आगरा। आज 14 सितम्बर है। हिन्दी दिवस है। हिन्दी के प्रति कृतज्ञता प्रकट करने का दिन है। हमारी हिन्दी सिरमौर बन रही है। सोशल मीडिया पर हिन्दी सबसे आगे है। वॉट्सऐप पर साहित्यकार कुंवर अनुराग ने एक समूह बनाया है- N.W.C.F.- मुख्य पटल। इसमें देशभर के साहित्यकार हैं। हिन्दी दिवस पर आज खूब लिख रहे हैं। इसी पटल से हिन्दी दिवस पर 16 चुनिंदा कविताएं यहां प्रस्तुत की जा रही हैं। आपसे आग्रह कि इन्हें पढ़ें और सबको पढ़ाएं।
(1)
हमारी आन है हिंदी
हमारी शान है हिंदी,
इसे दिल में बसाया है
हमारी जान है हिंदी।
जो कहना चाहते हो
बड़ा आसान है कहना ,
इसे जीवन में अपना लो
मधुर जुबान है हिंदी।
-राकेश नमित
(2)
हिंदी देश की शान है
भारत की
शान है हिंदी ,,
मातृ भाषा है
सबकी हिंदी ,,,
माँ का दुलार
है हिंदी,,,
भारत के वीरों की
मातृ भूमि है हिंदी,,,
जिसमें कोई
मिलावट नहीं,
वो पाक है हिंदी,,,
माँ के आँचल की
छाया है हिंदी,,,,
गर्व करता है
जिस पे वो,
भारत की
मातृ भाषा है हिंदी,,,
हमारे भारत की,
पहचान है हिंदी,,,,
मीठी बोली जो
सबके दिल को
छू ले वो
ममता की,
लोरी है हिंदी,,,,
दिल की बात जो
दिल को बोल दे,
वो एहसास है हिंदी ,,,,
-रेनू शर्मा
(3)
संस्कृत की बड़ी बेटी,संस्कृत से अनुप्राणित है हिन्दी।
संस्कृत के सिन्ध शब्द से उपजा है शब्द बना हिन्दी।
लचीली,स्पष्ट,व्याकरण परिपूर्ण,वैज्ञानिक लिपि है हिन्दी।
व्यवस्थित वर्णमाला,विशाल शब्दकोश,सामर्थ्यवान हिन्दी।
दूसरी भाषा के शब्दों को अपनाती,विशाल हृदय है हिन्दी।
गूंगा कोई भी अक्षर न होता खूब साफ बोलती है हिन्दी।
विश्व की भाषाओं में रखती है दूसरा स्थान प्यारी हिन्दी।
अभी तो है राजभाषा, जल्दी ही राष्ट्रभाषा बनेगी हिन्दी।
पाँच उपभाषाएँ, सोलह बोलियाँ अपने में संजोती हिन्दी।
लेखन स्पष्ट, उच्चारण स्पष्ट, पर्यायवाची भी रखती हिन्दी।
आओ हिन्द को बनाये विश्वगुरू और विश्वभाषा को हिन्दी।
हाथ जोड़कर करूँ निवेदन,जब मुँह खोलो तो बोलो हिन्दी।
(संस्कृत शब्द सिन्ध से हिन्द बना।इक प्रत्यय लगाने से
हिन्दीक बना।यूनानी शब्द इन्दिका(अंग्रजी शब्द इंडिया)
(1424शरुफुद्दीन के सफरनामा में अंकित है)
प्रोफेसर महावीर सरन जैन (हिन्दी एवं उर्दू का अद्वैव)
में हिन्दी की उत्पत्ति के बारे.में कहा कि ईरान में”स”ध्वनि
नहीं बोली जाती।”स”को”ह”बोलते हैं।इसलिये सिन्ध हिन्द हुआ।)
-अरुणा गुप्ता
(4)
हमारी शान है हिन्दी हमारी जान है हिन्दी
