लखनऊ विद्रोह पर राजगोपाल सिंह वर्मा की पुस्तक ‘चिनहट 1857’ के लोकार्पण और संवाद कार्यक्रम में वक्ताओं ने रखे विचार
इतिहास केवल पढ़ने से ही हासिल नहीं होता, उसे अर्जित करना पड़ता हैः प्रो. जगदीश्वर चतुर्वेदी
1857 में लखनऊ की रेजीडेंसी में ईस्ट इंडिया कंपनी को मिली पराजय ने अंग्रेजों को नए सिरे से छावनियां बनाने के लिए प्रेरित कियाः अरुण डंग
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Agra, Uttar Pradesh, India. “इतिहास अपने आप हासिल नहीं होता उसे अर्जित करना पड़ता है। जब जब हमने इतिहास को बांचने की कोशिश की है, निराशा ही हाथ लगी है। इतिहास केवल पढ़ने से ही हासिल नहीं होता। ” यह कहना है हिंदी के वरिष्ठ आलोचक और कोलकाता विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग के पूर्व अध्यक्ष प्रोफेसर जगदीश्वर चतुर्वेदी का। वह यहाँ 1857 के लखनऊ विद्रोह को केंद्र में लेकर लिखी गयी किताब ‘ चिनहट 1857 के लोकार्पण और संवाद पर आयोजित कार्यक्रम में मुख्या वक्त की हैसियत से बोल रहे थे। होटल ग्रांड के सभागार में हुए इस कार्यक्रम का आयोजन सांस्कृतिक संस्था ‘रंगलीला’ , ‘प्रेम कुमारी शर्मा स्मृति आयोजन समिति’ और ‘शीरोज हैंगऑउट’ ने संयुक्त रूप से किया था।
कार्यक्रम को सम्बोधित करते हुए वरिष्ठ हिंदी समीक्षक और केंद्रीय हिंदी संस्थान के पूर्व निदेशक प्रोफेसर रामवीर सिंह ने कहा कि जब हम 1857 का अध्ययन करते हैं तो हमारी जड़ें 1947 तक आती हैं। दोनों के बीच में तारतम्य है। यदि 1857 न होता तो 1947 भी न हो पाता।
कार्यक्रम में विशिष्ट वक्ता की हैसियत से बोलते हुए हिंदी के वरिष्ठ लेखक अरुण डंग ने कहा कि 1857 में लखनऊ की रेजीडेंसी में ईस्ट इंडिया कंपनी को मिली अपार पराजय ने अंग्रेजों को नए सिरे से छावनियां बनाने के लिए प्रेरित किया। यह छावनियां शहर और आम जनता से दूर बनायीं गयी ताकि फौजियों के बीच उनका तारतम्य न बैठ सके। उनका प्रबंध, तकनीकी ज्ञान, साधनों की उपलब्धता के अतरिक्त विभिन्न छावनियों की सही स्थापना आन्दोलनों को विफल कर देती।
श्री डंग ने कहा कि अवध- कानपुर के आंदोलन को कुचलने में विलियम और सर लॉरेंस के साथ मेजर जनरल हेवलोक की भी भूमिका थी, जिसे बाद में अंग्रेजी हुकूमत ने महामन्डित किया। अंडमान में एक द्वीप उसके नाम पर है, जिसे अब स्वराज द्वीप का नाम दिया गया है।
अपने लेखकीय वक्तव्य में लेखक राजगोपाल सिंह वर्मा ने कहा कि लखनऊ में 18 साल में सरकारी नौकरी के बावजूद वह चिनहट के ऐतिहासिक महत्व को नहीं जान सके। इसका अहसास उन्हें तब हुआ जब उन्होंने चिनहट के इतिहास का अध्ययन शुरू किआ। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए सुप्रसिद्ध इतिहासविज्ञ प्रोफ़ेसर आर सी शर्मा ने कहा कि इतिहास लेखन में सारा जोर तथ्यों पर होना चाहिए, विश्लेषण पर नहीं। उन्होंने पुस्तक की कमी भी बताई।
कार्यक्रम का संचालन उर्दू की वरिष्ठ लेखिका प्रोफेसर नसरीन बेगम ने किया। कार्यक्रम के शुरू में अतिथियों का स्वागत वरिष्ठ रंगकर्मी अनिल शुक्ल ने किया और कार्यक्रम के समापन पर धन्यवाद ज्ञापन डॉ अखिलेश श्रोतिय ने किया। कार्यक्रम के आयोजक आशीष शुक्ला और अजय तोमर थे।
खचाखच भरे हॉल में शहर के विभिन्न क्षेत्रों में कार्यरत सामाजिक कार्यकर्ता, इतिहास और साहित्य के प्रेमी मौजूद थे। मुख्य रूप से रामजीलाल सुमन, आनंद राय, रामनाथ शर्मा, डॉ. मधु भारद्वाज, भावना रघुवंशी, त्रिमोहन तरल, मनोज सिंह, मनमोहन भरद्वाज, डॉ. मुनीश्वर गुप्ता, विजय शर्मा, ताज प्रेस क्लब अध्यक्ष सुनयन शर्मा, विवेक जैन, अशोक अग्निहोत्री, शंकर देव तिवारी, मनीषा शुक्ला, आभा चतुर्वेदी आदि मौजूद थे।
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