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Radhasoami Guru दादा जी महाराज के अनमोल बचन -46: घर में शांति कैसे रखें

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राधास्वामी मत (Radhasoami Faith) के प्रवर्तक परम पुरुष पूरन धनी स्वामीजी महाराज (Soamiji Maharai) और परम पुरुष पूरन धनी हजूर महाराज (Hazur maharaj) ने इस नश्वर संसार में इस बात के लिए अवतार धारण किया कि जीवों का उद्धार हो सके। उन्होंने जीवों पर अनोखी दया लुटाई, बचन बानी के माध्यम से जीवों को अपने चरनों में खींचा, चेताया और उनका कारज बनाया। उन्होंने गुरुभक्ति और सतगुरु सेवा पर भी विशेष बल दिया और स्पष्ट रूप से कह दिया कि जब तक संपूर्ण जगत का उद्धार नहीं होता, धार की कार्यवाही निरंतर जारी रहेगी, वक्त के गुरु जीवों को चेताते रहेंगे। तब से लेकर आज तक यह सिलसिला जारी है और हजूर महाराज के घर हजूरी भवन, पीपल मंडी, आगरा (Hazuri Bhawan, Peepal mandi, Agra) में वर्तमान सतगुरु दादाजी महाराज (Radha Soami guru Dadaji maharaj) जीवों पर अपनी दया फरमा रहे हैं, उनका भाग जगा रहे हैं। दादा जी महाराज (Prof Agam Prasad Mathur former Vice chancellor Agra university) अपने सतसंग (Radhasoami satsang) में नित्य नवीन बचन फरमाते हैं जिससे यह जीव चेते और चरनों में लगे। उन्हीं बचनों में से कुछ अप्रकाशित वचन पुस्तिका ‘दादा की दात’ में जीवों के कल्याण के वास्ते दिए गए हैं। ये वचन न केवल जीवों के प्रीत प्रतीत को बढ़ाएंगे वरन उनका कारज भी बनाएंगे। यहां हम प्रस्तुत कर रहे हैं दादाजी महाराज के बचनों की श्रृंखला।

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हमारा मत प्रेम और भक्ति का है। प्रेम, एक प्रेमी को अपने प्रीतम के अलावा और किसी का गुणानुवाद सुनने नहीं देगा। यह भी सही है कि 24 घंटे आप नहीं लगे रहते रह सकते। आपका रोजगार नहीं छुड़ाया जाता। आपका मनोरंजन नहीं छुड़ाया जाता। नशे की चीजों से परहेज करें। अपनी गृहस्थी को ठीक प्रकार से चलाएं। घर में शांति रहनी चाहिए और वह शांति बहुत कुछ आपके रवैये पर निर्भर करती है। आप खुद क्रोध करेंगे तो क्रोध की ज्वाला उठेगी और क्रोध जब आता है तो अपना आपा खो जाता है। इसलिए कहना यह है पुरुषों से कि अपने घर में शांति व्यवस्थित करने के लिए आपको बर्दाश्त भी करनी पड़ेगी और दृढ़ता भी दिखानी पड़ेगी। अपने सुमिरन, ध्यान और भजन पर ज्यादा ध्यान देना होगा। अगर यह काम महिलाएं करने लग जाएं, भजन और ध्यान पर अधिक जोर दें तो फिर कोई कुचाल नहीं चलेगी। आपके अंदर भी ऐसी क्षमता हो जाएगी कि आजकल के आधुनिक माहौल में जो बच्चे हमारे फंसते चले जा रहे हैं उनके ऊपर नकेल लग जाएगी । जमाना ऐसा नहीं है कि बच्चों को बहुत ज्यादा स्वच्छंदता दे दी जाए। थोड़ा नियंत्रण रखना पड़ेगा लेकिन नियंत्रण तब रख सकेंगे जब आप खुद नियंत्रित होंगे। खुद के नियंत्रित होने के लिए नाम का सुमिरन और गुरु स्वरूप का ध्यान रखकर करना पड़ेगा। यहां पहले आपका परमार्थ देखा जाएगा, तब आपका स्वार्थ देखा जाएगा। लोग स्वार्थ यहां पहले लेकर आते हैं। कोई बात नहीं है, अगर उनको परमार्थ की इच्छा है तो वह स्वार्थी परमार्थी कहलाएंगे और एक दिन परमार्थी बन जाएंगे।

