर रहे थे, वे अब कुछ और ही कहने लगे हैं।

भाजपा के राष्ट्रीय महामंत्री अरुण सिंह ने आगरा में इस संवाददाता से स्पष्ट तौर पर कहा कि एसपी सिंह बघेल चुनाव जीतेंगे क्योंकि वे गरीबों के दुख-दर्द से वाकिफ हैं। पढ़े-लिखे हैं। उत्तर प्रदेश के उपमुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने ट्वीट करके घोषणा की थी- जीतेंगे एसपी सिंह बघेल, हारेंगे श्री अखिलेश यादव। जीतेगी बीजेपी। समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव प्रो. रामगोपाल यादव ने कहा था- अखिलेश यादव 1 लाख 60 हजार वोटों से जीतेंगे। इन नेताओं के दावों की भी परख होनी है।

2017 में करहल में कुल 49.57 प्रतिशत वोट पड़े। 2017 में समाजवादी पार्टी से सोबरन सिंह यादव ने भारतीय जनता पार्टी के रमा शाक्य को 38405 वोटों के मार्जिन से हराया था। मैनपुरी लोकसभा सीट से सांसद मुलायम सिंह यादव हैं। उन्होंने भारतीय जनता पार्टी के प्रेम सिंह शाक्य को 94,389 मतों से हराया था। करहल सीट पर 20 फरवरी, 2022 को मतदान है। 10 मार्च, 2022 को मतगणना होगा।

टीवी चैनल आर भारत से क्या कहा

शेर की बलि कभी नहीं दी जाती है। कमजोर की बलि दी जाती है। मैं मिलिट्री साइंस का प्रोफेसर हूँ और युद्ध में सरप्रपाइज का बड़ा महत्व होता है। सरप्राइज से अच्छे-अच्चे युद्ध जीते गए हैं। डिफेंस स्टडी में मेरी रिसर्च है। अगर मैं बकरा था तो बहन जी ने डिम्पल के सामने क्यों लड़ाया, अखिलेश के सामने क्यों लड़ाया, फिर भारतीय जनता पार्टी ने अक्षय यादव के सामने क्यों लड़ाया। बकरे नहीं लड़ाए जाते हैं। यह कोई नूरा-कुश्ती नहीं है भाजपा और समाजवादी पार्टी की कि कोई कमजोर प्रत्याशी दे दें। समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष ने 403 सीटों में से एक सीट चुनकर अपने बी फार्म पर दस्तखत करके पिक एंड चूज किया है तो भारतीय जनता पार्टी के शीर्ष नेतृत्व ने अपने कैम्प से उसके समकक्ष उतारा है तो उसके लिए मैं भारतीय जनता पार्टी का बहुत आभार प्रकट करना चाहूंगा।

मैं डिम्पल यादव की हार का कारण बना। मैं छह साल की राज्यसभा में था। तीन साल की राज्यसभा छोड़कर भाजपा ने अक्षय यादव के खिलाफ लड़ाया। बूथ कैप्चरिंग हुई जिसके कारण मैं चुनाव हारा। आप ही लोग कह रहे हैं कि यह दुर्ग है, किला है, अभेद्य है, इसे ढहाने के लिए भेजा है। मैं करहल की महान जनता के माध्यम से प्रधानमंत्री और राज्य सरकार की लोक कल्याणकारी योजनाएं, मुख्यमंत्री का जो लॉ एंड ऑर्डर का स्वर्ण युग है उसे लेकर इस किले को फतेह करने का काम करेंगे। मैं पार्टी का बहुत धन्वाद देना चाहूँगा।

