dadaji maharah satsang

राधास्वामी गुरु दादाजी महाराज ने स्वामी बाग के बारे में बताई ये बात

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हजूरी भवन, पीपल मंडी, आगरा (Hazuri Bhawan, Peepal mandi, Agra) राधास्वामी मत का आदि केन्द्र है। यहीं पर राधास्वामी मत  (Radha Soami Faith) के सभी गुरु विराजे हैं। राधास्वामी मत के वर्तमान आचार्य (Radhasoami guru Dadaji maharaj) और अधिष्ठाता दादाजी महाराज ( प्रोफेसर अगम प्रसाद माथुर हैं)  जो आगरा विश्वविद्यालय (Agra university Dr Bhimrov ambedkar university agra) के दो बार कुलपति (Vice chancellor of Agra university)  रहे हैं। हजूरी भवन ( Hazuri Bhawan, Peepal Mandi, Agra) में हर वक्त राधास्वामी  (Radha Soami)  नाम की गूंज होती रहती है। दिन में जो बार अखंड सत्संग होता है। दादाजी महाराज ने राधास्वामी मत (RadhaSomai faith) के अनुयायियों का मार्गदर्शन करने के लिए पूरे देश में भ्रमण किया। इसी क्रम में 11 अप्रैल 2000 को पंडित पार्क, ग्राम भोंडसी, जिला गुड़गांव, हरियाणा, भारत में सतसंग के दौरान दादाजी महाराज )Dadaji maharaj Prof Agam Prasad Mathur) ने कहा- गुरु वह होना चाहिए जो शब्द रूपी है, जो स्वयं शब्द कमाता है, शब्द का भेद दे सकता है, जिसने चढ़ाई चढ़ी है और कुल मालिक से एक हो रहा है तथा जो राधास्वामी धाम से आता है या राधास्वामी धाम में पहुंचता है या सत्तलोक से आता है और सत्तलोक में पहुंचता है- ऐसा गुरु पूरा गुरु कहलाता है।

राधास्वामी दयाल ने सुरतशब्दयोग की आसान विधि बताई

कलयुग में राधास्वामी दयाल ने राधास्वामी नाम दिया, गुरु भक्ति बताई, प्रेम और प्रीत का मार्ग दिया और सुरत-शब्द-योग की आसान विधि बताई। जिसको बूढ़ा, जवान, बच्चा, महिला और पुरुष सब कर सकते हैं। जब मालिक ने धार बहा दी तो उसके बीच में कौन सा रोड़ा या पत्थर आएगा जो अटका सकता है। अंग्रेजी का एक शब्द है इंटर्रेग्नम, जो न जाने कहां से ले आए हैं। यह क्या चीज है। तुम लोग तो इसको मतलब भी नहीं जानते होंगे।

साधु गुरु और संत सतगुरु उद्धार कर सकते हैं

स्वामी बाग वाले कहते हैं कि 50 साल पहले जो गुरु थे उनका गुरुमुख अदृश्य हो गया है। जब संत प्रगट नहीं हुए तब मालिक अदृश्य था, जब संत प्रगट हो गए तो मालिक फिर कैसे अदृश्य हो गया। मैं उन सतसंगियों को यह स्पष्ट कर देना चाहता हूं कि राधास्वामी मत वक्त गुरु के बिना नहीं ठहरता। यह गुरु मत है और गुरु वह होना चाहिए जो शब्द रूपी है, जो स्वयं शब्द कमाता है, शब्द का भेद दे सकता है, जिसने चढ़ाई चढ़ी है और कुल मालिक से एक हो रहा है तथा जो राधास्वामी धाम से आता है या राधास्वामी धाम में पहुंचता है या सत्तलोक से आता है और सत्तलोक में पहुंचता है- ऐसा गुरु पूरा गुरु कहलाता है। जो पार ब्रह्मांड तक पहुंचता है या वहां से आता है उसको साध कहते हैं। साधु गुरु और संत सतगुरु यह दो उद्धार कर सकते हैं।

जो सार बचन, प्रेम बानी और प्रेम पत्र पढ़ते हैं..

राधास्वामी नाम का जो सुमिरन करते हैं, सार बचन, प्रेम बानी और प्रेम पत्र पढ़ते हैं, जिन्होंने किसी किसी  चैतन्य पुरुष (वक्त गुरु) से उपदेश लिया है और राधास्वामी दयाल के अलावा कुछ नहीं मानते हैं, ऐसे विरही जब अंतर में पुकार करते हैं तो मालिक स्वयं प्रकट होते हैं। अगर विरह और बेकली बहुत तगड़ी नहीं है और इसी बीच में अधूरे गुरु मिल जाते हैं तो वह विरह जाती रहेगी लेकिन यदि वह बहुत तगड़ी है तो उसको पूरा गुरु जरूर मिलेगा।