मेरा ईमान है हिन्दी मेरी पहचान है हिन्दी
चमन में फूल सब इसके वतन में हर तरफ
सुभग नव गान है हिन्दी हमारी शान है हिन्दी
बहारों से कहो सज़दे में इसके कुछ करें
सुधा रसपान है हिन्दी सुरीली गान है हिन्दी
नमन इसको करूँ दिल से ये मेरी माँ भी है
सरल आयाम है हिन्दी कोइ वरदान है हिन्दी
करें हम आरती इसकी ये वाणी है सदा मेरी
बहुत आसान है हिन्दी कड़ी ब्यायाम है हिंदी
इसी की गोंद मे हम सब सदा खेले हैं खाये हैं
मेरा सम्मान है हिन्दी मेरा अभिमान है हिन्दी
न रंजन ग़म हमें अगरेजियत आती नही भी
हमारे नाम है हिंदी हमारे धाम है हिंदी
-आलोक रंजन
(5)
प्रातः हिंदी में हो शाम हिंदी में हो
काम हिंदी में हो नाम हिंदी में हो
अपने सारे निमंत्रण भी हिंदी में हों
पट्ट हिंदी में हों पत्र हिंदी में हों
-शान्ति नागर
(6)
हिन्दी
खुली आँखों से देखता हूँ बस सपने तेरे,
तेरी चाहत जन जन में फैलाना चाहता हूँ।
संयुक्त राष्ट्र भाषा बनाने का मकसद समझ,
विश्व पटल पर परचम फहराना चाहता हूँ।
जानता हूँ चाहत उडने की खुले गगन में,
हिन्दी को बाज से सशक्त पंख देना चाहता हूँ।
मेरी चाहत, मेरा सपना, मेरा प्यार यही तो है,
वेद ऋचाओं का सार दुनिया को बताना चाहता हूँ।
सभ्यता, संस्कृति, मानवता, सब भारत की देन,
भारत को फिर से विश्व गुरू बनाना चाहता हूँ।
संस्कृत को देव वाणी शास्त्रों में बताया गया,
हिंदी की सरलता को विश्व भाषा बनाना चाहता हूँ।
-डॉ. अ कीर्तिवर्धन
53 महालक्ष्मी एनक्लेव
मुजफ्फरनगर 25100
(7)
हिंदी की दुर्दशा
हिंदी की दुर्दशा पर चर्चा तो बहुत होती है
हा हिंदी हा हिंदी कहते ही रहते हैं
कोसते रहते हैं हरदम अंग्रेजी को
लेकिन व्यवहार सभी इंग्लिश में करते हैं
बच्चों को पढ़ाते हैं अंग्रेजी स्कूलों में
हिंदी की गिनती तक उनको नहीं आती है
कैसे आये जब अंग्रेजी माध्यम से
केजी से बच्चों को शिक्षा दी जाती है
करते नहीं बात वह आपस में हिंदी में
उन्हें केवल इंग्लिश की गिटपिट हीभाती है
सूरदास तुलसी का नाम उन्हें नहीं पता
यीटस और इलियट की कविता ही सुहाती है
बंगाली, पंजाबी मराठी या मलयाली
अपनी अपनी भाषा पर गर्व सभी करते हैं
केवल हम हिन्दी वाले ही ऐसे हैं जो
अपनी ही भाषा को हीन समझते हैं
जब तक निज भाषा पर गुमान नहीं होगा हमें
सारे व्यवहारों में उसे न अपनायेगे
तब तक हिंदी न पायेगी उचित स्थान
कभी भी राष्ट्र भाषा नहीं बना पायेंगे
-डॉ. शैलबाला अग्रवाल
(8)
ज्ञान का भंडार हिंदी
ज्ञान का भंडार हिंदी,मातृभूमि का उपहार हिंदी।