जो  लोग डेमोक्रेसी में किला, गढ़, खानदानी सीट कहते हैं वो लोग लोकतंत्र और गरीब जनता का अपमान करते हैं। रानी के पेट से पहले राजा पैदा होते थे, नसबंदी तो बाबा साहब ने संविधान लिखकर कर दी थी। इसलिए अब ईवीएम मशीन से सेवक पैदा होता है। करहल की जनता से कहना चाहूँगा कि अपनी जैसी शकल, अकल, कपड़े, लत्ते, दुख-दर्द वाले आम आदमी को चुनें। जिस प्रत्याशी से मिल न सकें, शादी ब्याह, भागवत कथा में पांत न खिला सकें, फोन पर बात न कर सकें, उसे वोट नहीं देना चाहिए।

मैनपुरी जिले के पुराने सर्वे और आज के बाद के सर्वे देखेंगे तो आपको जमीन-आसमान का फर्क महसूस होगा। यहां पर जमीनों पर कब्जे होते थे, भैंसियों की चोरी होती थी, लड़कियों के साथ छेड़छाड़ होती थी, अपहरण होते थे, सूची के आधार पर नौकरियां लगा करती थीं। दबे-कुचले, पिछड़े, पीड़ित, शोषित वंचित सभी लोगों को लेकर इस चुनाव को जीतने का काम करेंगे।

मैनपुरी भारतीय जनता पार्टी का जिला है लेकिन बूथ कैप्चरिंग द्वारा चुनाव जीते गए हैं। बूथ कैप्चर न करें तो इनकी एक भी सीट नहीं निकलेगी। मैनपुरी सीट से भारतीय जनता पार्टी के अशोक जी चुनाव जीते हैं, घिरोर विधानसभा से जयवीर सिंह जीते हैं जिन्होंने समाजवादी पार्टी को हराया। इसी जिले की भोगांव सीट से रामनरेश अग्निहोत्री जी एमएलए हैं। इसी जिले की किशनी सीट कभी न कभी हम लोगों ने जीती है। 2002 में करहल से भारतीय जनता पार्टी चुनाव जीती थी। वन्स अपॉन ए टाइम भारतीय जनता पार्टी एक बार चुनाव जीती है। 1998 में बलराम सिंह यादव समाजवादी पार्टी से एक बार केवल 8 हजार वोटों से चुनाव जीते थे। 1998 में बलराम सिंह यादव और मुलायम सिंह यादव दो बड़ी ताकते थीं, फिर भी 8000 वोट से चुनाव जीते थे। मैं भी उस समय जलेसर से सांसद का चुनाव जीता था। उसके बाद दूसरा युग शुरू हुआ।

UP Election 2022 करहल में एसपी सिंह बघेल का मुकाबला अखिलेश यादव से, भाजपा के राष्ट्रीय महामंत्री अरुण सिंह का आया बड़ा बयान, देखें वीडियो

बीबीसी हिन्दी न्यूज की रिपोर्ट इस प्रकार है-

करहल से पर्चा दाख़िल करने के बाद एसपी सिंह बघेल ने ट्वीट किया, “लोकतंत्र में जो अपने क्षेत्र को पुश्तैनी कहता है वो लोकतंत्र का अपमान करता है.” करहल मैनपुरी लोकसभा सीट में आती है जहाँ से मुलायम सिंह मौजूदा सांसद हैं. करहल से ही मुलायम सिंह ने अपनी स्कूली शिक्षा पूरी की थी और वहां बतौर शिक्षक नौकरी की थी. करहल से अपनी उम्मीदवारी के बारे में बीबीसी से एसपी सिंह बघेल ने कहा, “मुझे चुनौती देने की पूरी उम्मीद है. कल से तूफ़ान मच गया है यहाँ पर. करहल विधानसभा रोचक स्थिति में है. जनता का मनोबल बढ़ गया है.”

