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बारिश के रूप में पैसा बरस रहा, पढ़िए जनसंदेश टाइम्स के संपादक नितेश शर्मा का विचारोत्तेजक आलेख

NATIONAL PRESS RELEASE REGIONAL लेख

हमें नाज है कि हम ऐसे शहर में रहते हैं जो कभी भारत की राजधानी था। पौराणिक बात करें तो आगरा कभी अग्रवन था, जहां श्रीकृष्ण गायें चराने आया करते थे। सूरदास की तपोस्थली भी आगरा रहा है। शहर के चारों कोनों पर महादेव और बीच में मनकामेश्वर महादेव हैं। यह वही शहर है जहां कभी उच्च न्यायालय था। ताजमहल के कारण मेरे शहर को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान मिली। विदेश में भारत को ताजमहल के नाम से जाना जाता है। ताजमहल यानी आगरा। ऐसे अंतरराष्ट्रीय शहर की दुर्गति देखता हूँ तो कष्ट होता है। शहर के विकास के लिए जिम्मेदार जनप्रतिनिधि और अधिकारी आखिर यह कैसा विकास कर रहे हैं कि बारिश हुई नहीं कि शहर की दुर्गति शुरू।

अधिक बारिश होगी तो पानी भरेगा लेकिन कब तक भरा रहेगा? बारिश होगी तो सड़क में गड्ढे भी होंगे, लेकिन कितना बड़े? क्या इतने बड़े कि कार समा जाए? सड़कों में गड्ढे भ्रष्टाचार और कमीशनखोरी के प्रमाण हैं। बारिश के बाद हर तरफ हाहाकार है। कहीं पानी भरने का तो कहीं सड़कों में गड्ढों का हाहाकार। अब इन गड्ढों को भरने का फिर से आगणन बनेगा, फिर पैसा आएगा और फिर वही ढाक के तीन पात। पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने कहा था कि दिल्ली से एक रुपया चलता है और नीचे तक 15 पैसे पहुंचते हैं। आगरा शहर के हालात देखें तो सवाल उठता है कि आखिर 85 पैसे कौन-कौन खा रहा है? भ्रष्टाचार के गटर में कौन-कौन गोते लगा रहा है?

इस हालात पर मुझे सुदामा पांडे धूमिल की कविता याद आती है-

एक आदमी रोटी बेलता है
एक आदमी रोटी खाता है
एक तीसरा आदमी भी है
जो न रोटी बेलता है, न रोटी खाता है
वह सिर्फ़ रोटी से खेलता है
मैं पूछता हूँ–
यह तीसरा आदमी कौन है ?’
मेरे देश की संसद मौन है।

आजकल सरकार संसद में कुछ चर्चा करना चाहती है लेकिन विपक्षी हैं कि संसद को सिर पर उठाए हुए हैं। किसी को कुछ भी बोलने नहीं दे रहे हैं।

महाकवि तुलसीदास ने रामचरितमानस में वर्षा ऋतु का वर्णन कुछ यूं किया है-

समिटि समिटि जल भरहिं तलावा। जिमि सदगुन सज्जन पहिं आवा॥
सरिता जल जलनिधि महुँ जोई। होइ अचल जिमि जिव हरि पाई॥

यानी जल एकत्र होकर तालाबों में भर रहा है, जैसे सद्गुण  सज्जन के पास चले आते हैं। नदी का जल समुद्र में जाकर वैसे ही स्थिर हो जाता है, जैसे जीव श्रीहरि को पाकर अचल हो जाता है।

शहर से तालाब गायब हो गए हैं। तालाबों पर कंकरीट के जंगल उगा दिए हैं। इसलिए बारिश का पानी घरों में घुस रहा है। आगरा में एक स्थान है काले का ताल। यहां ताल का अता-पता नहीं है। ताल सेमरी से भी ताल गायब है। तोता का ताल में ताल का अदृश्य है। सेवला जाट के पास भी ताल गायब है। क्या इन तालाबों को गायब करने के लिए आम जनता जिम्मेदार है? नहीं, अफसर और बिल्डर जिम्मेदार हैं। इन पर कार्रवाई कौन करे?

मशहूर शायर गुलजार ने लिखा है-

बारिश आने से पहले

बारिश से बचने की तैयारी जारी है..

मेरा कहना यह है कि बारिश के आगमन से पहले बारिश के कहर से बचने की तैयारी पहले ही कर लें, किसी के भरोसे न रहें। आम जनता के लिए बारिश के रूप में दुख बरसते हैं और अफसरों के लिए पैसे क्योंकि बारिश के बाद सड़कें नए सिरे से बनेंगी और जेबें भरेंगी।

नितेश शर्मा, संपादक, जनसंदेश टाइम्स