कैसा ये मच रहा बवण्डर
कैसा ये मच रहा बवण्डर।
खेत किसानी दिखे सरेंडर।
फसल विपक्षी काटे सारे।
रचवाया ये महा ब्लंडर।।
कैसा ये मच रहा बवण्डर…….1
षड्यंत्र बड़ा है बाहर अंदर।
राजनीति हो रही भयंकर।
ईमान धर्म कुछ बचा नही है।
शर्म से मरते गांधी के बन्दर।।
कैसा ये मच रहा बवण्डर……2
किसान कभी ना करते धुँधर।
अन्नदाता ना कभी डिमांडर।
सेक रहा कोई और ही रोटी।
चूल्हा इनका उनका है सिलेंडर।।
कैसा ये मच रहा बवण्डर….3
देश के दुश्मन देश के अंदर।
फेंकते पॉलिटिक्स का मन्तर।
खड़े खड़े क्यों देखे सरकारें।
षड्यंत्रों पर चलवाओ हंटर।।
कैसा ये मच रहा बवण्डर…..4
कवि दिनेश अगरिया, आगरा
आगरा मोब.9758520520
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