कैला मैया करौली

लीडर्स आगरा वॉट्सअप ग्रुप के एडमिन सुनील जैन और करौली में कैला मैया के दर्शन, पढ़िए आँखों देखा हाल और देखें वीडियो

RELIGION/ CULTURE लेख

डॉ. भानु प्रताप सिंह

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लीडर्स आगरा वॉट्सअप ग्रुप में एडमिन श्री सुनील जैन ने एक सूचना प्रसारित की। इसमें कहा गया था कि कैला देवी, बालाजी  और खाटू श्याम के दर्शन के लिए एक बस जा रही है। जिन्हें जाना है अभी बता दें। मैं वॉट्सग्रुप कम ही देखता हूँ लेकिन न जाने क्यों इस सूचना पर दृष्टि पड़ गई। मैंने तत्काल श्री सुनील जैन  को फोन करके दो सीट आरक्षित करवा दीं। कार्यक्रम बना और टला। अंततः तय हुआ कि 11 मई की रात्रि में निकलेंगे और 12 मई की रात्रि में वापसी होगी। कैला देवी और खाटू श्याम जाएंगे। कैला देवी तो मैं दो बार जा चुका हूँ लेकिन खाटू श्याम नहीं जा सका हूँ। आजकल खाटू श्याम की खासी मान्यता चल रही है। इसलिए मैं और मेरी पत्नी इंदु सिंह दोनों ही उत्साहित थे।

सुनील जैन ने सूचना दी कि बस रात्रि 10 बजे पारस पर्ल्स, लोहामंडी से प्रस्थान करेगी। मुझे समय के अनुपालन की आदत है। सो समय पर पहुंच गया। मुझसे पहले कई लोग वहां विराजमान थे। वरिष्ठ पत्रकार सुभाष जैन, एसके बग्गा और समाजसेवी अंजली गुप्ता मिलीं। कुल 50 लोग सूची में शामिल थे। सुनील जैन, राजू सविता, राहुल जैन, राहुल वर्मा आदि व्यवस्थाओं में लगे हुए थे। सूची से सबका मिलान हुआ। रात्रि 10.24 बजे बस आ गई। इसके साथ ही हलचल मच गई। धीरे-धीरे सब बस में सवार होने लगे। सबकी इच्छा रहती है कि सबसे आगे बैठें लेकिन यह संभव नहीं हो पाता है। हम सौभाग्यशाली रहे कि आगे से तीसरी सीट मिल गई। इसमें अंजली गुप्ता का योगदान रहा।

kaila maiya bus
हरी झंडी दिखाकर बस को रवाना करते जन संदेश टाइम्स के संपादक नीतेश शर्मा। साथ में सुनील जैन, डॉ भानु प्रताप सिंह, एसके बग्गा आदि।

सब बैठ गए तो बस का एसी चालू कर दिया गया। कुछ व्यवस्थाएं रह गईं। सुनील जैन ने एक ड्रम मँगवाया। इसमें पानी की बोतलें और जीरा सोडा की बोतलें रख दी गई। गर्मी में भी ये शीतल रहें, इसके लिए रात्रि में ही बर्फ की सिल्ली मँगवाई गई।

बस में एक परिवार को एक हैंड बैग दिया गया। इसमें बिस्कुट, लेमनचूस आदि रखे गए थे ताकि किसी को भूख लगे तो खा सके। यह बैग महिलाओं को बहुत पसंद आया।

करौली बस
बस के अंदर का फोटो।

यह सब करते-करते रात्रि के 11.30 बजे गए। मुख्य अतिथि जनसंदेश टाइम्स के संपादक श्री नीतेश शर्मा आ गए। उन्होंने बस को हरी झंडी दिखाई। बस के एक पहिए के नीचे नारियल और सभी पहियों के नीचे नींबू रखा गया। शकुन के लिए बस को आगे बढ़ाया गया। कुछ देर बाद कैला मैय के जयकारों के बीच बस ने प्रस्थान किया।

बस में सेल्फी का दौर चला। मैंने भी फोटो में आने के लिए चेहरा बाहर निकाला। सात-आठ बहनों के कारण बस में जीवंतता बनी रही। बस वाले ने कैला मैया के भजन लगा दिए।

आगरा से करौली गए तीर्थयात्री
मातेश्वरी धर्मशाला कैला देवी में लिया गया समूह फोटय़।

रात्रि में करीब 3.30 बजे करौली पहुंच गए। मंदिर के पास ही मातेश्वरी धर्मशाला पहुंचे। करौली में रात्रि में आंधी बारिश आ गई थी। इस कारण विद्युत व्यवस्था अव्यवस्था में तब्दील हो गई थी। धर्मशाला में विद्युत आपूर्ति बाधित थी। किसी कक्ष में ए.सी. चल रहा था किसी में नहीं। कैला मैया के दरबार में सब भक्तिभाव में थे। कक्षों में सामान रखकर कैला देवी के मंगला दर्शन के लिए मंदिर में पहुंचे। एक समय था जब मैंने सीधे मंदिर के सामने दर्शन किए हैं। पुजारी जी से मिले हैं। अब ऐसा समय आ गया है कि तमाम अवरोधों के साथ दर्शन कर पाते हैं। रेलिंग के बीच चलते-चलते मां के सामने पहुंचे। मूर्ति के सामने रुकने नहीं दिया जाता है। सबको तत्काल हटा दिया जाता है ताकि सब दर्शन कर सकें।

लौटकर धर्मशाला में आए। सुबह के साढ़े चार बज गए थे विश्राम करने की सोची। बिस्तर पर लेट गए। आँखों में नींद नहीं थी। मैंने योग निद्रा की ताकि शरीर विश्राम कर सके। हमारे कक्ष में चार लोग थे। किसी की आँख में नींद नहीं थी।

