Guru Purnima मुड़िया मेला निरस्त होने के बाद गुरु-शिष्य परम्परा का इस तरह निर्वहन किया गया

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Mathura (Uttar Pradesh, India)। मथुरा, गोवर्धन। कोरोना महामारी के चलते आस्था और मान्यताएं पूरी नहीं हो सकती, पूरे ब्रज के करीव-करीव सभी मंदिर कोविड-19 के प्रकोप के चलते बंद हैं। जिसमें कि राजकीय मेला पहली बार निरस्त होने के बाद आज रविवार को पुरानी परंपराओं के तहत दो मुड़िया शोभायात्रा निकाली जायेंगी। शोभायात्रा से पूर्व अनुयायियों ने परंपरा का निर्बहन करते हुए सिर का मुंडन कराया और अपने गुरू के प्रति अपनी आस्था और भक्ति का परिचय दिया। पहली बार इस लक्खी मेला के निरस्त होने के बाद आश्रमों में रोनक कुछ कम देखने को मिली। श्रीचैतन्य महाप्रभु जी के मंदिर के सामने पूज्य सनातन गोस्वामी जी की समाधि स्थल पर अधिवास संकीर्तन का शुभारम्भ किया गया। इसी के साथ शोभायात्रा की शुरूआत हो गयी इस अवसर पर महन्त गोपाल दास ने बताया कि आश्रम के साधु-संतों ने झांझ, मंजीरे, हारमोनियम व ढोलक की लय ताल पर अधिवास कीर्तन शुरू किया। रघुनाथ दास गोस्वामी की गद्दी राधाकुंड के महन्त केशव दास महाराज ने बताया हक पूज्य सनातन गोस्वामी के निकुंज लीला में प्रवेश करने के बाद गुरू भक्ति की याद में मुड़िया पर्व को मनाया जाता है। इसमें राधाकुंड-श्यामकुंड से सनातन गोस्वामी के चिन्हों को लेकर साधु-संत इस शोभायात्रा में नाचते कूदते शामिल होते हैं। और मानसी गंगा और गिरि गोवर्धन की परिक्रमा भी करते हैं।

श्रीकृष्ण के समय से आज तक यमुना और गिरिराज पर्वत गोवर्धन करोड़ों भारतीयों की श्रद्धा और आस्था का केंद्र

पौराणिक वर्णनों के अनुसार समूचे ब्रजक्षेत्र में दो वस्तुओं का अस्तित्व आज भी विद्यमान है, इनमें से एक है यमुना नदी और दूसरा है गिरिराज गोवर्धन पर्वत। भगवान श्रीकृष्ण ने कालिया नाग का वध करके यमुना को प्रदूषण से मुक्त कराया था। और गिरिराज गोवर्धन पर्वत को अपनी छोटी अंगुली में छाता की तरह उठाकर इंद्रदेव की अतिवृष्टि से डूबते ब्रजवासियों को बचाया था। भगवान श्रीकृष्ण के समय से आज तक यमुना और गिरिराज पर्वत गोवर्धन करोड़ों भारतीयों की श्रद्धा और आस्था का केंद्र बना हुआ है। संपूर्ण ब्रजभूमि का वैभव यमुना और गोवर्धन पर्वत के कारण ही है। इसी लिये संपूर्ण भारत ही नही पूरे विश्व से आज मथुरा, गोवर्धन, वृन्दावन, बरसाना आदि स्थलों को देखने व भगवान श्रीकृष्ण की लीला स्थली का दर्शन करने प्रतिवर्ष लाखों तीर्थ यात्री यहां आते है। यमुना के जल के आचमन मात्र से मोक्ष प्राप्ति का अटूट विश्वास लोक मानस में है ओर गिरिराज गोवर्धन को साक्षात कृष्ण का ही रूप माना जाता है।

