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RSS प्रचारक ने बताया कि हिंसक शासन प्रणाली से छुटकारा कैसे पा सकते हैं

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Agra, Uttar Pradesh, India. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अखिल भारतीय सह सम्पर्क प्रमुख प्रदीप जोशी का कहना है कि स्वतंत्रता के लिए चलने वाले लंबे संघर्ष के दौरान यहां की जनता ने स्व   के विचार की लड़ाई को भी लड़ा।  केंद्रीयकृत शोषक और हिंसक शासन प्रणाली एवं उनके द्वारा अपनाई जाने वाली लोक केंद्रित अर्थव्यवस्था से छुटकारा पाए बिना अंग्रेजी शासन से मुक्ति पाने का कोई अर्थ नहीं रह जाएगा। त्रिमूर्ति के माध्यम से यह सब किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि राम और कृष्ण की भूमि पर आत्मविश्वास को कुचलने का प्रयास किया गया।

 

श्री जोशी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संपर्क विभाग के तत्वाधान में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के वरिष्ठ प्रचारक जे. नंदकुमार की पुस्तक ‘स्वराज के 75 वर्ष’ का विमोचन कार्यक्रम को संबोधित कर रहे थे। यह कार्यक्रम आगरा विश्वविद्यालय के खंदारी परिसर स्थित सेठ पदमचंद जैन संस्थान में हुआ। मुख्य अतिथि के रूप में कुंज बिहारी अग्रवाल ने सहभागिता की। अध्यक्षता ओमप्रकाश शर्मा ने की। कार्यक्रम का संचालन देवेंद्र त्यागी ने किया।

 

उन्होंने कहा- श्री अरविंद जी, नेहरू जी, महात्मा गांधी व अन्य महापुरुषों ने स्वधर्म, स्वराज एवं स्वदेशी के विचार के साथ इस सामाजिक दर्शन विचार को हमारे समक्ष प्रस्तुत किया। स्वधर्म व वसुधैवकुटुंबकम का विचार रखने वाले भारतीय चिंतकों ने सभी के उत्थान की बात कही, जिसमें प्राणीजगत, जंगल, नदियां, भूमि आदि सभी कुछ समायोजित है। दूसरा स्वराज अथवा शासन- सुशासन छोटे स्तर का, छोटे स्तर पर विकेंद्रीकरण स्वसंगठित तथा स्वनिर्देशित, सहभागिता पूर्ण शासन की रचना है। इसका तात्पर्य आत्मपरिचय तथा आत्म परिवर्तन तथा आत्म संयम भी है।

 

प्रदीप जोशी ने कहा कि स्वराज्य शासन की एक नैतिक पारिस्थितिकी तथा आध्यात्मिक प्रणाली है। इसे तीसरा स्वदेशी अर्थात स्थानीय उत्पादों तथा उपभोक्ताओं के लिए स्थानीय मार्ग और आपूर्ति की श्रृंखला को पुनः स्थापित करने का एक प्रयास था। पहले स्वदेशी का विचार केवल अर्थतंत्र तक ही सीमित था परंतु बाद में यह अवधारणा सामाजिक, सांस्कृतिक आयामों में भी प्रचलित होती दिखाई दे सकती है।

 

श्री जोशी ने कहा कि यदि इस त्रिमूर्ति यानी  स्वधर्म, स्वराज व स्वदेशी का हम सूक्ष्मता पूर्ण अध्ययन करें तो हम देखेंगे कि इन तीनों शब्दों के मूल में जो शब्द सामान हैं वह है स्व। यदि हम (स्वधर्म, स्वराज व स्वदेशी) में उपस्थित स्व की संकल्पना का विचार करें तो हम विभिन्न तरीकों और तकनीकी के माध्यम से विचार कर सकते हैं। हमारे चिंतन का आधार स्व ही है।

 

इस मौके पर विभाग प्रचारक आनन्द, विजय गोयल, अशोक कुलश्रेष्ठ, डॉ. विनोद माहेश्वरी, प्रोफेसर ब्रजेश रावत, प्रो. वीके सारस्वत, प्रो. अनिल कुमार गुप्ता, प्रो. एसके जैन, हरिशंकर शर्मा, अनिल सिसौदिया, ललित दक्ष प्रजापति, नरेश त्यागी, अभिषेक, डॉ. संदीप तोमर, संतोष, राधा कृष्ण, दिलीप, अनिल अग्रवाल, अजय रंगीला, रमेश कर्दम, श्रवण, डॉ. अंकुर, राकेश निर्मल की उपस्थिति उल्लेखनीय रही।

Dr. Bhanu Pratap Singh