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Radhasoami Guru दादा जी महाराज के अनमोल बचन -61: सबसे बड़ा अपराध क्या है?

PRESS RELEASE

राधास्वामी मत (Radhasoami Faith) के प्रवर्तक परम पुरुष पूरन धनी स्वामीजी महाराज (Soamiji Maharai) और परम पुरुष पूरन धनी हजूर महाराज (Hazur maharaj) ने इस नश्वर संसार में इस बात के लिए अवतार धारण किया कि जीवों का उद्धार हो सके। उन्होंने जीवों पर अनोखी दया लुटाई, बचन बानी के माध्यम से जीवों को अपने चरनों में खींचा, चेताया और उनका कारज बनाया। उन्होंने गुरुभक्ति और सतगुरु सेवा पर भी विशेष बल दिया और स्पष्ट रूप से कह दिया कि जब तक संपूर्ण जगत का उद्धार नहीं होता, धार की कार्यवाही निरंतर जारी रहेगी, वक्त के गुरु जीवों को चेताते रहेंगे। तब से लेकर आज तक यह सिलसिला जारी है और हजूर महाराज के घर हजूरी भवन, पीपल मंडी, आगरा (Hazuri Bhawan, Peepal mandi, Agra) में वर्तमान सतगुरु दादाजी महाराज (Radha Soami guru Dadaji maharaj) जीवों पर अपनी दया फरमा रहे हैं, उनका भाग जगा रहे हैं। दादा जी महाराज (Prof Agam Prasad Mathur former Vice chancellor Agra university) अपने सतसंग (Radhasoami satsang) में नित्य नवीन बचन फरमाते हैं जिससे यह जीव चेते और चरनों में लगे। उन्हीं बचनों में से कुछ अप्रकाशित वचन पुस्तिका ‘दादा की दात’ में जीवों के कल्याण के वास्ते दिए गए हैं। ये वचन न केवल जीवों के प्रीत प्रतीत को बढ़ाएंगे वरन उनका कारज भी बनाएंगे। यहां हम प्रस्तुत कर रहे हैं दादाजी महाराज के बचनों की श्रृंखला।

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हर उस प्रेमीजन के प्रति खातिर का भाव होना चाहिए, बिरादरी का भाव होना चाहिए जैसे कि किसी परिवार में होता है। परिवार में एक कायदा है कि बड़े-बूढ़ों की इज्जत की जाती है, उनके साथ टकराव और बहस नहीं की जाती है, बराबर वालों से बात की जाती है, छोटों को प्यार दिया जाता है। आजादी के पहले यही रीत थी। इसी में बरतते थे। भले ही आजादी मिल गई हो लेकिन हमारे मौलिक नैतिक मूल्यों में, नैतिक सिद्धांतों में बहुत कमी आई है। अरे, दुख किस पर नहीं आते और कोई उसको क्या दूर कर सकता है लेकिन अपनी सद्भावनाएं, अपना प्यार तो जता सकते हैं, उनके साथ तो रह सकते हैं। वो लोग बहुत ना-शुकरे हैं और मालिक को वो जानबूझकर नाराज करते हैं, जो ऐसे समय पर अपने आपको अलेहदा करते हैं। याद रखिए जो समय आपको दुनिया से अलेहदा करने का है, वह निश्चित तौर पर आपका अपना है, उस समय कीजिए न भजन, भजन नहीं करते, उस समय कीजिए ना सुमिरन, तो सुमिरन नहीं करते, उस समय ध्यान कीजिए तो ध्यान नहीं करते, तब हर तरह की वासना सताती है। काम, क्रोध, लोभ, मोह और सबसे बढ़कर अहंकार। अपनी बात को सबसे मनवाना, खुद किसी की बात को न मानना, इससे बड़ा अपराध कोई दूसरा नहीं है। जानना चाहिए कि सत्संग के हाकिम, सत्संग के मालिक हजूर महाराज हैं और सब उनके सेवक हैं। जिसको जो सेवा उन्होंने दी है, वो उनकी दया और मेहर है। जो सेवक हैं तो आपके अंदर दीनता आनी चाहिए, भक्ति में दीनता है, भक्त वही है जो दीन- अधीनी करता हो।

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जैसे ही सतगुरु से उपदेश मिलता है, आपका संबंध काल से कट जाता है। उसके बाद आपके उद्धार की यह कार्रवाई जितने भी दिन जारी रहे, लेकिन आप एक दिन परम पद को पाने के अधिकारी बन जाते हैं। यह कितना बड़ा भाग है हम सब लोगों का जो राधास्वामी दयाल की चरन सरन में आए हैं। इसलिए चाहिए कि सतगुरु का निजी सत्संग करें, रस लें और किसी से अदावत न करें। किसी का बुरा ना चाहें। अपनी और देखें। उन सब औगुनों को जो भरे हुए हैं, उनको हटाने का प्रयास करें। बहुत सा काम ऐसा होता है कि जिसका आप बीड़ा उठा लें तो पूरा करके छोड़ते हैं। खासतौर पर दुनिया में लोग अजीबोगरीब कार्यवाही करते हैं, उसमें अपना पूरा समय लगा देते हैं और कुछ न कुछ अचरजी चीज दिखा देते हैं। इससे मालूम हुआ कि कुव्वत है, ताकत है। अब सवाल यह है कि ताकत कहां लगानी है। दुनिया में नामवरी के लिए या दुनिया में कोई उपयोगी कार्यवाही करने के लिए या लोगों को आराम पहुंचाने के लिए है तो वह शुभ कर्म में दाखिल होगी, उसका फल मिलेगा, चंद दिनों का आनंद भी मिलेगा, वह थोड़ा बहुत ऊपर के स्थान पर भी मिल सकता है, अगला जन्म भी हो सकता है इससे बेहतर होगा, लेकिन जिन लोगों ने सच्ची चरन-सरन ग्रहण कर ली है उनका निश्चित रूप से एक दिन पूरा उद्धार होगा। उनको राधास्वामी दयाल के चरनों में बासा मिलेगा। उनका अभ्यास निर्विघ्न बनता जाएगा। वो बहुत कुछ प्राप्ति इसी जन्म में कर लेंगे, नहीं तो आइंदा के जन्मों में करेंगे और एक दिन जरूर सत्तपुरुष राधास्वामी दयाल के चरनों में मिलेंगे। इसका विश्वास, इसकी प्रतीत सब सत्संगियों को पूरे तौर पर लाना चाहिए।