वे कहते हैं, “जनता के दिमाग़ में बात आ गई है कि भाजपा ने जिस प्रत्याशी को उतारा है वो सैफ़ई परिवार के सामने न झुका है न झुकेगा. जबसे छोड़ आए हैं तबसे तीन चुनाव लड़ चुके हैं. लोकसभा से आगरा में एमपी हूँ, केंद्रीय मंत्री हूँ. उसके पहले उत्तर प्रदेश में भाजपा से कैबिनेट मंत्री रहा हूँ और उसके पहले राज्य सभा सांसद रहा हूँ.” अपनी दावेदारी को मज़बूत क़रार देते हुए वे कहते हैं, यहाँ की जनता यही चाहती है कि जो झुके नहीं, दबे नहीं, डरे नहीं, जो सामना करे उनकी गुंडागर्दी का उनके जातीकरण का, तो उसको वो जिताना चाहते हैं.”

एसपी सिंह बघेल का राजनीतिक सफ़र

एसपी सिंह उत्तर प्रदेश के औरैया ज़िले के भाटपुरा गांव में 1960 में पैदा हुए. वो मिलिट्री साइंसेज़ में एमएससी हैं, इतिहास में एमए और पीएचडी भी हैं. पेशे से बघेल आगरा के आगरा कॉलेज में सैन्य शास्त्र के एसोसिएट प्रोफ़ेसर हैं.

एसपी सिंह बघेल के राजनीतिक करियर को काफ़ी क़रीब से देखने वाले आगरा के वरिष्ठ पत्रकार विनोद भारद्वाज कहते हैं, “यह सब इंस्पेक्टर थे पुलिस में. जब 1989 में मुलायम सिंह यादव पहली बार मुख्यमंत्री बने तो एसपी सिंह बघेल उनके सुरक्षाकर्मी बने. बाद में एसपी सिंह बघेल को मुलायम सिंह यूथ ब्रिगेड का प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया.”

विनोद भारद्वाज के अनुसार मुलायम सिंह ने अपने शासनकाल में उन्हें आगरा कॉलेज में सैन्य विज्ञान का प्रोफ़ेसर बनवा दिया था और फिर मुलायम सिंह ने उन्हें चुनाव लड़ाया.

1998, 1999 और 2004 में बघेल जलेसर सीट से समाजवादी पार्टी से लोकसभा सांसद रहे. 2010 में वो सपा छोड़ बसपा में शामिल हो गए और मायावती ने उन्हें राज्य सभा का सांसद बनवाया.

बसपा के बाद उन्होंने भाजपा का दामन थामा और 2015 में वे भाजपा के ओबीसी मोर्चे के अध्यक्ष बन गए. 2017 में फ़िरोज़ाबाद की टूंडला आरक्षित सीट से विधायक चुने गए और योगी सरकार में कैबिनेट मंत्री बने.

2019 में भाजपा ने उन्हें आगरा की आरक्षित सीट से चुनाव लड़वाया और वे चौथी बार सांसद बने. 2021 के केंद्रीय मंत्रिमंडल विस्तार में उन्हें केंद्रीय विधि और न्याय राज्य मंत्री बनाया गया.

बीबीसी से एसपी सिंह बघेल ने मुलायम सिंह से अपने रिश्तों के बारे में कहा, “मेरी परवरिश ऐसी है कि हम अपने बुज़ुर्गों का सम्मान करें. आपने फ़ोटो देखा होगा कि स्मृति ईरानी जो हमारी कैबिनेट मंत्री हैं, उन्होंने मुलायम सिंह जी के पैर छुए. वो एक अलग बात है. मुलायम सिंह जी से किसी प्रकार का बैर नहीं है.”

इमेज स्रोत,FB @S.P.SINGH BAGHEL

यादव परिवार के ख़िलाफ़ एसपी सिंह बघेल का चुनावी ट्रैक रिकॉर्ड

एसपी सिंह बघेल अब तक तीन बार यादव परिवार से मैदान में भिड़ चुके हैं. उनका सबसे पहला मुक़ाबला 2009 में अखिलेश यादव से फ़िरोज़ाबाद लोक सभा सीट पर हुआ और वो बसपा के प्रत्याशी बन कर मैदान में उतरे. अखिलेश यादव ने उन्हें 67,000 वोटों से हरा दिया.2009 में अखिलेश कन्नौज और फ़िरोज़ाबाद दोनों सीटों से चुनाव जीते थे तो उन्होंने फ़िरोज़ाबाद छोड़ दी. 2009 के लोकसभा उपचुनाव में डिंपल यादव को मैदान में उतारा गया और उनका मुक़ाबला कांग्रेस के राज बब्बर और बसपा के एसपी सिंह बघेल से हुआ.

