World Leprosy day

World Leprosy day कहीं आपको कोढ़ तो नहीं है, क्या है पहचान और निदान

PRESS RELEASE

आज लेप्रोसी दिवस है। कुष्ठ रोग को समर्पित दिन। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी द्वारा कुष्ठ रोगियों को समाज की मुख्यधारा से जोड़ने के लिए किए गए प्रयासों की वजह से हर वर्ष 30 जनवरी को उनकी पुण्यतिथि पर कुष्ठ रोग निवारण दिवस के रूप में मनाया जाता है| हालांकि यह जनवरी के आखिरी रविवार को मनाया जाता है|अगर आखिरी रविवार 30 जनवरी को नहीं होता है तो अगले रविवार को उसे बनाया जाता है। इस कारण इस बार  लेप्रोसी डे या कुष्ठ रोग निवारण दिवस 31 जनवरी 2021 को मनाया जाएगा| दुनिया के 60 फीसदी कुष्ठ रोगी भारत में हैं।

अगर हम इतिहास को पलट कर देखें लोगों की बीच इसको एक अभिशाप और शाप के रूप में देखा जाता है| प्राचीन हिन्दू धर्मग्रंथों के जानकार इस बात को भलीभांति जानते हैं कि द्वापर युग में भगवान श्री कृष्ण के बेटे सांबा को कोढ़ी  हो जाने का शाप मिला था यानी कुष्ठ रोगी बन जाने का शाप था| इसीलिए हमारी सोसाइटी में लंबे समय तक इस बीमारी को शाप या भगवान द्वारा दिया गया दंड माना जाता रहा। लेकिन ऐसा नहीं है कुष्ठ रोग या कोढ़ एक धीमी रफ्तार से होने वाला बैक्टीरिया के कारण यह बीमारी फैलती है जिसे माइक्रो बैक्टीरियल लेप्रोसी  कहा जाता है| इसीलिए इस बीमारी का इंग्लिश नेम लेप्रोसी रखा गया है| ब्राजील, इंडोनेशिया, कीनिया और भारत सबसे अधिक कुष्ठ रोग वाले देश हैं लेकिन जिस तरीके से आज दुनिया के अधिकतर देशों ने इस पर नियंत्रण पा लिया है वह काबिले तारीफ है|

 एक वक्त था जब इस बीमारी को दुनिया में खतरनाक बीमारी मानी जाती थी लेकिन आज मेडिकल की कई सावधानियां और वैक्सीन से इसके होने को बचाया जा सकता है | इतनी धीमी गति से इसके बैक्टीरिया फैलते हैं कि तीन-चार साल में सही प्रकार से इसकी वस्तुस्थिति पता चल पाती है |अब धीरे-धीरे लोगों के संज्ञान में यह बात आती जा रही है यह किसी भी ग्रसित व्यक्ति के हाथ मिलाने से या उसे छू लेने से बीमारी बिल्कुल नहीं होगी| जिसे एक स्वस्थ व्यक्ति इस्तेमाल में ले रहा है। अगर उसके खांसने से या कोढ़ी व्यक्ति के बैक्टीरीया हवा में मौजूद नमी के साथ बहकर खुद डेवलप कर लेते हैं| आप उस हवा में सांस लेकर नमी के उन कणों को अपने अंदर लेते हैं तो इस तरह की स्थिति बन सकती है कि आप इस बीमारी से शायद ग्रसित हो जाएं| अतः आपको इस बात का ध्यान रखना चाहिए। रोगी के बैक्टीरिया की हवा में फैलने से या उस इस्तेमाल की गई चीज में उस व्यक्ति पकड़ से बैक्टीरिया ग्रो करने पर किसी स्वस्थ व्यक्ति को अगर वह इस्तेमाल में ले रहा है तो होने की संभावना बढ़ जाती है| कोढ़ के दौरान हमारे शरीर पर सफेद चकत्ते यानी निशान पड़ने लगते हैं| यह निशान सुन्न होते हैं यानी इनमें किसी भी तरह का टेंशन नहीं होता है| अगर आप इस तरह पर कोई नुकीली चीज वस्तु चुभो के देखेंगे तो आपको दर्द का अहसास नहीं होगा | यह पेच या धब्बे शरीर के किसी भी हिस्से में होने शुरू हो जाती हैं जो ठीक से इलाज न कराने पर पूरे शरीर में फैल जाते हैं| शरीर के जिस स्थान पर कोढ़ के निशान होते हैं वहां पर गर्म ठंडे मौसम का या पानी का या चोट लगने का या जलने का कटने का पता नहीं चलता है| जिससे धीरे-धीरे यह बीमारी भयानक रूप ले लेती है और शरीर गलने लगता है|आंखों पर भी इसका असर पड़ता है उनके सेंसेशन और सिग्नल्स को प्रभावित करता है| अगर हम अपने घर के आस-पास इस तरह का व्यक्ति है जिसकी आंखों में लगातार पानी आ रहा है हाथ पैर में छाले हो रहे हो शरीर के कुछ हिस्से में गर्म ठंडे का एहसास नहीं हो रहा हो या शरीर सुन्न व घाव बढ़ रहे है तो ऐसी स्थिति में बिना देर किए तुरंत डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए| अगर लेप्रोसी या कुष्ठ रोग का पता प्रारंभिक अवस्था में ही चल जाता है और इसका सही तरीके से इलाज करना शुरू कर दिया जाता है तो 6 महीने से लेकर 2 साल के अंदर इस बीमारी को पूरी तरीके से खत्म किया जा सकता है।

