तुलसी साहित्य अकादमी द्वारा आयोजित कवि सम्मेलन अमिट छाप छोड़ गया
लाइव स्टोरी टाइम
आगरा, उत्तर प्रदेश, भारत।
जादूगरनी की कविता — मस्ती और मग्नता का संगम
कार्यक्रम की मुख्य अतिथि शैलजा सिंह ने मंच पर जो ऊर्जा दी वह पढ़ने-समझने वाले हर दिल को छू गई। उनकी प्रसिद्ध पंक्तियाँ —
“जादूगरनी हूँ मैं जादू-टौना कर दूंगी, आसमान के सूरज को भी बौना कर दूंगी”
इन पंक्तियों ने श्रोताओं को सिर्फ मंत्रमुग्ध ही नहीं किया, बल्कि कई बार ठहाके भी दिलवा दिए — यों लगा कि कविता का रस और हास्य साविक रूप से एक ही तर्ज पर खेल रहे हों।
कविता की गरिमा — अध्यक्ष राज बहादुर ‘राज’ का कटाक्ष
काव्य गोष्ठी की अध्यक्षता कर रहे राज बहादुर ‘राज’ ने मंच पर चल रही प्रवृत्तियों पर कटाक्ष करते हुए कहा —
“आज जो मंच पर तथाकथित कवियों द्वारा श्रोताओं को परोसा जा रहा है, वह भारतीय संस्कृति और लोक साहित्य के तौर पर अक्षम्य है। कवि को अपनी गरिमा से कभी समझौता नहीं करना चाहिए।”

लोक साहित्य पर चर्चाएँ और सुझाव
कवि डॉ. राजेंद्र मिलन ने लोक साहित्य पर लिखने की महत्ता पर बल दिया और युवा लेखकों को निर्देश दिया कि वे परंपरा और लोकधारा को अपने लेखन में समाहित करें। विशिष्ट अतिथि के रूप में धनंजय तिवारी उपस्थित रहे।
अलंकृति और सम्मान
अकादमी द्वारा शैलजा सिंह को “हिंदी साहित्य भूषण” तथा डॉ. ब्रजबिहारी लाल को “ब्रज साहित्य भूषण” से सम्मानित किया गया — यह साहित्यिक सम्मान आयोजन की गरिमा में चार चाँद लगाता है।
साहित्यिक शक्ति — मंच पर उपस्थित गणमान्य
कार्यक्रम में शहर व बाहर से आए कवि, लेखक और विद्वानों ने भाग लिया। डॉ.भानु प्रताप सिंह, नंदनंदन गर्ग, कवि डॉ.यशोयश, धनंजय तिवारी, डॉ.सुकेशिनी दीक्षित, प्रेमलता शर्मा, डॉ. शेषपाल सिंह शेष, उमाशंकर पाराशर, नरेन्द्र वर्मा, हरीश अग्रवाल ढपोरशंख, संजय गुप्त, आचार्य नीरज शास्त्री, जय शर्मा, अनुज अनुभव, राज फोजदार, आचार्य निर्मल, बोधिसत्व कस्तूरिया, शरद गुप्ता, इशिका शर्मा, विनय बंसल, प्रभुदत्त उपाध्याय, उत्तम सिंह, डॉ.रामवीर शर्मा रवि, रीतू चौरसिया, वंदना चौहान, अनुपमा दीक्षित ने अपने काव्यपठ से सबको चमत्कृत के दिया।

संचालन की शान — डॉ. यशोयश की भूमिका
यह कहना अतिशयोक्ति नहीं कि किसी भी कवि सम्मेलन का वास्तविक चेहरा उसके संचालक की सूक्ष्मताओं से बनता है। डॉ. यशोयश ने न केवल कार्यक्रम का संचालन किया, बल्कि प्रत्येक प्रस्तुति के बीच समय, लय और भाव का ऐसा संतुलन बनाए रखा कि श्रोता कभी ऊबने नहीं पाए। उनकी आवाज़ में एक शांत गंभीरता थी और मंच व्यवस्था में इतने सूक्ष्म संकेत थे कि आयोजन सुसंगत व यादगार बन गया।
प्रशंसा और समापन
अंत में आयोजन की सम्यक् रूप से प्रशंसा करते हुए धन्यवाद ज्ञापन आचार्य नीरज शास्त्री ने किया।
वे जानते हैं—किस कवि को कब रोकना है, कब बढ़ावा देना है, कब भाव को थामकर दर्शक को सोचने का मौका देना है। यही कारण है कि कई बार मंच पर जो कुछ घटता है, उसका प्रभाव श्रोताओं के मन पर यथार्थ रूप में बैठता है।
डॉ. यशोयश का संचालन उस मिट्टी की महक देता है जहाँ परंपरा और शिष्टता मिलकर साहित्य को सहेजती है। युवा और अनुभवी कवियों के मध्य वह सेतु का कार्य करते हैं—जिससे कविताएँ सिर्फ सुनी नहीं जातीं, बल्कि जी जाती हैं।
हिंदी साहित्य को ऐसे संचालकों और संरक्षकों की सख्त ज़रूरत है जो केवल मंच न सँभालें, वरन् उसे आदर्श एवं प्रेरणा के केंद्र में बदल दें। डॉ. यशोयश ने यही किया—और इसलिए यह आयोजन न सिर्फ सफल रहा, बल्कि स्मरणीय भी बना।
संवाद — डॉ. यशोयश की सराहना
कवि शरद गुप्त ने कहा,”डॉ. एशियाश का संचालन अनुशासन, विनम्रता और साहित्यिक सूझ-बूझ का परिपूर्ण उदाहरण था। उन्होंने मंच को गरिमामय रखा और हर प्रस्तुति को पूर्ण सम्मान दिया।”
कवि संजय गुप्त: “उनकी सहजता और समय प्रबंधन ने कार्यक्रम को एक सुव्यवस्थित कला अनुभव बना दिया—ऐसा संचालक कम ही मिलता है।”
इशिका शर्मा, निखिल बुक्स: “डॉ. यशोयश ने मंच की शान बढ़ाई, उनकी उपस्थिति ने आयोजन को प्रतिष्ठित कर दिया।”
डॉ भानु प्रताप सिंह
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