डिंपल यादव राज बब्बर से चुनाव हार गईं और एसपी सिंह बघेल तीसरे नंबर पर रहे. तीसरे नंबर पर रहने के बाद भी डिंपल यादव से सिर्फ़ 13000 कम वोट मिले. 2014 के लोक सभा चुनाव में वो तीसरी बार फ़िरोज़ाबाद से चुनाव लड़े और पहली बार भाजपा के उम्मीदवार बने. इस बार उनका मुक़ाबला समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ नेता रामगोपाल यादव के बेटे अक्षय यादव से हुआ. रामगोपाल, अखिलेश यादव के चाचा हैं. 2014 की मोदी लहर के बावजूद अक्षय यादव ने 1,14,000 वोटों से एसपी सिंह बघेल को हराया. तो 1998 से शुरू हुए अपने राजनीतिक करियर में यादव परिवार के ख़िलाफ़ उनका चुनावी ट्रैक रिकॉर्ड हार का रहा है, लेकिन इसके बावजूद भाजपा ने उन्हें अखिलेश यादव के ख़िलाफ़ करहल में टिकट दिया है.

उत्तर प्रदेश में बीबीसी के पूर्व संवाददाता और वरिष्ठ पत्रकार रामदत्त त्रिपाठी कहते हैं, “उनके और मुलायम सिंह यादव के बीच में जो संबंध हुआ करते थे अब वो हैं नहीं. राजनीति में उनकी अब अपनी शख़्सियत है, पहचान है. तब से लेकर अब तक उनका काफ़ी लम्बा राजनीतिक सफ़र रहा है. वो पढ़े लिखे हैं, विनम्र हैं और इस चुनाव में भाजपा की पूरी फ़ोर्स उनके साथ होगी. वो अकेले यह चुनाव नहीं लड़ेंगे.”

क्या होगा करहल में चुनावी घमासान?

एसपी सिंह बघेल ने अपना नामांकन दाख़िल करने से जुड़ा एक फ़ेसबुक पोस्ट लिखा है, “यह मेरा सौभाग्य है कि दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी के शीर्ष नेतृत्व ने मुझे जिसे कुछ लोग पुश्तैनी, ख़ानदानी मज़बूत क़िला बता रहे हैं, उसे गिराने की ज़िम्मेदारी दी है.”

मैनपुरी की राजनीति पर लम्बे समय से रिपोर्टिंग करते आ रहे स्थानीय वरिष्ठ पत्रकार विनोद भरद्वाज कहते हैं, “करहल विधान सभा सीट यादव बाहुल्य है. मैं समझता हूँ कि कहीं कोई दिक़्क़त वहां अखिलेश यादव को है ही नहीं. लेकिन इन्होंने एक घेराबंदी ज़रूर कर ली है. मतलब अखिलेश को करहल पर ध्यान देना पड़ेगा.”

मैनपुरी के वरिष्ठ पत्रकार प्रदीप चौहान के मुताबिक़ एसपी सिंह बघेल के आने से करहल और आस-पास की सीटों के सामाजिक और जातीय समीकरण पर असर पड़ सकता है.

उनके मुताबिक़, “अगर भाजपा यहाँ से यादव कैंडिडेट लड़ाती तो अखिलेश यादव बिल्कुल निश्चिंत होकर कहीं भी घूम सकते थे. लेकिन एसपी सिंह बघेल के आने से मैनपुरी की दूसरी सीटों पर भी समीकरण बदल सकता है.”