तुझ पर ह्रदय निसार हिंदी,तुझसे मुझको प्यार हिंदी।
बाकी भाषा थोप थोप कर,हमें सिखाई जाती हैं,
हिंदी और उसकी उपभाषाएँ,माँ के दूध से आती हैं।
तेरा है आभार हिंदी,हमें दिए संस्कार हिंदी।
तुलसी सूर कबीर जायसी,सबका है आचार हिंदी।।
हिंदी के बिन हिंदुस्तान,आडम्बर की खान है,
हिंदी से क्यों शरमाते हो,हिंदी अपनी शान है।
मानस का आधार हिंदी,मधुशाला का खुमार हिंदी,
मीरा का भजनसंसार हिंदी,दिनकर की हुंकार हिंदी।
सबसे सरल और सबसे सुंदर,इसका रूप मनोहर है,
प्रसाद पंत महादेवी निराला,की अनमोल धरोहर है।
नवरस की रसधार हिंदी,गीतों का सिंगार हिंदी,
छंदों की झंकार हिंदी,तेरी जयजयकार हिंदी।।
वीरगाथा से नई कविता तक,भावों की निर्झरणी है,
छायावाद से होकर गुजरी,वो भक्ति की वैतरणी है।
भूषण की तलवार हिंदी,आनन्दमठ का ज्वार हिंदी।
सुभद्रा के उद्गार हिंदी,हल्दीघाटी की ललकार हिंदी।
पद्मावत का वियोग जहाँ,ध्रुवस्वामिनी का जोग यहाँ,
सूरदास की अनुपम भक्ति का,वात्सल्य रस और कहाँ।
आँसू की करुण पुकार हिंदी,प्रेमपथिक का द्वार हिंदी,
यशोधरा की गुहार हिंदी,अंधायुग का उजियार हिंदी।
हरिओध का प्रियप्रवास भी है,और वैदेही वनवास भी है,
उर्मिल मन की आस भी है,कबिरा का कर्म विस्वास भी है।
पंचवटी का है आगार हिंदी,सतसई का है श्रंगार हिंदी,
भारत भारती का दुलार हिंदी,माँ वाणी का अवतार हिंदी।
ज्ञान का भंडार हिंदी,मातृभूमि का उपहार हिंदी।
तुझ पर ह्रदय निसार हिंदी,मुझको तुझसे प्यार हिंदी।।
-मंजु यादव “ग्रामीण”
(9)
हिंदी का संज्ञान लें,होकर सजग-सचेत
हिंदी में बातें करें, हम सब ही समवेत
शिव-गौरी से प्रार्थना, कर लें यह स्वीकार
जग-भाषा हिंदी बने, इतना हो विस्तार
डॉ० राम प्रकाश ‘पथिक’, कासगंज
(10)
हिंदी राष्ट्र धरोहर है
हिंदी बड़ी मनोहर है
प्रगति की भी सहोदर है
हिंदी से ही हम सब हैं
हिंदी राष्ट्र की भाषा है
हिंदी हिंद की माता है
हिंदी लिखो हिंदी पढ़ो
कविता गीत कहानी लिखो
गीत गजल और रुबाई
हिंदी में गूंजे शहनाई
हिंदी माथे की बिंदी है
साहित्य गगन में
चमकती रहती है
मीठी मधुर है प्यारी भाषा
हिंदी हिंदुस्तान की आशा
इंग्लिश मीडियम का मोह तजो
निज भाषा में अध्ययन करो
भाषा से पहचान बड़े
निज भाषा से मान बड़े
अपनी मां को भूलो नहीं
इधर-उधर भटको भी नहीं
साहित्य मित्र
विधानाचार्य ब्रःत्रिलोक
वर्णी गुरुकुल जबलपुर
(11)
हिंदी दिवस पर विशेष
बिहरौ बिहारी की बिहार वाटिका में चाहे .