करोड़ों लोगों को परिक्रमा कर गिरिराज गोवर्धन के प्रति अपनी आस्था और भक्ति में सराबोर होते हैं

मथुरा से 22 कि.मी. दूर स्थित है प्राचीन तीर्थ स्थल गोवर्धन, गोवर्धन के चारों ओर लगभग 21 किलों मीटर क्षेत्र में गिरिराज गोवर्धन पर्वत श्रृंखला है। इस पर्वत श्रृखंला की तलहटी में बारहों महिने करोड़ों लोगों को परिक्रमा कर गिरिराज गोवर्धन के प्रति अपनी आस्था और भक्ति की अभिव्यक्ति करते देखा जा सकता है। गुरू पूर्णिमा के लोक पर्व मुड़िया पूनौ पर देश के विभिन्न अंचलों से बहुत बड़ी संख्या में यहां भक्त नर-नारी आते हैं। जिनके कारण मुड़िया पूनौ ब्रज का सबसे बड़ा लक्खी मेला माना जाता है।

पहली बार जिला प्रशासन ने लोगों से मथुरा, वृन्दावन व गोवर्धन न आने की अपील करनी पड़ी

इस वर्ष यह पर्व 5 जुलाई को है मगर इस वर्ष इस मेले को शासन व जिला प्रशासन ने कोविड़ 19 की महामारी के प्रकोप के चलते इस पर रोक लगा दी। जहां प्रति वर्ष प्रशासन इस मेले के लिए मुड़िया पूणिमा मेला में आपका स्वागत है लिखकर स्वागत करता था, वहीं इस बार जिला प्रशासन को जगह-जगह होर्डिंग लगा कर लोगों को गोवर्धन, मथुरा, वृन्दावन न पधारने की गुहार लगानी पड़ रही है। जिसके कारण लोगों का आना नहीं हो पाया और यह लक्खी मेला इस बार जिला प्रशासन के दिशानिर्देश पर प्रतिबन्धित रहा।

गुरु पूर्णिमा के इस लोक पर्व के रूप में मनाये जाने वाले मेले को मनाये जाने के पीछे भगवान वेदव्यास का जन्म दिवस व चैतन्य महाप्रभु सम्प्रदाय के शिष्य आचार्य सनातन गोस्वामी का आषाढ़ शुक्ला पूर्णिमा को निर्वाण और गिरिराज गोवर्धन को साक्षात श्रीकृष्ण का प्रतिरूप माने जाने की अटूट आस्था है। इस आस्था का दर्शन भक्तों द्वारा गिरिराज गोवर्धन की परिक्रमा लगाते समय गाये जाने वाले लोग गीतों से होता है। ऐसे ही एक लोकगीत में गोवर्धन जाने के लिए मन की व्याकुलता गिर्राज जी की परिक्रमा और मानसी गंगा में स्नान की आकांक्षा इस प्रकार व्यक्त करते हैं।

