dadaji maharaj radhasoami

राधास्वामी मत गुरु Dadaji Maharaj के अनमोल बचन -88: गुरुद्वारे में सतसंग के लाभ

NATIONAL PRESS RELEASE REGIONAL RELIGION/ CULTURE

राधास्वामी मत (Radhasoami Faith) के प्रवर्तक परम पुरुष पूरन धनी स्वामीजी महाराज (Soamiji Maharai) और परम पुरुष पूरन धनी हजूर महाराज (Hazur maharaj) ने इस नश्वर संसार में इस बात के लिए अवतार धारण किया कि जीवों का उद्धार हो सके। उन्होंने जीवों पर अनोखी दया लुटाई, बचन बानी के माध्यम से जीवों को अपने चरनों में खींचा, चेताया और उनका कारज बनाया। उन्होंने गुरुभक्ति और सतगुरु सेवा पर भी विशेष बल दिया और स्पष्ट रूप से कह दिया कि जब तक संपूर्ण जगत का उद्धार नहीं होता, धार की कार्यवाही निरंतर जारी रहेगी, वक्त के गुरु जीवों को चेताते रहेंगे। तब से लेकर आज तक यह सिलसिला जारी है और हजूर महाराज के घर हजूरी भवन, पीपल मंडी, आगरा (Hazuri Bhawan, Peepal mandi, Agra) में वर्तमान सतगुरु दादाजी महाराज (Radha Soami guru Dadaji maharaj) जीवों पर अपनी दया फरमा रहे हैं, उनका भाग जगा रहे हैं। दादा जी महाराज (Prof Agam Prasad Mathur former Vice chancellor Agra university) अपने सतसंग (Radhasoami satsang) में नित्य नवीन बचन फरमाते हैं जिससे यह जीव चेते और चरनों में लगे। उन्हीं बचनों में से कुछ अप्रकाशित वचन पुस्तिका ‘दादा की दात’ में जीवों के कल्याण के वास्ते दिए गए हैं। ये वचन न केवल जीवों के प्रीत प्रतीत को बढ़ाएंगे वरन उनका कारज भी बनाएंगे। यहां हम प्रस्तुत कर रहे हैं दादाजी महाराज के बचनों की श्रृंखला।

(88)

सबको सतसंग करना चाहिए और गुरुद्वारे में सतसंग करने से सब को दोगुना और चौगुना लाभ होता है। जब कभी सुविधा हो गुरुद्वारे आना चाहिए। खासतौर पर भंडारों को कभी नहीं छोड़ना चाहिए। यह इरादा रखना चाहिए कि भंडारे पर हाजिरी जरूर देंगे। ऐसा करने से मालिक और भी अधिक प्रसन्न होते हैं। इसलिए अधिक से अधिक सतसंग करो। बचन या बानी को चित्त लगाकर पढ़ो और सुनो। पाठ पर जोर दिया है। नाम के सिमरन पर जोर दिया है और गुरुद्वारे में जो सतसंग हो रहा है उसके करने पर जोर दिया है। इससे संशय और भ्रम दूर होते हैं। गलतफहमियां दूर होती हैं। यह भी पता लगता है कि आपको कितना काम गृहस्थ का करना चाहिए कितना समय परमार्थी कार्यवाही में लगाना चाहिए। जब सतसंग में गुरुद्वारे में आते हैं तो अधिक से अधिक समय सतसंग में ही खर्च करना चाहिए।

(87)

अव्वल तो फालतू समय में गृहस्थ के अलावा चुप रहने की आदत डालो तो सबसे बेहतर है। थोड़ा बोलने के ऊपर नियंत्रण करना चाहिए। कम बोलने से कई फायदे होते हैं। एक तो कोई अनर्गल बात मुँह से नहीं निकलने पाती, दूसरे खामख्वाह की किसी की निंदा या स्तुति से बचाव हो जाता है, तीसरे बहुत ज्यादा बातचीत करने से खामख्वाह प्रीत या बंधन किसी शख्स में होता है। कभी-कभी ऐसे गंदे लोगों का संग हो जाता है कि उनका असर इतना खतरनाक होता है कि वह न तुम्हारा भजन बनने देगा और न तुम्हारा सुमिरन बनने देगा। आखिर मन को एकाग्र करना इतना आसान नहीं है। हर जगह से खिंचाव होना है। जहां भी सुरत बैठी हुई है वहां से उसके स्थान असली पर पहुंचाना बहुत टेढ़ी खीर है। इसके बाद धुन को सुनना और फिर थोड़ी बहुत चढ़ाई करना यह तो बिना संत सतगुरु की मदद के हो ही नहीं सकता। इसलिए अपने समय का ख्याल रखना चाहिए। ऐसी परमार्थी चर्चा जिसमें किसी की निंदा स्तुति हो वह भी बेकार है। परमार्थी चर्चा का भी ढंग है। परमार्थी चर्चा वह है जिसमें राधास्वामी दयाल की महिमा के सिवाय और कोई दूसरी बात ना हो, जिसमें अपने वक्त के गुरु की महिमा का बखान हो, उसमें भी संत सतगुरु द्वारा स्वयं पर की गई मेहर का बहुत ही कम जिक्र करो क्योंकि तुमको बख्शी गई चीज तुम्हारी है और उसको तुम अपने से अलहदा मत करो। जो सुनने वाले हैं उनका कोई भरोसा नहीं है। वह तुमसे परमार्थी चीज ले जाएंगे और उसका कोई उपयोग भी नहीं करेंगे। इसलिए उमंग और जोश अगर बढ़े तो उसको हजम करने की आदत डालो। जितनी बाहरमुखी बातें हैं उनसे अपना बचाव करो।

जबर्द्स्त शिव स्तुति, जरूर देखें
https://www.facebook.com/106787864321760/videos/1736339869881001