हूजरी भवन, पीपल मंडी, आगरा राधास्वामी (Hazuri Bhawan, Peepal mandi, Agra) का आदि केन्द्र है। यहीं पर राधास्वामी मत (Radha Soami Faith) के सभी गुरु विराजे हैं। राधास्वामी मत के वर्तमान आचार्य (Radhasoami guru Dadaji maharaj) और अधिष्ठाता दादाजी महाराज (प्रोफेसर अगम प्रसाद माथुर) हैं जो आगरा विश्वविद्यालय (Agra university) के दो बार कुलपति (Vice chancellor of Agra university) रहे हैं। हजूरी भवन (Hazuri Bhawan, Peepal Mandi, Agra) में हर वक्त राधास्वामी (Radha Soami) नाम की गूंज होती रहती है। दिन में जो बार अखंड सत्संग होता है। दादाजी महाराज ने राधास्वामी मत (RadhaSomai faith) के अनुयायियों का मार्गदर्शन करने के लिए पूरे देश में भ्रमण किया। इसी क्रम में 31 मार्च, 2000 को अग्रसेन भवन, हिसार (हरियाणा, भारत) में सतसंग के दौरान दादाजी महाराज (Dadaji maharaj Prof Agam Prasad Mathur) ने कहा- राधास्वामी मत की आंतरिक तकनीक यही है कि हम पहले अनुमान करते हैं फिर प्रत्यक्ष देखते हैं और उसके बाद जो परिणाम होता है वह हमारा अपना अनुभव है। यह अनुभव बांटा नहीं जा सकता बल्कि अनुभवी के संग से बढ़ जाता है।
फिर धुन सुनने के लिए कोई रस्साकशी नहीं
सच्चे ईमान के साथ सच्चा ईमान जगाने के लिए यह इमाम तुम्हारे पास स्वयं आया है और पुकार-पुकार कर कहता है कि मेरे गुरु का दामन पकड़ो। उसने पकड़ लिया है वह जकड़े और जिसने जकड़ लिया है वह और जकड़े। हर वक्त नाम का सुमिरन और गुरु स्वरूप का ध्यान करो। आपसे आप ऐसी हालत होगी कि सुरत जो इधर फैलती है अंतर में चढ़ेगी। धुन सुनने के लिए कोई रस्साकशी नहीं करनी पड़ेगी।
ध्यान मुकम्मल कैसे बनेगा
जो सहज आसन निश्चित है उस पर बैठकर आपको शब्द का भेद बता दिया गया है। उसके अनुसार पहले स्थान, दूसरे स्थान, तीसरे स्थान और चौथे स्थान यानी सत्तलोक तक की धुन को आराम से सुन सकते हो। जब पोथी का पाठ होता है तब स्थान-स्थान पर स्वरूप का ध्यान करते हुए या उसका अनुमान करते हुए अपने गुरु को उसी स्थान पर विराजमान रखते हुए चलोगे तो तुम्हारा ध्यान मुकम्मल बनने लगेगा।
राधास्वामी मत की आंतरिक तकनीक
मैं सोतों को जगाने के लिए आया हूं। ऐसा अवसर बहुत मुश्किल से आता है जब समुद्र उमड़कर रेगिस्तान में आ जाए। उस समय वैसे ही अनुभव कीजिए जैसे समुद्र में किया जाता है। अनुभव और अनुमान करने से ही आंतरिक अनुभव प्राप्त होता है। राधास्वामी मत की आंतरिक तकनीक यही है कि हम पहले अनुमान करते हैं फिर प्रत्यक्ष देखते हैं और उसके बाद जो परिणाम होता है वह हमारा अपना अनुभव है। यह अनुभव बांटा नहीं जा सकता बल्कि अनुभवी के संग से बढ़ जाता है। इसलिए जिसको अनुमान करना नहीं आता वह अनुमान करे, जिसको प्यार करना नहीं आता वह प्यार करे और जिसे अनुभव नहीं हो रहा है वह अनुभवी का संग प्राप्त करके अनुभव प्राप्त करे।
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