कुष्ठ रोग उपचार योग्य है तथा प्रारंभिक अवस्था में उपचार विकलांगता रोक सकता है।इस बीमारी के लिए हमें घरेलू इलाज के चक्कर में ना पड़कर एक अच्छे एलोपैथिक या होम्योपैथिक डॉक्टर को दिखाना चाहिए ताकि वह आपको सही इलाज करके आपको इस बीमारी से मुक्त करा सकता है| यहां पर मैं आगरा के जालमा का जिक्र करने की जरूरत महसूस करता हूं जिस तरीके से जालमा के डॉक्टरों ने कुष्ठ रोग पर कड़ी मेहनत और रिसर्च से इस पर ना केवल नियंत्रण पाया है बल्कि भविष्य में इसकी गिरफ्त में आने वाले रोगियों को भी बचाने के अनेक उपाय किए हैं| आज भारत में 10000 में एक व्यक्ति से भी कम का आंकड़ा कुष्ठ रोगियों का रह गया है लेकिन अभी हमें अपनी सजगता से और डॉक्टरों की मदद से इसको पूरी तरह से खत्म करना है| महात्मा गांधी जी द्वारा राष्ट्रीय कुष्ठ उन्मूलन कार्यक्रम के तहत देश में

कुष्ठ रोग को खत्म करने की कोशिश को व सच्ची श्रद्धांजलि देने के लिए अभी निरंतर काम करना होगा| आपको याद है इस कार्यक्रम को सन 1955 में उनके इस कार्य को सच्ची श्रद्धांजलि देने के रूप में शुरू किया था| भारत में कुष्ठ रोग निवारण दिवस पर ही नहीं पखवाड़े के रूप में जगह-जगह पर कैंप लगाकर रोगियों का सरकारी व अर्ध सरकारी व सामाजिक संस्थाओं द्वारा न केवल पता किया जाता है बल्कि समाज में इसके प्रति जागरूकता बढ़ाई जाती है और लोगों को यह भी सूचित किया जाता है कि यह कोई छुआछूत की बीमारी नहीं है| आशा, एएनएम व आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं द्वारा प्रचार-प्रसार सामग्री वितरित कर जागरूक किया जाएगा। इसके साथ ही कुष्ठ रोग विभाग की टीम घर-घर जाकर लोगों में लक्षण नजर आने पर जांच करेगी। प्रारंभिक दौर में इस रोग से पीड़ित कई शहरों में अलग से कॉलोनियों की भी बसावट की गई है| आज हमें अपनी सजगता सहनशीलता जागरूकता से इस रोग का न केवल निवारण करना है बल्कि इस पर जीत हासिल करनी है| तभी राष्ट्रपति महात्मा गांधी जी की हम सच्ची श्रद्धांजलि अर्पित कर पाएंगे

राजीव गुप्ता जनस्नेही

लोक स्वर, आगरा