Dadaji maharaj agra

राधास्वामी गुरु दादाजी महाराज के अनमोल बचन -16: नैतिकता का नया आदर्श बनाने की जिम्मेदारी सतसंगियों पर

PRESS RELEASE

राधास्वामी मत (Radhasoami Faith) के प्रवर्तक परम पुरुष पूरन धनी स्वामीजी महाराज (Soamiji Maharai) और परम पुरुष पूरन धनी हजूर महाराज (Hazur maharaj) ने इस नश्वर संसार में इस बात के लिए अवतार धारण किया कि जीवों का उद्धार हो सके। उन्होंने जीवों पर अनोखी दया लुटाई, बचन बानी के माध्यम से जीवों को अपने चरनों में खींचा, चेताया और उनका कारज बनाया। उन्होंने गुरुभक्ति और सतगुरु सेवा पर भी विशेष बल दिया और स्पष्ट रूप से कह दिया कि जब तक संपूर्ण जगत का उद्धार नहीं होता, धार की कार्यवाही निरंतर जारी रहेगी, वक्त के गुरु जीवों को चेताते रहेंगे। तब से लेकर आज तक यह सिलसिला जारी है और हजूर महाराज के घर हजूरी भवन, पीपल मंडी, आगरा (Hazuri Bhawan, Peepal mandi, Agra) में वर्तमान सतगुरु दादाजी महाराज (Radhasoami guru Dadaji maharaj) जीवों पर अपनी दया फरमा रहे हैं, उनका भाग जगा रहे हैं। दादा जी महाराज (Prof Agam Prasad Mathur foemer Vice chancellor Agra university) अपने सतसंग (Radhasoami satsang) में नित्य नवीन बचन फरमाते हैं जिससे यह जीव चेते और चरनों में लगे। उन्हीं बचनों में से कुछ अप्रकाशित वचन पुस्तिका ‘दादा की दात’ में जीवों के कल्याण के वास्ते दिए गए हैं। ये वचन न केवल जीवों के प्रीत प्रतीत को बढ़ाएंगे वरन उनका कारज भी बनाएंगे। यहां हम प्रस्तुत कर रहे हैं दादाजी महाराज के बचनों की श्रृंखला।

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आज का समाज ऐसा बिगड़ गया है कि वह किसी की इज्जत करना जानता ही नहीं है बल्कि बेज्जती करने के लिए तैयार है। समाज में हमारी इज्जत इन महिलाओं की इज्जत पर निर्भर करती है। अगर हमारी महिलाएं, हमारी लड़कियां, हमारी बहू सुरक्षित हैं तब समाज में हमारी इज्जत है। अगर कोई भी असामाजिक तत्व इनके ऊपर अतिक्रमण करते हैं तो हमको डूब मरने की जगह भी शायद ना मिले। जो खड़े हुए तमाशा देखते रहते हैं और एक महिला को सुरक्षित नहीं कर सकते वह पापी हैं, जो पाप कर रहा है वह तो पापी है ही और जो पाप होते हुए देख रहा है, वह कम पापी नहीं है। अरे क्या होगा, ज्यादा से ज्यादा चोटी तो खा जाएंगे, जान ही तो निकल जाएगी लेकिन अपनी किसी बहन-बेटी-बहू की इज्जत तो बचा लेंगे। मैं बार-बार इस बात पर जोर दे रहा हूं क्योंकि मैं देख रहा हूं कि कुसंगी का संग करके सुरत उलट गई है, जो 6 चक्रों में घूमती रहती है और तरह-तरह की शक्ति से मन और माया उस पर हावी होते हैं और यह दुष्कर्म कराते हैं। महिलाओं के साथ खिलवाड़ करने वाले यह नर नहीं हैं, नर पशु हैं। तो क्या राधास्वामी दयाल को मानने वाला, राधास्वामी मत को ग्रहण करने वाला, प्रेम और भक्ति को आदर्श मानने वाला खामोश रहेगा? एक बात याद रखो कि सुरत-शब्द-योग के अभ्यास से तुमको नित्य प्रति नई ऊर्जा मिलती है और उसका सही प्रयोग करने की आवश्यकता है। हमारा मत निष्क्रियता नहीं सिखाता है। कब तक सोच विचार में पड़े रहोगे? तुम लोगों के ऊपर आज नैतिकता का नया आदर्श बनाने की जिम्मेदारी है।

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जिससे जितनी बने इतनी सेवा कीजिए। जिनके पास धन है उनको आमदनी में 1/10 या 1/16 परमार्थ में लगाना चाहिए। जिनके पास धन नहीं है वो तन की सेवा कर सकते हैं। रसोई की सेवा से लेकर समाध की सेवा तक सेवा ही सेवा जारी है। इनमें से कोई भी अपनाई जा सकती है। राधास्वामी दयाल यह फरमाते हैं कि एक सतसंगी को सेवा के मामले में अरुचि नहीं होनी चाहिए यानी रुचि के साथ वो सेवा करे। गुरुद्वारे में आकर जितने भी ठरहते हैं आप, आपको कोई सेवा ले लेनी चाहिए, सेवादारों से ले लेनी चाहिए, कोई ऊंची सेवा मिले तो और नीची सेवा मिले तो क्या फर्क पड़ता है। मालिक ने सेवा के ऊपर बहुत जोर दिया है और सबको सेवा करनी है। तन की सेवा भी करनी है, मन की सेवा की सेवा भी बताई है, धन की सेवा भी बताई है और सुरत की सेवा भी बताई है। यानी सुरत को शब्द में लगाना, धुन में लगाना, नाम का सुमिरन करना, यह कीजिए रोज, ऊर्जा आएगी, और हर उस कर्म से जिसकी मनाही है बचिए। किसी किस्म का लालच जो मन में आता है माया के पदार्थों को देखकर, जो लुभाने वाला है, उस पर नियंत्रण रखिए, यह निहायत जरूरी है। मैं जोरदार अपील करता हूँ जो धन है उससे लोगों का फायदा हो, आपके दर से कोई निर्धन और भूखा वापस न लौटे।