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यह जो बचन की धार है उसमें सराबोर हो जाना चाहिए। जैसे कि गर्मियों के बाद जब बारिश आएगी तो उसमें नहाने में बहुत अच्छा मालूम होता है, इसी तरह से जब संत या साध बचन फरमाते हैं तो उसमें से धार निकलती है और उसमें नहाना चाहिए, तो उसमें वही आनंद आएगा जैसा कि पहली बरसात में आता है। दुनिया में तपिश है और सुख भी दुख रूप है। किसी तरह से यहां कोई आराम नजर नहीं आता है। बीमारी-हारी पीछा नहीं छोड़ती। कष्ट और क्लेश उठाने पड़ते हैं। कुछ अपने कर्मों की वजह से होते हैं तो कुछ उनकी वजह से होते हैं जिनके साथ हमारा मेल-मिलाप होता है या अपने बच्चों की वजह से होते हैं या अपने नातेदार और रिश्तेदारों और कुटुंब की वजह से होते हैं। यह कारखाना बहुत लंबा है इसका कोई ठिकाना नहीं है। जाने कितने लोगों से मिलना होता है, देखना होता है, उनकी नजर आपके ऊपर पड़ती है। एक बात याद रखनी चाहिए कि सबकी नजर में मेहर भरी नहीं होती, उसमें ईर्ष्या होती है, जो दुख पहुंचाती है। जो नजर-ए मेहर आलूदा है, वह मालिक की है या उनके प्रतिनिधि संत सतगुरु यानी उनके पुत्र संत सतगुरु की है। उनकी नजर और इन दुनियादारों की नजर में फर्क है लेकिन इस फर्क को समझते नहीं हैं। यही मूर्खता या अनसमझता है। मालिक या उसके प्रतिनिधि का मिलान दुनिया में और किसी से नहीं हो सकता। इसलिए कहा गया है कि आप सतसंग कीजिए, पहले राधास्वामी मत को समझिए, राधास्वामी दयाल की महिमा को जानिए, राधास्वामी को कुल मालिक मानिए, फिर उस प्रीत और प्रतीत को पहले बढ़ाइए और फिर सतसंग में उनके साथ थोड़ा बहुत प्रीत का रिश्ता रखिए। राधास्वामी दयाल तो कहते हैं कि यह तो दीन-गरीबी का मत है, दीनता लाओ। राधास्वामी दयाल के सामने हम सब दीन-अधीन हैं। उनके चरनों में आए हैं अपना उद्धार कराने के लिए। बहुत से लोग कहते हैं कि हम बैठते हैं लेकिन हमको अंतर में दर्शन नहीं होते तो जरा गहरे बैठिए। ऐसा नहीं हो सकता कि अंतर में उनका दर्शन ना हो। उसके लिए आपकी आंख खुली होनी चाहिए। आपका एक दिन भी सही अभ्यास बनेगा यानी मन और चित्त में और कोई दुनिया की गुनावन नहीं उठेगी, आप गुरु स्वरूप में लीन होंगे और उनको अगुवा करके आगे चलेंगे, आप चल नहीं कर सकते यह पक्की बात है, वही चलाएंगे, वो ही बढ़ाएंगे तो फिर उनको आगे रखने में क्या हर्ज है। ध्यान में बैठने से पहले उस स्वरूप को खूब ध्यान से देखिए जिस स्वरूप को आप देखते चले आ रहे हैं, उसी में थोड़ा ध्यान लग सकता है। प्यार होता है सजीव, इसलिए यह मत सजीव है। यहां पर इसीलिए वक्त गुरु की महिमा कही गई है। उनके संग से आपको लाभ होगा, नुकसान तो कुछ भी नहीं होगा।