Dadaji maharaj agra

Radhasoami Guru दादाजी महाराज ने सृष्टि की रचना का रहस्य खोला

NATIONAL REGIONAL RELIGION/ CULTURE

जो अथाह, अनंत, अगाध, अगम, अकह और अपार है और उसी धाम के धनी को राधास्वामी दयाल कहा जाता है

हूजरी भवन, पीपल मंडी, आगरा राधास्वामी (Hazuri Bhawan, Peepal mandi, Agra) का आदि केन्द्र है। यहीं पर राधास्वामी मत (Radha Soami Faith) के सभी गुरु विराजे हैं। राधास्वामी मत के वर्तमान आचार्य (Radhasoami guru Dadaji maharaj) और अधिष्ठाता दादाजी महाराज (प्रोफेसर अगम प्रसाद माथुर) हैं जो आगरा विश्वविद्यालय (Agra university) के दो बार कुलपति (Vice chancellor of Agra university)  रहे हैं। हजूरी भवन (Hazuri Bhawan, Peepal Mandi, Agra) में हर वक्त राधास्वामी (Radha Soami)  नाम की गूंज होती रहती है। दिन में जो बार अखंड सत्संग होता है। दादाजी महाराज ने राधास्वामी मत (RadhaSomai faith) के अनुयायियों का मार्गदर्शन करने के लिए पूरे देश में भ्रमण किया। इसी क्रम में 31 मार्च, 2000 को अग्रसेन भवन, हिसार (हरियाणा, भारत) में सतसंग के दौरान दादाजी महाराज (Dadaji maharaj Prof Agam Prasad Mathur) ने कहा- राधास्वामी नाम के स्मरण मात्र से संत सतगुरु में भाव पूरा आ सकता है। वह प्यारे लग सकते हैं और जितनी बुराइयां तुममें हैं वह समाप्त हो सकती हैं। इसलिए झगड़े में न पड़कर राधास्वामी नाम को मालिक का जाती नाम मानकर स्वीकार कर लो और अभी कर लो।

जब उसने रचना की मौज फरमाई तो प्रगट हुआ
तुम लोगों को यह समझना चाहिए कि राधास्वामी है क्या – राधास्वामी कुल मालिक का नाम है। मालिक उनमुन उन हालत में था। जब उसने रचना की मौज फरमाई तो प्रगट हुआ। जब वह प्रगट हुआ तब झंकृत धुन उत्पन्न हुई- वही राधास्वामी है। जो अपना धाम रचा वही राधास्वामी धाम है। जो अथाह, अनंत, अगाध, अगम, अकह और अपार है और उसी धाम के धनी को राधास्वामी दयाल कहा जाता है और आदि धुन राधास्वामी है।

ब्रह्मा, विष्णु और महादेव क्या हैं

उन्होंने फिर अपनी निजी धार निकाली और सुरत से शब्द और शब्द से सुरत ऐसी रचना होती हुई आई। कुछ रचना ऐसी रही जो हमेशा निर्मल और हमेशा स्थाई मौजूद है। जैसे- अगमलोक, अलखलोक और सत्तलोक। लेकिन उसके नीचे मोटे गिलाफ थे, पर जो सृष्टि हुई वह उसी सुरत के माध्यम से हुई। सुरत रचना करती चली आई है। माया और ब्रह्म ने ब्रह्मांड की रचना की। फिर अंड की रचना हुई, जिसमें तीन देव प्रगट हुए- सत, रज और तम, जिन्हें ब्रह्मा, विष्णु और महादेव भी कहा जाता है। इसके बाद इस पिंड देश में देवी, देवता, मानव, दानव, किन्नर मानव आदि होते हैं।

नरदेही में स्वयं राधास्वामी दयाल

नर देही को मालिक ने खुद उत्तम माना है क्योंकि सारे चक्र नर देही में मौजूद हैं और किसी में नहीं। सुरत शब्द योग की कमाई और गुरु भक्ति नर देही में ही बन सकती है। यह कर्मस्थली है। इसी नर देही में संत सतगुरु स्वयं राधास्वामी दयाल के प्रतिनिधि के रूप में विराजमान होते हैं। हम उनके निज रूप को पूजते हैं। उनके हर रूप में मालिक को देखते हैं। लिहाजा मालिक के सामने अदब से कैसा व्यवहार करना चाहिए। क्या दुनियादारी का करना चाहिए, क्या आधुनिकता का करना चाहिए, इसको खुद समझ लो और उसके हिसाब से अपने आप में परिवर्तन करो। राधास्वामी नाम के स्मरण मात्र से संत सतगुरु में भाव पूरा आ सकता है। वह प्यारे लग सकते हैं और जितनी बुराइयां तुममें हैं वह समाप्त हो सकती हैं। इसलिए झगड़े में न पड़कर राधास्वामी नाम को मालिक का जाती नाम मानकर स्वीकार कर लो और अभी कर लो।