प्रदीप चौहान के अनुसार करहल, किशनी, मैनपुरी और भोगांव सीट पर भी कुछ असर पड़ सकता है. पहले लग रहा था कि पाल, धनगर और बघेल समाज के वोट सपा में जा रहे हैं, लेकिन अब यह वोट भाजपा के पाले में संगठित हो सकते हैं. जिस सीट पर सोमवार तक पूरा चुनाव एकतरफ़ा लग रहा था वहां अचानक भाजपा ने माहौल बदलने का काम किया है.

प्रदीप चौहान कहते हैं, “पूर्व में भाजपा करहल से हल्का प्रत्याशी देती रही है, फिर भी उन प्रत्याशियों को वोट मिलते रहे हैं. तो भाजपा का करहल में वोट तो है. जो नॉन यादव वोट हैं उसमे ठाकुर भी हैं, पाल, बघेल, शाक्य, बनिया और उसके अलावा छोटी जातियां भी हैं जो भाजपा का समर्थन करती आई हैं.”

प्रदीप चौहान ये भी कहते हैं कि, “हो सकता है कि अखिलेश को यहाँ दो-चार दिन प्रचार करना पड़े. और यही भाजपा चाहती है कि यह दो चार दिन थोड़ा डिस्टर्ब हो जाएँ. चुनाव बहुत रोचक होगा, बहुत दिलचस्प होगा और बिल्कुल हल्का नहीं होगा.”

रामदत्त त्रिपाठी मानते हैं कि अखिलेश के पास करहल में यादव बिरादरी का भरोसा है, मुख्यमंत्री पद का चेहरा होने का आकर्षण है और करहल अखिलेश यादव के पारिवारिक गांव सैफ़ई से सटी हुई सीट भी है.

लेकिन अखिलेश के कमज़ोर पहलू का ज़िक्र करते हुए रामदत्त त्रिपाठी कहते हैं, “करहल की और मैनपुरी की तरफ़ अखिलेश यादव का कोई ऐसा काम नहीं है. मुख्यमंत्री रहते हुए अखिलेश यादव ने वहां के लिए ऐसा काम नहीं किया है, तो वो मुक़ाबला मुश्किल होगा. बघेल उस इलाक़े के हैं, आस पास के लोगों को जानते हैं.”

अखिलेश के ख़िलाफ़ एक और बात जो सकती है, उसका ज़िक्र करते हुए रामदत्त त्रिपाठी कहते हैं, “अखिलेश की शख़्सियत और मुलायम की शख़्सियत में भी फ़र्क़ है और दोनों की तुलना नहीं की जा सकती है. मुलायम ज़्यादा ज़मीन से जुड़े हुए थे और उनके कई लोगों से निजी सम्बन्ध थे. कोई भी उनके घर कभी भी आ सकता था, उनसे मिल सकता था, उनसे बात कर सकता था. उनसे नोक झोंक होती थी, तब भी वो लोगों से रिश्ता बनाए रखते थे. लेकिन अखिलेश के लिए ऐसा नहीं कहा जा सकता है.”

करहल में 20 फ़रवरी को मतदान होगा. अब देखना यह है कि एसपी सिंह बघेल अखिलेश यादव को घेरने में कितना कामयाब होते हैं. और क्या समाजवादी पार्टी अब गोरखपुर शहर सीट पर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के ख़िलाफ़ एक मज़बूत प्रत्याशी उतार कर बघेल का बदला लेती है या नहीं.

 

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https://www.bbc.com/hindi/india-60227710?xtor=CS3-33-%5Bwshindi%7EC%7EA41B42C37D38E38F39G38ad2xxxx%7ESpsinghbaghel%5D-%5BFacebook%5D-%5B6289178796182%5D-%5B6289178797382%5D&fbclid=IwAR3-EjhWIaY0aLtTqKga3eXMlrgALx5AxTJq4hCt7iJ0vVLTQVu0FtYYKh4

Dr. Bhanu Pratap Singh