नांइ माने मेरौं मनुआं मै तो गोवर्धन कूं जाऊ मेरी वीर।

सात कोस की दे परिक्रम्मा मानसी गंगा नहाऊ मेरी वीर।।

मुड़िया पूनौं के नाम करण के संबंध में कहा जाता है कि चैतन्य महाप्रभु के संप्रदाय के उनके विद्वान शिष्य आचार्य सनातन गोस्वामी से है। जिनका निधन हो जाने पर उनके शिष्यों ने शोक में अपने सिर मुड़वा कर कीर्तन करते हुए मानसी गंगा की परिक्रमा की थी। मुडे हुए सिरों के कारण शिष्य साधुओं को मुड़िया कहा गया और पूनौं (पूर्णिमा) का दिन होने के कारण इस दिन को मुड़िया पूनौं कहा जाने लगा सनातन गोस्वामी और उनके भाई रूप गोस्वामी गौड़ देश प्राचीन बंगाल के शासन हुसैन शाह के दरवार में मंत्री थे। चैतन्य महाप्रभु के भक्ति-सिद्धांतों से प्रभावित होकर वे मंत्री पद छोड़कर वृन्दावन आ गये और यहां उन्होंने चैतन्य महाप्रभु से दीक्षा प्राप्त की और उनके शिष्य हो गये। चैतन्य महाप्रभु ने उन्हें यह आदेश दिया कि वे कृष्ण के समय के तीर्थ स्थलों की खोज करें और उनके प्राचीन स्वरूप को प्रदान करें साथ ही श्रीकृष्ण की भक्ति का प्रचार-प्रसार करें। चैतन्य महाप्रभु के आदेशानुसार दोनों भाईयों ने ब्रज के वन-उपवन और कुंज निकुंजों में भ्रमण करके भगवान श्रीकृष्ण की लीलास्थलों की खोज करने लगें। वे घर-घर जाकर रोटी की भिक्षा ग्रहण करते और

‘‘हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे।, हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे।।’’

महामंत्र का कीर्तन कर कृष्ण भक्ति का प्रचार प्रसार करने लगे। सनातन गोस्वामी भ्रमण करते हुए जब गोवर्धन आये तो उन्होंने मानसी गंगा के किनारे स्थित चकलेश्वर मंदिर के निकट अपनी कुटिया बना ली और वहीं रहने लगे वह नित्य प्रति गिरिराज गोवर्धन की परिक्रमा करते थे। वह नित्य प्रति मानसी गंगा में ही स्नान करते थे। अत्यंत वृद्ध और अशक्त हो जाने पर भी उन्हांने जब इस नियम को नहीं तोड़ा तो कहा जाता है कि भगवान श्रीकृष्ण ने उन्हें दर्शन देकर गिरिराज पर्वत की एक शिला पर अपने चरण चिन्ह अंकित किए और कहा-बाबा आप इसकी परिक्रमा कर लेंगे तो गिरिराज गोवर्धन की परिक्रमा हो जायेगी।

सनातन गोस्वामी का निधन अब से 466 वर्ष पूर्व संवत् 1611 में आषाढ़ शुक्ला पूर्णिमा को हुआ था। उनके निधन पर उनके अनुयायियों ने सिर मुड़वाकर चकलेश्वर मंदिर से शोभायात्रा के रूप में निकाली थी वहीं परम्परा आज भी उनके शिष्यों व अनुयासियों द्वारा प्रत्येक वर्ष निकाली जाती है।

भगवत प्राप्ति का मार्ग पाने के लिए गुरू बनाते है और उनकी पूजा अर्चना करते हैं

मुडिया पूर्णिमा को गुरू पूर्णिमा के रूप में भी जाना जाता है पूरे ब्रज क्षेत्र में हर मंदिर और आश्रम में लोग अपने-अपने गुरू की पूजा अर्चना करते हैं तथा गुरू स्थान की भी पूजा करते है और इस दिन जगह-जगह भंडारे लगे होते हैं जहां श्रृद्धालु प्रसाद ग्रहण करते हैं और पूर्ण भक्ति भाव से आस्था के साथ अपने-अपने गुरू से आर्शीवाद ग्रहण करते हैं। कुछ लोग इस दिन को पवित्र मान कर अपने जीवन को सफल व पूर्व जन्म को सुधारने व भगवत प्राप्ति का मार्ग पाने के लिए गुरू बनाते है और उनकी पूजा अर्चना करते हैं तथा गुरू को उपहार स्वरूप फल वस्त्र आदि भेंट करते हैं। गुरू द्वारा बताये मार्ग पर चलते हुए भजन पूजा शुरू करते हैं। इस वर्ष यह सभी आयोजनों से भक्तों को कोरोना महामारी के चलते विरत रहना पड़ा। जिला प्रशासन की शक्ति भक्तों की भक्ति पर भारी पड़ी।

मथुरा से सुनील शर्मा की रिपोर्ट