गद्य की आलेख एक तत्वप्रधान विधा है। आलेख साहित्यिक अभिव्यंजना का सबसे दुरुह एवं कठिन पाथ है। आचार्य रामचन्द्र शुक्ल के शब्दों में “भाषा की पूर्णता का विकास आलेखों में ही *सबसे अधिक संभव है।”* हम ध्यान से देखें तो इस विधा में व्यक्ति अपने स्वतंत्र व्यक्तित्व, निजीपन व अपने दृष्टिकोण का प्रकटन बहुत ही सुलभता और विस्तार के साथ कर सकता है। मैं बात कर रहा हूँ, स्व.सर्वज्ञ शेखर गुप्ता जी की पुस्तक ‘शेष अशेष अभिमत’ की जो आज विमोचित होने जा रही है। इस पुस्तक से पूर्व विगत वर्ष उनकी पहली पुस्तक “मेरे इक्यावन अभिमत” आई थी। उन्होंने अपने जीवन काल में ही दूसरी पुस्तक को प्रकाषित कराने का संकल्प लें लिया था। लेकिन प्रथम कोविड काल में वे हमें असमय छोड़कर चले गये। उनके जाने के बाद उनके संकल्प को पूरा किया उनकी पत्नी श्रीमती रजनीगंधा ने। वह इस पुस्तक की प्रस्तोता हैं। उन्हीं के प्रयास से यह पुस्तक हमारे सामने है। किसी के जाने के बाद उसके कृत को आगे बढ़ाना हमेशा से वंदनीय एवं अभिनंदनीय रहा है। जब हम आजके दिव्य और भव्य विमोचन कार्यक्रम के पीछे झाँककर देखते हैं तो हमें पूरा करुणेश परिवार खड़ा नजर आता है।
पुस्तक के आवरण पृष्ठ पर झीनी सी मुस्कान के साथ सर्वज्ञजी का चित्र है। जो कह रहे हैं मेरे अभिमत मेरे सुझाव हैं विचार हैं। कहने का तात्पर्य वह थोपना नहीं चाहते अपितु ये उनकी राय हैं। तुलसीदास जी ने कहा है:-
जो न होहिं मंगलमग सुरबिधि बाधक।
तौ अभिमत फल पाविंहिं करि स्रमु साधक।।
इस पुस्तक की भूमिकाएँ आदरणीय पद्मश्री मोहन स्वरूप भाटिया एवं पद्मश्री डॉ.ऊषा यादव द्वारा लिखी गई हैं। जोकि पुस्तक को और भी पठनीय और संग्रहणीय बनाती हैं। आगे बढ़ते हैं तो सर्वज्ञजी के अभिनव और अभिजात्य पुत्रों द्वारा विनीत भाव से श्रद्धानत होते हुए अपने पिता को श्रद्धांजलि अर्पण है।
जब मेरी पुस्तक की अनुक्रमणिका पर दृष्टि गई तो मैंने देखा कि सर्वज्ञजी की इस पुस्तक में भी इक्यावन आलेख हैं। आलोच्य कृति के आलेख भी पूर्व कृति के आलेखों की भाँति पढ़ने पर यह स्पष्ट अवलोकित होता है कि लेखक ने अपना सृजन किसी की अंगुली पकड़ कर नहीं अपितु अपने समाज, अपने देश की यमुना-गंगा की पावनता और शीतलता में बैठकर लिखे हैं। जिसमें आपने अपने पसीने को स्याही की तरह प्रयोग किया है और चिंतन को अपनी कलम के शीर्ष पर बैठाया है। एक बात बहुत महत्वपूर्ण है कि आपने अपने विषय, अपनी कहन को बोझिल नहीं होने दिया है। यह आपकी लेखनी का सारभूत तत्व है। छोटे-छोटे आलेख आज की भागमभाग जिंदगी में पाठक की पढ़ने की क्षुधा को बहुत कम समय में अपने उद्देश्य की पूर्ति करने में सक्षम हैं।
