Dadaji maharaj

राधास्वामी गुरु Dadaji Maharaj के अनमोल बचन -25: नियम से सतसंग क्यों करना चाहिए

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राधास्वामी मत (Radhasoami Faith) के प्रवर्तक परम पुरुष पूरन धनी स्वामीजी महाराज (Soamiji Maharai) और परम पुरुष पूरन धनी हजूर महाराज (Hazur maharaj) ने इस नश्वर संसार में इस बात के लिए अवतार धारण किया कि जीवों का उद्धार हो सके। उन्होंने जीवों पर अनोखी दया लुटाई, बचन बानी के माध्यम से जीवों को अपने चरनों में खींचा, चेताया और उनका कारज बनाया। उन्होंने गुरुभक्ति और सतगुरु सेवा पर भी विशेष बल दिया और स्पष्ट रूप से कह दिया कि जब तक संपूर्ण जगत का उद्धार नहीं होता, धार की कार्यवाही निरंतर जारी रहेगी, वक्त के गुरु जीवों को चेताते रहेंगे। तब से लेकर आज तक यह सिलसिला जारी है और हजूर महाराज के घर हजूरी भवन, पीपल मंडी, आगरा (Hazuri Bhawan, Peepal mandi, Agra) में वर्तमान सतगुरु दादाजी महाराज (Radhasoami guru Dadaji maharaj) जीवों पर अपनी दया फरमा रहे हैं, उनका भाग जगा रहे हैं। दादा जी महाराज (Prof Agam Prasad Mathur foemer Vice chancellor Agra university) अपने सतसंग (Radhasoami satsang) में नित्य नवीन बचन फरमाते हैं जिससे यह जीव चेते और चरनों में लगे। उन्हीं बचनों में से कुछ अप्रकाशित वचन पुस्तिका ‘दादा की दात’ में जीवों के कल्याण के वास्ते दिए गए हैं। ये वचन न केवल जीवों के प्रीत प्रतीत को बढ़ाएंगे वरन उनका कारज भी बनाएंगे। यहां हम प्रस्तुत कर रहे हैं दादाजी महाराज के बचनों की श्रृंखला।

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जिन पर सतगुरु की खास दया है, उनका तो कुछ कहना ही नहीं है, एक दृष्टि से तार दें लेकिन यह भी याद रखो कि इस दुनिया में वक्त के गुरु भी बहुत साधारण बररते हैं, कोई न कोई चिंता, कोई न कोई फिक्र अपने साथ बांधे रहते हैं ताकि सतसंगियों को भी ताकीद हो कि बहुत ज्यादा संसारी चीजों की चिंता न की जाए, लेकिन उसका उपाय जरूर करना चाहिए कैसे उपाधि है, व्याधि है, तो उसमें इलाज भी कराना है, निर्णय भी कराना है और फिर सबसे बड़ा झगड़ा मन के साथ है, यह लगने नहीं देता। इसलिए संत सतगुरु से अपना दर्द या हाल जरूर कहो। जो तकलीफ हो उसका भी वर्णन करो और परमार्थ में जो कोई विघ्न आता होवे, दर्शन अच्छे ने मिलते हों या दर्शन और ध्यान के वक्त इधर-उधर मन जाता होवे या कोई और सूरतें है और नजर आती होवें, तो तुमको एक बात बता देते हैं कि भजन के समय पर जितने अगले-पिछले जन्मों के किए हुए कर्म है, वह काटे जाते हैं, इसलिए उसका थोड़ा सा फल देते हैं। जो कभी -कभी ऐसी बात हो या रस न आवे, या मन उचाट हो जावे या किसी चीज देखकर घबरा जाओ तो उस समय थोड़ा बहुत अर्ज कर देना मालिक से बहुत जरूरी है कि हमको यह दिक्कतें होती हैं। वह उसका उपाय बताएंगे और वह उपाय बताने के लिए उन्होंने संत सतगुरु रूप धारण किया है और तशरीफ लाए हैं। अपनी बानी और वचन फरमा दिए और फिर यह कह दिया कि बानी पढ़ने से एक संग निर्मलता आती है, शांति मिलती है, चित्त शुद्ध होता है और जितनी देर बानी का पाठ होता है, रसीला पाठ, तो हर कड़ी के साथ थोड़ी बहुत चढ़ाई भी होती रहती है, क्योंकि फिक्र दूसरा इस समय दुनिया का नहीं सताता है। तो यह कितनी बड़ी बात है, इसलिए सतसंग नियम से करना चाहिए और अपने घर पर पाठ रसीला, तर्ज़ों को समझकर कीजिए।

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सब लोगों को राधास्वामी दयाल और संत सतगुरु की सच्ची सरन ग्रहण करनी चाहिए। इसमें फायदा है। मदद भी मिल रही है, दात भी है और जो कठिनाइयां हैं उनको जिक्र करके सुलझाया भी जा सकता है और उनके दर्शन मात्र से मन और चित्त संसार की तरफ से उदास होगा। उनको बराबर निहारने की चाह पैदा करनी चाहिए। इसको दुनिया के लोगों को देखने से नहीं मिलाना चाहिए। संतों की तरफ देखना निहारना कहलाता है और दुनिया की तरफ देखना फसाना कहलाता है, फसाना भी और फंसाना भी। फंसते भी हैं और उसके बाद फसाने भी बहुत होते हैं। कोई काम किया हो न किया हो, जरा किसी ने कदम बढ़ाया हो तो उसकी निंदा अधिक होती है। अब स्वामी जी महाराज ने फरमाया कि सतसंग में वही जीव जाएगा जो अधिकारी है। सतसंग में बैठने का अन-अधिकारी का कोई काम नहीं है। यह भी फरमाया कि उनके दरबार में कोई चौकीदार और पहरा नहीं रहता। तब आगे फरमाया कि निंदा ही चौकीदारी का काम कर देती है। जो निंदा से डरते हैं वह नहीं जाते और जिनको निंदा की परवाह नहीं है वह संतों के सतसंग में शामिल होते हैं और बिना किसी डर के दर्शन करते हैं, वचन सुनते हैं। जितना हो सके संतों का दर्शन करना चाहिए, दृष्टि से दृष्टि मिलानी चाहिए, उन हाव-भाव को देखना चाहिए कि जो समय पर दया करके वह दिखाते हैं, वह रूप भी बदलते हैं और स्वरूप में भी तरह-तरह की रोशनी पैदा करते हैं। देखो हजूर महाराज के स्वरूप को, सादी पोशाक में देखो, मारवाड़ी पोशाक में देखो, सिंधी पोशाक में देखो, राजस्थानी पोशाक में देखो, बंगाली पोशाक में देखो और फिर आगरे की पोशाक में देखो। हर रूप में अलग आकर्षण है। इसी तरह से जब तक तुम को अपने वक्त के सतगुरु से प्रीत और प्रतीत पूरी नहीं होगी और निडरता से सत्संग नहीं करोगे, किसी की चिंता ना करके, न नेक नामी से डरना है, न बदनामी से डरना है तो ऐसा कर लिया, तब फिर कभी उनके संग से खाली नहीं रहोगे, वो तुमको परमार्थी दौलत से भर देंगे।