Dadaji maharaj agra

राधास्वामी गुरु दादाजी महाराज के अनमोल बचन -15: जिससे जितनी बने इतनी सेवा कीजिए

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राधास्वामी मत (Radhasoami Faith) के प्रवर्तक परम पुरुष पूरन धनी स्वामीजी महाराज (Soamiji Maharai) और परम पुरुष पूरन धनी हजूर महाराज (Hazur maharaj) ने इस नश्वर संसार में इस बात के लिए अवतार धारण किया कि जीवों का उद्धार हो सके। उन्होंने जीवों पर अनोखी दया लुटाई, बचन बानी के माध्यम से जीवों को अपने चरनों में खींचा, चेताया और उनका कारज बनाया। उन्होंने गुरुभक्ति और सतगुरु सेवा पर भी विशेष बल दिया और स्पष्ट रूप से कह दिया कि जब तक संपूर्ण जगत का उद्धार नहीं होता, धार की कार्यवाही निरंतर जारी रहेगी, वक्त के गुरु जीवों को चेताते रहेंगे। तब से लेकर आज तक यह सिलसिला जारी है और हजूर महाराज के घर हजूरी भवन, पीपल मंडी, आगरा (Hazuri Bhawan, Peepal mandi, Agra) में वर्तमान सतगुरु दादाजी महाराज (Radhasoami guru Dadaji maharaj) जीवों पर अपनी दया फरमा रहे हैं, उनका भाग जगा रहे हैं। दादा जी महाराज (Prof Agam Prasad Mathur foemer Vice chancellor Agra university) अपने सतसंग (Radhasoami satsang) में नित्य नवीन बचन फरमाते हैं जिससे यह जीव चेते और चरनों में लगे। उन्हीं बचनों में से कुछ अप्रकाशित वचन पुस्तिका ‘दादा की दात’ में जीवों के कल्याण के वास्ते दिए गए हैं। ये वचन न केवल जीवों के प्रीत प्रतीत को बढ़ाएंगे वरन उनका कारज भी बनाएंगे। यहां हम प्रस्तुत कर रहे हैं दादाजी महाराज के बचनों की श्रृंखला।

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जिससे जितनी बने इतनी सेवा कीजिए। जिनके पास धन है उनको आमदनी में 1/10 या 1/16 परमार्थ में लगाना चाहिए। जिनके पास धन नहीं है वो तन की सेवा कर सकते हैं। रसोई की सेवा से लेकर समाध की सेवा तक सेवा ही सेवा जारी है। इनमें से कोई भी अपनाई जा सकती है। राधास्वामी दयाल यह फरमाते हैं कि एक सतसंगी को सेवा के मामले में अरुचि नहीं होनी चाहिए यानी रुचि के साथ वो सेवा करे। गुरुद्वारे में आकर जितने भी ठरहते हैं आप, आपको कोई सेवा ले लेनी चाहिए, सेवादारों से ले लेनी चाहिए, कोई ऊंची सेवा मिले तो और नीची सेवा मिले तो क्या फर्क पड़ता है। मालिक ने सेवा के ऊपर बहुत जोर दिया है और सबको सेवा करनी है। तन की सेवा भी करनी है, मन की सेवा की सेवा भी बताई है, धन की सेवा भी बताई है और सुरत की सेवा भी बताई है। यानी सुरत को शब्द में लगाना, धुन में लगाना, नाम का सुमिरन करना, यह कीजिए रोज, ऊर्जा आएगी, और हर उस कर्म से जिसकी मनाही है बचिए। किसी किस्म का लालच जो मन में आता है माया के पदार्थों को देखकर, जो लुभाने वाला है, उस पर नियंत्रण रखिए, यह निहायत जरूरी है। मैं जोरदार अपील करता हूँ जो धन है उससे लोगों का फायदा हो, आपके दर से कोई निर्धन और भूखा वापस न लौटे।

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पहले सरन लेनी होगी तब करनी होगी, और थोड़ी सी प्रीत और प्रतीत भाव आए तो काम बनेगा। नीरस अभ्यास अच्छा नहीं लगता क्योंकि यह जितने योगी योगेश्वर थे सब नीरस थे और इसीलिए वह माया के हाथ से धोखा खा गए। यहां पर सरस भक्ति बताई जाती है यानी प्रीत और प्रतीत यहां अपने गुरु से, राधास्वामी दयाल से, राधास्वामी दयाल के साथ प्रीत और प्रतीत कैसे दृढ़ होगी जब तक कि अपने गुरु से प्रीत और प्रतीत नहीं बढ़ेगी। क्योंकि वह प्रीत और प्रतीत ख्याली है और यह व्यावहारिक है. यहां पर व्यावहारिकता पर ज्यादा जोर दिया गया है। प्रैक्टिकल मत है, क्या करना है, कहीं ना कहीं तो दृढ़ विश्वास रखना है, वो यह है कि कुल मालिक राधास्वामी दयाल हैं और उनका नाम राधास्वामी सच्चा ध्वन्यात्मक नाम है। इन चीजों पर पूरा विश्वास दृढ़ता के साथ होना चाहिए, और वह कुल मालिक हैं, उनके धाम में हमको जाना है और बीच में कहीं नहीं रुकना, और उसके लिए हम को किसी न किसी अभ्यासी गुरु की अत्यंत आवश्यकता है। इसलिए ढूंढिए, खोजिए और जब मिल जाएं तो ऐसे चिपट जाइए जैसे शहद के ऊपर मक्खी से चिपटती है, बस फिर एक- दो- तीन और मालिक के धाम में चौथा। एक-दो-तीन करते रहिएगा और चौथे में मालिक के धाम में पहुंचा दिया जाएगा।