श्रीमनःकामेश्वर बाल विद्यालय, दिगनेर में चल रही श्रीमनःकामेश्वरनाथ राम लीला में सीता जी की विदाई के बाद हुई कोपभवन लीला
कन्यादान प्रसंग देख भावुक हुए भक्त,कैकई−मंथरा और कैकई−दशरथ संवाद सुन द्रवित हुआ हृदय
आगरा। विधि विधान संग संपन्न हुआ श्रीराम और सीता सहित चारों भाइयों का विवाह। मंगल गीतों और विवाह की उमंग से चहकती मिथिला नगरी विदाई की घड़ी आते ही सजल हो उठी।
वर−वधू की शाेभा जहां हृदय को उत्साहित कर रही थी तो वहीं विछोह की पीड़ा हृदय द्रवित कर रही थी। दिगनेर वासियों को निज पुत्री की विदाई से अधिक कष्टकारी पीड़ा हाे रही थी जनकनंदिनी की विदाई की बेला में।
बुधवार को गढ़ी ईश्वरा, दिगनेर स्थित श्रीमनः कामेश्वरनाथ राम लीला के सातवें दिन सीता राम विवाह, कैकई− मंथरा और कैकई संवाद लीला का मंचन कलाकारों ने किया। लीला प्रसंग में प्रिय पुत्र श्रीराम का वधू सहित अन्य पुत्रों का माता कौशल्या, सुमित्रा और कैकई ने अयोध्या नगरी आगमन पर भव्य स्वागत किया। उन्हें हृदय से लगाया किंतु राजा दशरथ ने श्रीराम के राज्याभिषेक की घाेषणा की तो आनंद के क्षणाें को जब मंथरा के शब्दों ने भेद दिया। दूसरों की बातों में आना कितना भंयकर परिणाम दे सकता है ये सीख इस प्रसंग में मिली। मंथरा का मंतव्य न समझ कैकई ने कोप भवन लीला रची और अपने पति राजा दशरथ को वचनों के बंधन में बांध दिया। एक पिता और पति राजा दशरथ जब भाव युद्ध में फंसे तो हर आंख भर आई।
कैकई राजा दशरथ से राम को वनवास और भरत को राजगद्दी के वर मांगती है। राजा दशरथ विनती करते हैं कि राम को वनवास देने का वर मत मांगों। किंतु कैकई कहती है कि ठीक है राजन अपने वचन से मुकर जाओ। राजा दशरथ कहते हैं रघुकुल रीत सदा चली आईा, प्राण जाएं पर वचन न जाई…। इसी प्रसंग के साथ जब लीला का समापन होता है तो हर श्रद्धालु का हृदय व्याकुल हो उठता है।
लीला आरंभ से पूर्व श्रीमहंत योगेश पुरी और मठ प्रशासक हरिहर पुरी ने स्वरूपों और श्रीराम चरित मानस जी की आरती उतारी। लीला मंचन कर रहे श्रीकिशाेरी रास एवं राम लीला संस्थान के गोविंद मिश्र ने बताया कि गुरुवार को राम वनवास, केवट संवाद, दशरथ मरण और भरत आगमन लीला होगी।
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