तुर्की: इस्तांबुल के प्राचीन चर्च को मस्जिद में तब्दील किया, मुस्लिम देशों ने साधी चुप्पी

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तुर्की के राष्ट्रपति रेसेप तैयप एर्दोगान ने चोरा इलाके में स्थित एक बेजांटाइनकालीन प्राचीन चर्च को मस्जिद में बदल दिया है। यह चर्च इस्तांबुल में है और अब इसे चर्च में बदल दिया गया है। एर्दोगान सरकार ने 4 साल पहले इस चर्च को मस्जिद में तब्दील करने का ऐलान किया था।

तुर्की के राष्ट्रपति के इस फैसले का पड़ोसी ग्रीस और ईसाई देशों ने कड़ी आलोचना की है। इस चर्च का नाम सेंट सेवियर है और इसे तुर्की की भाषा में करिये भी कहा जाता है। इससे पहले तुर्की ने दुनियाभर में चर्चित हागिया सोफिया चर्च को मस्जिद में बदल दिया था।

भारत के अयोध्या में राम मंदिर बनाने पर हायतौबा मचाने वाले इस्लामिक देशों का संगठन ओआईसी चुप्पी मारकर बैठा है। विश्लेषकों का कहना है कि एर्दोगान अपने ‘खलीफा’ प्लान पर आगे बढ़ रहे हैं और इस्लामिक देशों का नेता बनना चाहते हैं।

तुर्की में चर्च को मस्जिद में बदले जाने पर ग्रीस और अन्य देशों ने कड़ी नाराजगी जताई है और उन्होंने अपील की है कि एर्दोगान सरकार बेजांटाइन कालीन स्मारकों का संरक्षण करे। ये दोनों ही चर्च संयुक्त राष्ट्र के विश्व विरासत स्थलों में शामिल हैं। इससे पहले हागिया सोफिया सदियों तक चर्च रही और बाद में एर्दोगान ने उसे मस्जिद में बदल दिया।

वहीं चोरा के चर्च में दशकों तक म्यूजियम रहा और अब उसे मस्जिद में बदल दिया गया है। इस चर्च को मस्जिद में बदलने के लिए एर्दोगान ने काफी बदलाव भी कराया। इस चर्च को मस्जिद में बदलने के बाद एर्दोगान ने कहा, ‘उम्मीद है कि इससे अच्छा होगा।’

यह चर्च चौथी सदी में बनाया गया था। इस चर्च को ऑटोमन साम्राज्य के दौरान मस्जिद में बदल दिया गया था और बाद में इसे 1945 में म्यूजियम बना दिया गया। विश्लेषक मार्क लांगफान का कहना है कि एर्दोगान के नेतृत्व में तुर्की एक आद्य इस्लामिक स्टेट खलीफा देश बन गया है। ऐसे कट्टरपंथी इस्लामिक विचारधारा मानने वाले जो यह मानते हैं कि वह अगले खलीफा है। उन्होंने कहा कि एर्दोगान के नेतृत्व में तुर्की ईसाई देशों को धमका रहा है। लांगफान का इशारा ग्रीस की ओर था जिसे लगातार तुर्की धमकाता रहा है।

विश्लेषक व्लादिमीर साजोनोव का कहना है कि हाल के सालों में एर्दोगान ने तुर्की में अपनी ताकत को बढ़ाया है और वह अब सर्वसत्तावादी बनते जा रहे हैं। उन्होंने कहा कि नए ‘सुल्तान’ या ‘खलीफा’ एर्दोगान का इरादा पुराने ऑटोमन साम्राज्य की शक्ति को फिर से बहाल करना है।

यह प्रथम विश्वयुद्ध में तुर्की की हार और साल 1918 में ऑटोमन साम्राज्य के पतन के बाद तुर्की का प्रभाव खत्म हो गया था। साल 2016 में एर्दोगान के खिलाफ एक विफल तख्तापलट हुआ और इसका फायदा उठाते हुए उन्होंने अपनी ताकत को काफी बढ़ा लिया। हाल ही में राष्ट्रपति चुनाव में उनकी फिर से जीत हुई है। कई विश्लेषकों का कहना है कि एर्दोगान सत्ता में बने रहने के लिए धर्म का इस्तेमाल कर रहे हैं।

-एजेंसी

Dr. Bhanu Pratap Singh