हजूरी भवन, पीपलमंडी, आगरा राधास्वामी मत (Hazuri Bhawan, Peepal mandi, Agra) का आदि केन्द्र है। यहीं पर राधास्वामी मत (Radha Soami Faith) के सभी गुरु विराजे हैं। राधास्वामी मत के वर्तमान आचार्य और अधिष्ठाता दादाजी महाराज (प्रोफेसर अगम प्रसाद माथुर) हैं, जो आगरा विश्वविद्यालय ) Agra University)के दो बार कुलपति रहे हैं। हजूरी भवन (Hazuri Bhawan) में हर वक्त राधास्वामी नाम की गूंज होती रहती है। दिन में जो बार अखंड सत्संग होता है। दादाजी महाराज ने राधास्वामी मत के अनुयायियों का मार्गदर्शन करने के लिए पूरे देश में भ्रमण किया। इसी क्रम में 26 अक्टूबर, 1999 को दादाजी महाराज कोटरा, पुष्कर रोड, अजमेर (राजस्थान) में सतसंग के दौरान दादाजी महाराज (Dadaji maharaj Prof Agam Prasad Mathur) ने कहा- वह समय अच्छा था जब बुजुर्ग पुरुष और महिलाएं अपना भजन-ध्यान किसी तरह का कुछ तो करते थे। आज वो गायब है। अपनी सांस्कृतिक परम्पराओं की ओर लौटो और अपनी उस जीवनशैली की ओर लौटो जो कि वर्षों पुरानी थी।
बुराइयों को समझें
दुनिया को शून्य का ज्ञान किसने दिया- भारत ने, लेकिन जो वहां (अमेरिका) चला जाता है, वह वहीं बस जाता है, उसको अपने देश की सुध नहीं रहती। इसलिए मैं आज इस अवसर पर आप बुजुर्ग लोगों से अनुरोध करना चाहता हूं कि आप बच्चों में ऐसे संस्कार डालिए जिससे इस तरह के अलगाववाद से बचा जाए। जो लोग उम्र में मुझसे छोटे हैं, उनको मैं चेतावनी देता हूं कि वह उनकी बुराइयों को समझें क्योंकि इन लोगों ने किसी को कहीं का नहीं छोड़ा है। ये उस समय तक संगी हैं, जब तक तुम्हारे अंदर शक्ति है। जब तुम्हारे अंदर शारीरिक दुर्बलता आ जाएगी, तब ते तुम्हारे पास नहीं आएंगे। ज्यादा से ज्यादा ये आपको ओल्ड एज होम (वृद्धाश्रम) में जाके दाखिल कर देंगे। अब सोचने की बात ये है कि इस परिस्थिति से कैसे बचा जाए।
कहानियों से सिखाएं नैतिकता
मैं यह चाहता हूं कि हर घर में कम से कम आध घंटे कुछ बातें या कुछ चर्चा पुरानी परंपरा, पुरानी संस्कृति, पुरानी किंवदंतियों और उन कहानियों की जिनको दादी की कहानी कहा जाता है, बच्चों को सुनाया जाए। सभी को ख्याल होगा कि मां-बाप, दादा- बाबा कहानियां सुनाकर नीतियां और नैतिकता सिखाते थे, जो आज तक लोगों के हृदय में बैठी हुई हैं। अब क्या हो गया।
अपनी साधना की ओर लौटो
जिस तरह से महर्षि दयानंद ने ये आवाज उठाई थी कि वेदों की तरफ लौटो, मैं आज यह आवाज उठाना चाहता हूं कि अपनी साधना की ओर लौटो, अपनी सांस्कृतिक परम्पराओं की ओर लौटो और अपनी उस जीवनशैली की ओर लौटो जो कि वर्षों पुरानी थी, जिसके अंदर अनेकता नहीं, एकता थी और जैसे एक माला, जिसमें भिन्न-भिन्न प्रकार के फूल हैं, जैसे लाल, पीले, सफेद आदि, लेकिन एक सूत उनको बांध देता है। सूत निकाल दीजिए तो सब बिखर जाते हैं। बिखराव बहुत हो चुका-क्या मैं उम्मीद करूं कि इक्कीसवीं शताब्दी में जो दस्तक देंगे, उसमें आप उस माला के फूलों को पिरोकर एकता के सूत में स्थापित कर सकेंगे। यह एक बहुत बड़ी चुनौती है। (क्रमशः)
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