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सत्यमेव जयते ट्रस्ट ने आगरा से फिरोजाबाद मेडिकल कॉलेज को कराया देहदान, जानिए क्या है लाभ-हानि

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सत्यमेव जयते ट्रस्ट ने सेन्ट पीटर्स कॉलोनी निवासी शांति देवी चतुर्वेदी का पार्थिव शरीर सौंपा

डॉ. भानु प्रताप सिंह

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Agra, Uttar Pradesh, India, Bharat. सत्यमेव जयते ट्रस्ट ने एक नेक काम किया है। श्रीमती शांति देवी चतुर्वेदी का देहदान कराया है। सेन्ट पीटर्स कॉलोनी, वजीरपुरा निवासी 83 वर्षीय श्रीमती शांति देवी चतुर्वेदी जी पत्नी डॉ. सियाराम चतुर्वेदी जी का निधन 29 अप्रैल, 2024 को हो गया था। खास बात यह है कि पार्थिव शरीर फिरोजबाद मेडिकल कॉलेज को दान किया गया है।

सत्यमेव जयते ट्रस्ट के महामंत्री गौतम सेठ ने बताया कि ट्रस्ट द्वारा अंगदान-महादान जागरूकता कार्यक्रम चलाया जा रहा है। इसी के अंतर्गत श्रीमती शांति देवी का देहदान कराया गया है। शांति देवी के पति व परिजनों की इच्छानुसार देहदान के लिए उनके निवास स्थान से शवयात्रा फिरोजाबाद के एनाटॉमी विभाग पहुंची। वहां प्राचार्य डॉ. बलवीर सिंह और एनाटॉमी विभागाध्यक्ष डॉ. शिखी गर्ग को पार्थिव शरीर हस्तगत कराया गया। मेडिकल कॉलेज का सही नाम है- स्वायत्त राज्य मेडिकल कॉलेज और अस्पताल (AUTONOMOUS STATE MEDICAL COLLEGE, FIROZABAD)

श्री गौतम सेठ ने बताया कि एसएन मेडिकल कॉलेज, आगरा को कई लोग देहदान कर चुके हैं। फिरोजाबाद मेडिकल कॉलेज के लिए किसी ने नहीं किया। वहां से लगातार आग्रह किया जा रहा था किमदेहदान कराएं ताकि चिकित्सा छात्र गुणवत्तापूर्ण अध्ययन कर सकें। इसी को ध्यान में रखते हुए शांति देवी का पार्थिव शरीर सौंपा गया है।

सत्यमेव जयते ट्रस्ट के अध्यक्ष मुकेश जैन ने बताया कि तमाम लोग धार्मिक कारणों से देहदान नहीं करते हैं। हमारे धर्मग्रंथों में दान का बड़ा महत्व है। सबसे बडा दान देहदान है। जीते जी रक्तदान और मृत्योपरांत देहदान। देहदानियों के कारण ही समाज को योग्य चिकित्सक मिलते हैं। मृत देह पर तमाम तरह के प्रयोग दिए जाते हैं और सर्जरी सीखी जाती है।

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फिरोजाबाद मेडिकल कॉलेज में अंगदान के मौके पर सत्यमेव जयते ट्रस्ट के महामंत्री गौतम सेठ और श्रीमती शांति देवी चतुर्वेदी के परिजन।

शरीर के समस्त भागों की रचना का अध्ययन चिकित्सा छात्रों के किए जाने के उपरान्त म्यूजियम स्पेसिमेन तैयार किए जाते हैं, जिससे इनका उपयोग भविष्य में भी अध्ययन हेतु किया जा सके। अस्थियां भी अध्ययन हेतु उपयोग में की जाती हैं।

चिकित्सा जगत के लिए मृतदेह अमूल्य है। सिर्फ सामान्य पढ़ाई लिखाई ही नहीं, आगे के शोध और जटिल ऑपरेशन में दिग्गज सर्जंस के लिए भी यह देह रोशनी का काम कर कई जिंदगियां बचाती है। अगर मृत देह न मिले तो डॉक्टर जानवारों पर सर्जरी की प्रैक्टिस करते हैं। जब भी कोई नई तकनीक आती हैं, तो उसे सीखने और प्रैक्टिकल करने के लिए कडैवेरिक वर्कशॉप (मानव शरीर पर प्रयोग) के लिए भी मृत देह का उपयोग किया जाता है।

मृत्यु के उपरांत देह का दान अधिकतम 15 घंटे के अन्दर किया जा सकता है। अगर किसी कारणवश विलम्ब होता है तो मृत देह को बर्फ में सुरक्षित रखें, जिससे मृत देह खराब न हो। यही प्रक्रिया अधिक गर्मी में भी अपनाएं जिससे मृत देह परीक्षण हेतु सुरक्षित रहे।

ब्रेन डैड होने पर शरीर के सारे अंग दान किए जा सकते हैं। शरीर के मृत होने पर तीन घंटे में आंख के कॉर्निया का दान हो सकता है। देह के अलावा किडनी, हार्ट, लीवर, लंग्स, पैंक्रियाज, कॉर्निया और स्मॉल बाउल (छोटी आंत) का दान किया जा सकता है। ऊतकों में हृदय के वॉल्व, हड्डियों और त्वचा को दान किया जा सकता है।

टी.बी., कैंसर, एच.आई.वी. (एड्स), हेपेटाइटिस और गंभीर संक्रमण से संक्रमित मृत्यु होने पर देहदान नहीं किया जा सकता है। नेत्रदान के बाद भी देहदान किया जा सकता है।

एक शताब्दी पहले मानव शरीर की अस्पतालों में उपलब्धता इतनी कम थी कि 1800 के आसपास बॉडीज को अस्पतालों में बेचने के लिए एक व्यक्ति ने 15 मर्डर कर दिए थे। उस समय मेडिकल स्टूडेंट्स को पढ़ने के लिए बॉडी नहीं मिल पाती थी। बॉडी डोनेशन को लेकर 1832 में अमेरिका में पहली बार एक्ट बना था, उसमें बताया था लावारिस बॉडी अस्पताल को स्टूडेंट्स की पढ़ाई के लिए दे दी जाए। लावारिस बॉडी को अस्पताल को सौंपने के लिए राजस्थान में एक्ट 1986 में बना था।

लखनऊ के मेडिकल कॉलेज में जिस व्यक्ति का देहदान होता है, उसके करीबी रिश्तेदारों को इलाज में 50 प्रतिशत छूट भी दी जा रही है। इस तरह का प्रयोग आगरा में भी किया जा सकता है।

Dr. Bhanu Pratap Singh