सूर की कुटी में अड़ आसन जमाइये
केशव की कुंज में किलोल केलि कीजिये या
तुलसी के मानस में डुबकी लगाइये
देव की दुरि में दुर दिव्यता निहारिये या
भूषण की सैना की सिपाही बन जाइये
भिन्न भाषा भाषियों मिलेगा मन माना सुख
हिंदी के हिंडोले में जरा तो झूल जाइये।
– पद्मश्री डॉ. हरि शंकर शर्मा (वीएस शर्मा द्वारा प्रेषित)
(12)
हिंदी दिल की
धड़कन है,
हिंदी भारत का
गुरुर है,
आधे चाँद पे
जो लगतीं
बिंदी है,
वहीं भारत की
हिंदी है।
भारत की
शान है हिंदी ,
जिसे कहतें
हिन्दुस्तान है,
वहीं हिंदी की
पहचान है।
-रेनु शर्मा
(13)
मानव- मन की अद्भुत क्षमता,
निश्छल,निर्मलअविरल सरिता
मैं सरल, सरस ,पर बोधमई,
हिन्दी हूँ ,जन-जनकी कविता।
जब हृदय वेदना से पिघला
शब्दों में मैं अवतरित हुई।
रणभेरी बजी समर में जब
आल्हखंड में व्यक्त हुई।
रासो की ज्वाला बनकर के
सोये भारत को जगा दिया।
बलिदानों की गाथा गाकर
अमरत्व काअमृत पिला दिया।
अंगारे मेरे श्रृंगार बने,
मैं शक्ति मयी, वाणी दुहिता
हिन्दी हूँ ,,,,,,,,,
तुलसी के मानस की भक्ति
चंचल कान्हा की किलकारी
मैं प्रेम पियासी मीरा के हरि ,
के श्यामल रंग पे वारी।
मर्यादा, प्रेम,समर्पण हूँ,
रहिमन कबिरा की साखी हूँ ,
मुरली में बसी बिहारी के,
रसखान के बृज की पाँखी हूँ
अंतर्मन को पावन कर दे,
उस ज्ञान-सुधा की निर्झरता।
हिन्दी हूँ,, , ,,, ,,,,,,,,
मै भारतेंदु की वाणी हूँ ,मै ही
हूँ भारत-भारती ,
दिनकर के उर की उर्वशी ,
श्रद्धा से उतारें आरती
सुकुमार प्रकृति दुख की बदली
आँसू बनकर मैं बरस पड़ी,
पर गौरव भारत का पाने
बन काल-सिंहनी गरज पड़ी ।
धूमिल अतीत को त्याग आज
मै नव वि हान ले आई हूँ।
भारत ही नहीं विश्व-मंडल की,
गरिमा बनकर छाई हूँ।
नव स्वप्न,चेतना,नई शक्ति,
नव रश्मि धारिणी , मैं सविता।
हिन्दी हूँ,जन-जन की कविता।
राज चौहान
(14)
हिंदी–चिंता और निश्चिंतता
महानुभाव
चिंतित हैं
कि
हिंदी का
वर्चस्व
कैसे हो !
अजी ! अर्जी !
सरकार के पास
पहुंची
मर्जी पर
उसी की
आज
” मीटिंग ” है
सुस्त पड़े
साहित्यिकों में
जबर्दस्त
” ग्रीटिंग ” है
कि
” टाउनहॉल ” में
अतिमहत्वपूर्ण
” मीटिंग ” है
खेतों में
उधर
हरे-हरे
धान
लहर रहे–लुहर रहे
भादों-आश्विन की
भींगी-महकती-लहकती
मिली-जुली
निश्चिंत हवा में
धानांचल के
किसान
नींद रहे
करगा
मन-मगन
मेहनत के बोलों से
खेतों को
सजा रहे सुघड़
भाषा की
बोली में
हरबोलवे
वीरता के
जश के
गीत गा रहे
बटलोई में
डबक-डबक कर
अनजाने ही
पका
नया शब्द
गांव में
—–हां, थोड़ा गीला
—नये-नये भात-सा
—–लइकोरी की
लोरी के
आलाप-विस्तार में
गुनगुनाया जिसे
किसान बबा ने
मन-मगन
बार-बार
प्रेम की
मौज में
महुआ के
छांह तले
प्रेम से
चटनी संग खाते-खाते
गुसाईंन से
सुनते-सुनते—–
गांव-घर की
नोंक-झोंक
कि
सहनांव
लुहार ने
सुधार दिया
कैसे
गौंटनिन
पतोहू का
” कुकर “
ठेठ
देसी-इलाज से
शब्द
एक
और
नया
बना–पका
शहरी पतोहू के
कृतज्ञ
उच्चार से
इधर
” मीटिंग ” के
बीच में
कनखियों से
समय
ताक रहे
तर्कद्वन्द्वी
महानुभाव
ऊबकर
दुपहर-खाने के
पैकों के
उमड़ते
महक में
डूबकर
और–और
टाल रहे
वर्षों से
टल रहे
निष्कर्षों को
व्यस्त रहे
मीटिंग के
दिनांत तक
पुनः
एक
अगली
मीटिंग के लिए
चिंतित हिंदी
लोगों के बीच
इस तरह निश्चिंत हो बढ़ी
—शीलकांत पाठक
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