प्रातः सात बजे तक सब तैयार हो गए कि कैला मां के फिर से दर्शन करने हैं। हमें सुनील जैन ने अवगत कराया कि मां के दर्शन करते समय मूर्ति के साथ दोनों दीपक प्रज्ज्वलित अवस्था में दिखाई देने चाहिए। यह बात मन में बैठ गई। फिर हमसे कहा गया कि 8.30 बजे वीआईपी दर्शन करने चलेंगे सब। मेरी पत्नी इंदु सिंह का मन था कि अभी दर्शन कर आएं। इसलिए हम दोनों धर्मशाला से बाहर आ गए। जैसे ही गेट से बाहर निकले, दुकानदार आ गया और प्रसाद लेने की बात करने लगा। महिलाओं का स्वभाव है मोलभाव करने का। पूछा कि कितने का प्रसाद है तो दुकानदार ने कहा कि हर तरह का है। जब उससे प्रसाद लिया तो 101 रुपये से कम का नहीं दिया। कमल का फूल भी लिया।

कैला मैया के मंदिर से सुहाग चिन्ह घर ले जाने की भी परंपरा है

ठीक सात बजे हम लाइन में लग गए। श्रीमती ने प्रसाद की थाली मुझे पकड़ा दी। मैंने थाली सिर पर रखी और सबके साथ आगे बढ़ने लगे। श्रद्धालिओं का तांता लगा हुआ था। कैला मैया की जयकार हो रही थी। अबाल, वृद्ध, नर, नारी सब कैला मैया के दर्शन को व्याकुल थे। हम कैला के सामने पहुंचे और दीपकों के साथ दर्शन किए।

फि वाईआईपी दर्शन की बारी आई। यह अवसर केवल महिला मंडली को मिला। पुरुषों ने सबके साथ लाइन में लगकर दर्शन किए। मेरी पत्नी की खुशी का ठिकाना नहीं था कि एक दिन में ही तीसरी बार दर्शन हो गए।

कैला मंदिर के लिए मुख्य मार्ग बस अड्डा की ओर से है। यहां दोनों ओर बाजार सजा हुआ है। कई रेस्टोरेंट भी हैं। यह व्यवस्था मंदिर के हर ओर है लेकिन इधर कुछ अधिक ही है। महिलाएं कहीं जाएं और शॉपिंग न करें, यह संभव नहीं है। धार्मिक स्थलों पर जाकर महिलाएं अपने परिजनों और निकटस्थ संबंधियों को उपहार देने के लिए खरीदारी करती हैं। यहां भी यही किया।

मंदिर से धर्मशाला की ओर जाते समय देखा कि मुंडन संस्कार किया जा रहा था। छोटे बच्चों को मुंडन किया जा रहा था। बच्चे रो रहे थे लेकिन मां उन्हें चुप करा रही था। बाहर बोर्ड लगा हुआ था 51 रुपये का लेकिन यह सिर्फ चोटी काटने के लिए है। मुंडन कराना है तो 151 रुपये देने होते हैं। मुंडन के बाद बाल भगवती की मूर्ति के समक्ष रख दिए जाते हैं। खोपड़ी पर हल्दी का स्वास्तिक बना दिया जाता है। यहां देखा कि मुंडन उस्तरा के स्थान पर दाढ़ी सेट करने वाली मशीन से किया जा रहा था। (हमारी कुल देवी बेलोन देवी हैं। हमने अपने बच्चों का मुंडन वहीं कराया है।)

फिर से धर्मशाला आ गए। यहां से सामान उठाया और गुप्ता रेस्टोरेंट पहुंच गए। यहां सबने भोजन किया। भोजनोपरांत बस अड्डा से आगे खड़ी बस की ओर रवाना हुए। भीषण भीड़ थी। वाहनों की कतार लगी हुई थी। दोपहिया वाहन भी फँसे हुए थे। हम तो पैदल थे, फिर भी सुगमता से चल नहीं पा रहे थे। गर्मी थी। पसीना आ रहा था। बस में पहुंचे तो राहत मिली। एक परिवार पीछे रह गया। एक व्यक्ति का बैग रेस्टोरेंट में रह गया। इनका इंतजार करना पड़ा। इस तरह कैला देवी से खाटू श्याम के लिए 11.40 बजे प्रस्थान कर सके।

कैला देवी का इतिहास

राजस्थान के करौली से 25 किलोमीटर की दूरी पर है कैला देवी का मंदिर। यह त्रिकुट की पहाड़ियों के बीच कालीसिल नदी के किनारे पर बना हुआ है। यह मन्दिर देवी के नौ शक्ति पीठों में से एक माना जाता है। उत्तर भारत के प्रसिद्ध शक्तिपीठों में से एक कैला देवी मंदिर का इतिहास लगभग एक हजार वर्ष पुराना है। मान्यता है कि इसकी स्थापना 1100 ईस्वी में हुई थी। माता के श्रीमुख की स्थापना शक्तिपीठ के रूप में हुई।  कैला माता को अंजना माता का अवतार भी माना जाता है। देवकी और वासुदेव की पुत्री योग माया था, जिसे कंस ने मारने का प्रयास किया था। कहा जाता है कि यही योग माया कैला देवी के रूप में विराजमान हैं। कैला देवी माता भाटी राजपूतों (जादौन राजपूत) की कुल देवी हैं।

बोलो कैला मैया की जय।

(क्रमशः)

Dr. Bhanu Pratap Singh