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काले बुर्ज के नाम से प्रसिद्ध गुरु मंदिर 408 साल प्राचीन, जीर्णोद्धार का शुभारंभ, देखें तस्वीरें

NATIONAL PRESS RELEASE REGIONAL RELIGION/ CULTURE

-जैन दादाबाड़ी में श्रद्धालुओं और पर्यटकों के आकर्षण का केन्द्र बनेगा, लाइट एंड साउंड शो होगा

-प्रथम दादागुरुदेव जिनदत्तसूरि के चरणों की स्थापना होगी, ग्यासपुरा को मिलेगी नई पहचान

-यहां आए थे जिनचन्द्रसूरि जी, 1669 में जहांगीर के शासन में साधु विहार खुलवाया था

आगरा। आगरा के ऐतिहासिक सेठ का बाग दादाबाड़ी में काले बुर्ज के नाम से प्रसिद्ध बुर्ज सरकारी अभिलेखों एवं जैन इतिहास पुस्तकों में बुर्ज हीरानंद के नाम से प्रसिद्ध है। मुगल बादशाह जहांगीर काल में इस बुर्ज का निर्माण सेठ हीरानंद मुकीम ने करवाया था। दरअसल ये एक गुरु मंदिर है। यह 408 वर्ष प्राचीन है। ताजमहल से भी प्राचीन। इस काले बुर्ज के जीर्णोद्धार का शुभारंभ किया गया है। इसे पर्यटक केन्द्र के रूप में विकसित किया जाएगा। इसके लिए लाइट एंड साउंड शो भी कराया जाएगा। इससे स्थानीय लोगों को रोजगार मिलेगा। समृद्धि आएगी।

वि.सं. 1699 में आगरा आए थे दादागुरुदेव जिनचन्द्रसूरि जी

जैन इतिहासकार दुष्यंत जैन ने बताया कि इस गुरु मन्दिर में जगत सेठ हीरानंद ने प्रथम दादागुरुदेव जिनदत्तसूरि के चरणों की प्रतिष्ठा चतुर्थ दादागुरुदेव जिनचन्द्रसूरि जी के हाथों करवाई थी। जिनचन्द्रसूरि जी का जन्म वि.सं. 1595, चैत्रा वदी 12 को हुआ था। आगरा के दरबार में वि.सं. 1669 में जहांगीर के शासन में साधु विहार खुलवाकर स्थानीय भट्ट को पराजित कर ‘सवाई युगप्रधान पदवी’ से सम्मानित किया गया। वि.सं. 1670 को उन्होंने स्वर्गधाम प्रस्थान किया।

 कौन थे जिनदत्तसूरिजी

चार दादागुरुओं में से एक श्री जिनदत्तसूरिजी को उनकी अलौकिक शक्तियों के कारण अधिक जाना जाता है जबकि यह तो उनके साधक जीवन की सहज उपलब्धि थी। उनका यथार्थ कार्य तो जैन धर्म को पुनः आचारसम्मत बनाकर शिथिलाचार से मुक्ति दिलाना था। इस कार्य हेतु उन्होंने कई शास्त्रों की भी रचना की। 1 लाख 30 हजार नये श्रावक जैन धर्म में दीक्षित किये और राजपूत, ब्राह्मण, कायस्थ, माहेश्वरी आदि कई जातियों को ओसवाल जाति में सम्मिलित कर उन्हें विभिन्न गौत्र प्रदान किए। उनका जन्म गुजरात के धवलक (धोलका) नगर में वि. सं. 1132 में हुआ था। दादा गुरुदेव जिनदत्तसूरिजी का कालधर्म वि. सं. 1211 की आषाढ़ सुदी 11 को अजमेर में हुआ। वहाँ पर भी चमत्कार होना था। अग्नि संस्कार के बाद गुरुदेव के शरीर पर ओढ़ाई हुई चद्दर मुंहपत्ती एवं चोल पट्टा अग्नि में बिना जले ज्यों के त्यों बचे रहे, जो आज श्री जैसलमेर के जिनभद्रसूरि ज्ञान भण्डार में दर्शनार्थ उपलब्ध हैं।


अशोक जैन सीए के अनुजों ने उठाया बीड़ा

ऐसे ऐतिहासाक गुरु मंदिर की बेकदरी हो रही है। इसका आधार स्तंभ जर्जर हो रहा है। शिखर पर पौधे उग आए हैं। कुछ असामाजिक तत्वों का यहां डेरा लगा रहता है। दुर्घटना का खतरा बना रहता है। स्थानीय लोग चाहते हैं कि इसका उद्धार हो। इस निमित्त उन्होंने जैन दादाबाड़ी के विकासकर्ता स्व.अशोक जैन सीए से कई बार मुलाकात की। जिलाधिकारी के यहां भी लिखा-पढ़ी की। काफी प्रयासों के बाद भी गुरु मंदिर का जीर्णोद्धार नहीं हो पाया। स्व. अशोक जैन सीए के इस अधूरे कार्य को पूर्ण करने का बीड़ा उठाया है उनके अनुज राजकुमार जैन और सुनील कुमार जैन ने। इस कार्य का शुभारंभ गुरुवार से कर दिया गया है।

पर्यटक स्थल के रूप में विकसित करेंगे

इस मौके पर आगरा विकास मंच के संयोजक और दादाबाड़ी निर्माण कमेटी के संयोजक सुनील कुमार जैन ने बताया कि उद्देश्य यह है कि गुरु मंदिर में दादागुरु के चरण स्थापित हों। इसके सहारे ग्यासपुर, शाहगंज निवासियों को रोजगार मिले। विचार किया गया है कि इसका जीर्णोद्धार कर यहां लाइट एंड साउंड शो किया जाए। इसके माध्यम से जैन दागदाबाड़ी का इतिहास दिखाया जाए। यह इतना उच्चकोटि का हो कि श्रद्धालुओं के साथ-साथ पर्यटक भी आए। जब कहीं पर्यटक जाता है तो आसपास के लोग लाभान्वित होते हैं। आगरा से फतेहपुर सीकरी जाने वाले पर्यटकों को भी लाइट एंड साउंड शो देखने के लिए प्रेरित किया जा सकता है। जैन दादाबाड़ी मंदिर में पर्यटकों के प्रवास की व्यवस्था है ही।

गुरु मंदिर ग्यासपुरा को नई पहचान देगा

जैन श्वेतांबर मूर्तिपूजक श्री संघ के अध्यक्ष एवं आगरा विकास मंच के अध्यक्ष राजकुमार जैन ने बताया कि स्व. अशोक जैन सीए का सपना पूरा होने जा रहा है। स्थानीय लोग इस जीर्णोद्धार कार्य से उत्साहित हैं। यह गुरु मंदिर ग्यासपुरा को नई पहचान देगा। इस मौके पर दादाबाड़ी ट्रस्ट के अध्यक्ष उत्तम चंद जैन, दादाबाड़ी के कोषाध्यक्ष कमल चंद जैन, दादाबाड़ी ट्रस्ट के सचिव मनीष जैन, दादाबाड़ी ट्रस्ट के संयुक्त सचिव महेंद्र चौरड़िया आदि उपस्थित थे। ग्यासपुरा के हरी शंकर केन, श्याम बाबू, ओम प्रकाश, दलीप, दर्बेश, हरीशंकर, गुलाब सेरा जी, राजू, अशोक, बंटी, सीताराम, प्रकाश, धर्मेश, श्रीमती राजकुमारी, मुन्नालाल, जगन्नाथ, राजू की उपस्थिति भी उल्लेखनीय रही।