Radhasoami Guru दादा जी महाराज के अनमोल बचन -44: उतना ही काम करो जितना तुम्हारी सेहत काम करे

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राधास्वामी मत (Radhasoami Faith) के प्रवर्तक परम पुरुष पूरन धनी स्वामीजी महाराज (Soamiji Maharai) और परम पुरुष पूरन धनी हजूर महाराज (Hazur maharaj) ने इस नश्वर संसार में इस बात के लिए अवतार धारण किया कि जीवों का उद्धार हो सके। उन्होंने जीवों पर अनोखी दया लुटाई, बचन बानी के माध्यम से जीवों को अपने चरनों में खींचा, चेताया और उनका कारज बनाया। उन्होंने गुरुभक्ति और सतगुरु सेवा पर भी विशेष बल दिया और स्पष्ट रूप से कह दिया कि जब तक संपूर्ण जगत का उद्धार नहीं होता, धार की कार्यवाही निरंतर जारी रहेगी, वक्त के गुरु जीवों को चेताते रहेंगे। तब से लेकर आज तक यह सिलसिला जारी है और हजूर महाराज के घर हजूरी भवन, पीपल मंडी, आगरा (Hazuri Bhawan, Peepal mandi, Agra) में वर्तमान सतगुरु दादाजी महाराज (Radha Soami guru Dadaji maharaj) जीवों पर अपनी दया फरमा रहे हैं, उनका भाग जगा रहे हैं। दादा जी महाराज (Prof Agam Prasad Mathur former Vice chancellor Agra university) अपने सतसंग (Radhasoami satsang) में नित्य नवीन बचन फरमाते हैं जिससे यह जीव चेते और चरनों में लगे। उन्हीं बचनों में से कुछ अप्रकाशित वचन पुस्तिका ‘दादा की दात’ में जीवों के कल्याण के वास्ते दिए गए हैं। ये वचन न केवल जीवों के प्रीत प्रतीत को बढ़ाएंगे वरन उनका कारज भी बनाएंगे। यहां हम प्रस्तुत कर रहे हैं दादाजी महाराज के बचनों की श्रृंखला।

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मालिक को केवल निराकार या कोई है मालिक, ऐसा करके नहीं मारना चाहिए। मालिक को सदा अपने संग मानकर अंतर में उसको खोजना चाहिए। जितनी तड़प अंतर में बढ़ती जाएगी वह मालिक तुमको अंतर में भी मिलेगा और बाहर भी तुम्हारा संयोग ऐसा बनाएगा कि सत्संग से किसी वजह से भी नाता जुड़ जाएगा। एक दफा जो नाता जुड़ता है तो वह टूटता नहीं है। रिश्तेदारों में अभाव हो जाता है, तनाव हो जाते हैं, झगड़े और फसाद भी हो जाते हैं, दोस्तों की मोहब्बतों पर भी भरोसा नहीं होता, ज्यादातर तो मतलबी दोस्त हैं आजकल, अपना मतलब निकला और गायब हो गए, ऐसे जो प्रीत लगाते फिरते हो वह किसी काम की नहीं है। इसलिए क्यों न हम पहले समझ लें कि इनसे ज्यादा आशा रखना फिजूल है। जिस प्रकार से यह आपसे व्यवहार करते हैं उसी प्रकार से आप प्यार इनको कीजिए। अनुभव की बात जरूर सिखाइए, सच्ची बात जरूर सिखाइए, लेकिन यह पूरा भरोसा मत करिए कि यह समय पड़ने पर हर वक्त आपके साथ रहेंगे। राधास्वामी दयाल हर वक्त आपके संग रहेंगे। गुरु मिल जाएंगे तो उनका संग हमेशा साथ रहेगा। इसलिए क्यों न उनसे प्रीत और प्रतीत को बढ़ाया जाए, अपने रिश्ते बनाए जाएं और उन पर भरोसा करके देखा जाए। आजकल मजबूरियां हैं- एक तो काम ही मजबूरी है, बच्चे पालने की मजबूरी है, उनको पढ़ाने-लिखाने की मजबूरी है। उनसे स्कूल के समय से आप बँधे हुए हैं, यानी वह सब बंधन है तो फिर आपके पास मालिक को याद करने का समय कहां है, लेकिन समझना चाहिए कि राधास्वामी दयाल के चरनों की प्रीत जो है वह सबसे आवश्यक है। काम पर अगर हम देर से भी जाएंगे तो कोई न कोई इलाज मालिक कर देंगे और इसका भी उन्होंने बहुत खुलासा किया है, तरह-तरह से समझाया है लेकिन समझने वाला तो हो। अनुभव के आधार पर नवयुवकों को मैं सलाह देता हूँ कि उतना ही काम करो जितना तुम्हारी सेहत काम करे। सबसे जरूरी है कि सत्संग में लगिए, अनुभवी का संग कीजिए। जिसको आपसे ज्यादा अनुभव है उसका संग करना ठीक है, उससे आदान-प्रदान होता है और उसी की जरूरत है। प्रेमी से आदान-प्रदान होकर प्रेम ही तो जागेगा, प्रीत और प्रतीत ही तो बढ़ेगी। राधास्वामी दयाल को मानने वाले से मिलेंगे तो हमारी प्रीत राधास्वामी दयाल के चरनों में बढ़ेगी। जितनी प्रीत और प्रतीत उनके चरनों में बढ़ती जाएगी उसका फायदा इनको खुद ब खुद मिलता चला जाएगा। सम्हाल तो होगी, अब सम्हल जाएं तो बहुत बढ़िया है, नहीं सम्हलेंगे तो सम्हाले तो जाएंगे। इसलिए एक बात और निश्चित रूप से जान लीजिए कि जो मालिक के चरनों में लगा हुआ है उसको अपने बच्चों की ज्यादा चिंता नहीं करनी चाहिए, क्योंकि उनकी चिंता उनके खानदान के परम पुरुष पूरन धनी राधास्वामी दयाल को है।