आपका पहला आलेख “तेरा दुख और मेरा दुख” में दुख की महत्ता का चित्रण करते हुए उसे सारगर्भित तरीके से व्याख्यायित किया है। आलेख “रेड लाइट ऑन, गाडी ऑफ” में वह पाठक को शिक्षित करते हुए से दीखते हैं कि चौराहे आदि पर रेड लाइट आन होने पर हमें अपनी गाडी को ऑफ कर देना चाहिए। जिससे पर्यावरण पर तो फर्क पड़ता ही है, तेल की भी बचत होती है। इसी प्रकार आलेख “सेल्फ गोल” में उनका कहना है कि हर क्षेत्र में हमें सावधानी बरतनी चाहिए। कब कोई बड़ी दुर्घटना हो जाए, कोई नहीं जानता और जब वह अपने हाथ से हो या अपनी गलती से, उस समय प्रायश्चित करने से भी कोई क्षतिपूर्ति नहीं हो सकती। इसके बाद “भावुक क्षण”, “हर रोज मातृ दिवस”, “मोस्ट फेवर्ड नेशन”, “दो जून की रोटी का उपहास न उड़ाएं”, “बात है तो बहुत पुरानी” आलेखों से होते हुए ” हे राम! गांधी के भारत में महिलाओं से इतनी क्रूरता” आलेख पर आते हैं। यहाँ लेखक देश में हाथरस और बलरामपुर में निर्भयाओं के साथ बलात्कार व क्रूरता की घटनाओं को देखकर विह्वल हो उठता है। उनका यह आलेख पढ़ते हुए अनुभव होता है कि वे एक विचारक, एक चिंतक के साथ साथ एक निर्भीक पत्रकार भी हैं। आपका बारहवां आलेख “मातृ दिवस पर विशेष” है। इस आलेख में लेखक ने प्रश्न उठाया है कि मां को ‘आई लव यू’ क्यों नहीं बोल सकते? लेखक के लिए मां ईश्वरीय रूप है। तभी तो उनके कवि मन ने कहा है:-
मां के आंचल में सुख स्वर्ग सा,
मां के चरणों में सारे धाम।
मातृ दिवस पर पूज्य मां को,
सादर हमारा करबद्ध प्रणाम।
आगे हम “जनता कर्फ्यू:एक अनुशासन पर्व”, “आपत्ति काले मर्यादा नास्ति“, “एक राष्ट्र एक सविंधान”, “आपदा और अवसर”, “इस आग को जल्दी बढ़ने से रोको”, “बैंकों के विलय की अवधारणा बहुत पुरानी है”, जैसे पचास पडावों से गुजरते हुए अंतिम आलेख “फेंक न्यूज अर्थात फर्जी खबरें” पर आ पहुंचते हैं। इस आलेख में लेखक ने “फेंक न्यूज” के प्रति सावधान किया है। स्थिति यह हो गई है कि कुछ मालूम ही नहीं हो पाता कि क्या सही है और क्या गलत। इसके लिए उन्होंने जनता और सरकार दोनों को ही सावधान किया है।
आपकी भाषा शैली की बात की जाए तो उनकी भाषा शैली सहज सरल शब्दों में मां भारती के मंदिर में गाई जाने वाली उस आरती की तरह है जो आसपास की उपस्थिति को आकर्षित ही नहीं करती अपितु उन्हें तृप्त भी करती है। यह सर्वज्ञजी की भाषा शैली की विशेषता है कि पाठक आलेख में भी नीरसता नहीं अपितु रस का रसास्वादन करता है। उनकी कलम की शब्द शक्ति पाठक से सीधा स्पर्श करके उसके हृदय में अपना घर बना लेती है।
मैं पहले इस आलेख संग्रह के शीर्षक ‘शेष अशेष अभिमत’ का हृदय से स्वागत करता हूँ। वहीं सर्वज्ञ के आलेखों में व्याप्त, शब्द-शब्द में आलोच्य एवं अभिव्यक्त भावना का, मन की गहराइयों से अभिनंदन करता हूँ। मुझे विश्वास है कि ‘शेष अशेष अभिमत’ मानवीय मन के कंठहार बनेंगे। साथ-साथ एक स्वस्थ, सभ्य, सांस्कृतिक समाज की स्थापना का अधिष्ठान बन सांस्कृतिक राष्ट्रवाद का पथ प्रशस्त करेंगे। मैं अपनी बात की इति निम्न पंक्तियों से करता हूँ:-
आज आकाश के सितारे हैं सर्वज्ञ शेखर गुप्ता।
आज धरती के दुलारे हैं सर्वज्ञ शेखर गुप्ता।
शेष अशेष आलेख और मेरे इक्यावन अभिमत,
स्वयं की कलम से निखारे हैं सर्वज्ञ शेखर गुप्ता।
विधा:- गद्य (आलेख)
लेखक:- सर्वज्ञ शेखर गुप्ता
प्रस्तोता:- श्रीमती रजनीगंधा
प्रकाशक:- निखिल पब्लिशर्स
मूल्य:- 125/-
पृष्ठ:- 124
समीक्षक : अशोक अश्रु विद्यासागर
संपादक: संस्थान संगम मासिक पत्रिका, आगरा
मो. 9870986273, 9219539294
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