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यकुम जनवरी है नया साल है, दिसम्बर में पूछूंगा क्या हाल है?

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डॉ. भानु प्रताप सिंह

अंग्रेजी नववर्ष 2022 का स्वागत हो गया है। 2021 ऐसा दर्द देकर गया है जिसकी कोई दवा नहीं है। 2022 पर भी खतरे के बादल मंडरा रहे हैं। नववर्ष के स्वागत में कोरोना के नए प्रकार ओमीक्रोन की आहट के बीच भी लोग घरों से निकले। हजारों किलोमीटर दूर जाकर नववर्ष मनाया। विदेश तक गए। अधिकांशतः अपने-अपने इष्टदेव के दर्शन करने गए। बृज भूमि की बात करें तो मथुरा में श्रीकृष्ण जन्मभूमि और वृंदावन में ठाकुर बांके बिहारी के साथ नवर्ष मनाया। माता वैष्णो देवी के दर्शन करके भी नववर्ष मनाया। आसपास के मंदिरों में गए। होटलों में भी नववर्ष की धूम रही। नववर्ष पर अपने ताजमहल में भी खासी भीड़ रही।

हम भारतीय स्वभावतः धार्मिक और उत्सवधर्मी होते हैं। संवतसर के अनुसार चलें तो हर दिन कोई न कोई उत्सव है। अमावस्या से लेकर पूर्णमासी तक कोई न कोई उत्सव है। हर उत्सव में कोई न कोई धार्मिक संदेश होता है और कोई न कई धार्मिक कहानी होती है। भारतीयों ने तो सूर्योदय, चंद्रोदय और यहां तक की तारों के उदय को भी धर्म से जोड़ रखा है। हमारे लिए सूर्यग्रहण और चन्द्रग्रहण बड़ी धार्मिक घटना है जबकि यूरोपीय देशों के लिए यह महज खगोलीय घटना है। हमारे लिए पेड़, पहाड़, नदी और समुद्र का भी धार्मिक महत्व है। मैं यहां धर्म की कोई वैज्ञानिक विवेचना नहीं कर रहा हूँ। आपको यह बताना है कि धार्मिक होने के कारण हम भारतीय हर नया काम ईश्वर का नाम लेकर शुरू करते हैं। इसी कारण नए साल का स्वागत करने के लिए धार्मिक स्थलों पर जाते हैं। जाना भी चाहिए। बहुत अच्छी बात है यह। धार्मिक होने का मतलब है कि हम संवेदनशील हैं, दूसरों की मदद करते हैं, वसुधैव कुटुम्बकम की भावना के पोषक हैं।

नववर्ष पर माता वैष्णो देवी के दरबार में भगदड़ मच गई। 12 लोगों की मौत हो गई। कारण था श्रद्धालुओं में कहासुनी के बाद मारपीट, पथराव और फिर भगदड़। कई लोग तो पैरों तले कुचलकर मर गए। ‘जय माता दी’ कहते हुए 12 किलोमीटर की पैदल यात्रा के बाद माता के दरबार में पहुंचते हैं और फिर वहां झगड़ा करते हैं। सहयात्रियों के साथ तनिक भी सद्भाव नहीं दिखा पाते। आखिर यह कैसी धार्मिकता है कि तनिक भी सहनशीलता नहीं है। इससे तो लगता है कि धार्मिक होने का दिखावा करते हैं। हम नए साल पर किसी मंदिर में जाकर स्वयं को परिचितों की दृष्टि में धार्मिक सिद्ध करना चाहते हैं। हालांकि वैष्णो देवी में इस तरह की घटनाएं आम नहीं हैं लेकिन नए साल पर यह सब होना निश्चित रूप से बड़ी बात है।

अगर हम धार्मिक हैं तो फिर देश में व्यभिचार, अनाचार, अत्याचार, दुराचार, भ्रष्टाचार क्यों है? धार्मिक हैं तो मारकाट क्यों है? धार्मिक हैं तो करचोरी, घटतौली, मिलावटखोरी क्यों है? धार्मिक हैं तो बेटियों की गर्भ में हत्या क्यों है? धार्मिक हैं तो दहेज न देने पर हत्या क्यों है? धार्मिक हैं तो ‘लिव इन’ जैसा पाप क्यों है?  धार्मिक हैं तो घरेलू हिंसा क्यों है? धार्मिक हैं तो कुदृष्टि क्यों है? धार्मिक हैं तो धार्मिक स्थलों पर पहुंचने के बाद भी मन में पाप क्यों है? धार्मिक हैं तो शराब और पैसे लेकर वोट क्यों देते हैं? इन प्रश्नों के उत्तर खोजना समुद्र मंथन करने जैसा है। असल में धार्मिक स्थलों पर लोग धार्मिक भावना से नहीं, पर्यटक के रूप में जाते हैं। पर्यटक यानी मौज-मस्ती। पर्यटक यानी पैसी फेंको-तमाशा देखो। पर्यटक यानी यंत्रवत। मन में कोई श्रद्धा भाव नहीं होता है। मैं कहना यह चाहता हूँ कि किसी धार्मिक स्थल पर जा रहे हैं तो श्रद्धाभाव के साथ जाएं, संवेदनशीलता के साथ जाएं, सहयात्रियों को सुख-दुख में सहभागिता निभाएं। मौजमस्ती करनी है तो ताजमहल, तमाम किले, मकबरे, पहाड़, समुद्र, पार्क हैं।

धर्म के मर्म को समझिए। धर्म तो जोड़ता है, लोगों की जान नहीं लेता है। अगर हम धार्मिक हैं तो किसी और को कष्ट नहीं पहुंचा सकते हैं,भले ही स्वयं कष्ट भोग लें। रामचरितमानस में गोस्वामी तुलसीदास जी ने कहा भी है- परहित सरिस धर्म नहिं भाई, परपीड़ा सम नहिं अधमाई। इस चौपाई में धर्म का सार निहित है। दूसरों को कष्ट पहुंचाना सबसे बड़ा अधर्म है। इसलिए नया साल हो या पूर्णमासी या अमावस्या या एकादशी, धार्मिक स्थलों पर जाएं तो संवेदनशीलता भी दिखाएं। 2022 में संकल्प लें कि यथासंभव हर किसी के दुःख हरने का काम करेंगे। बीती ताहिर बिसार दे आगे की सुध लेहि।

मेरी कामना है कि नववर्ष 2022 आप सबके लिए सुखकारी हो।

और अंत में…

अमीर कजलबाश का यह शेर बड़ा मौजूं है-

यकुम जनवरी है नया साल है

दिसम्बर में पूछूंगा क्या हाल है?

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