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सबको सत्संग करना चाहिए। संत सतगुरु का संग मिल जाए यह बहुत बड़ी बात। साध संग मिल जाए तो उससे भी फायदा होगा। प्रेमीजन के संग से भी फायदा होगा। आपस में परमार्थ की चर्चा से भी फायदा होगा। सत्संग में जो नित्य बचन आते हैं या शब्द आते हैं, अगर हम उन्हें अपने घट में उतारेंगे तो हमको मालूम होगा कि हमारी व्याकुलता का कारण क्या है। हमको यह भी मालूम पड़ेगा कि मालिक का जलवा कैसा है। मालिक सब जगह है। वह हमारे घर में भी है यानी मालिक का दर्शन घट में मिल सकता है। इसके लिए नाम का सुमिरन है, गुरु स्वरूप का ध्यान है और फिर भजन की कमाई है। यह काम हर व्यक्ति को बहुत सोच समझकर, बड़े लाड़ से, बड़ी तन्मयता के साथ करना चाहिए। इसको जल्दबाजी या एक रस्म के तौर पर करना करनी में दाखिल नहीं है। पूरी तड़प के साथ, पूरे उत्साह के साथ, पूरे शौक के साथ, पूरे चाव के साथ, पूरे प्यार के साथ परमार्थी कार्रवाई करनी चाहिए। सत्संग में आकर बैठे तो होशियार रहिए। सत्संग में आने से अपनी हालत की पहचान होती है और फिर अपने को सुधारने की बहुत कुछ गुंजाइश रहती है, क्योंकि जो दुनिया का सगं करना पड़ता है, कुछ तो मजबूरी में करना पड़ता है, कुछ संग गैरजरूरी भी होता है। तरह-तरह के भोग विलास में लगने का शौक पैदा होना और उसके लिए घर-बार को छोड़कर उनके संग मिल जाना, सबसे बेखबर हो जाना और इसके बाद उनको क्या-क्या तकलीफ मिलती है, वह सब जान रहे हैं। इसलिए सब लोगों को यह जरूरी है कि प्रीत और प्रतीत कुलमालिक राधास्वामी दयाल के चरनों में पैदा करने का जतन करें। उसका जतन है सत्संग। उसका जतन है राधास्वामी दयाल को हर वक्त हाजिर नाजिर समझकर यह समझना कि जो काम भी तुम कर रहे हो, उसको मालिक देख रहे हैं।