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आगरा में जैन मुनि त्रय का भव्य पिच्छिका परिवर्तन समारोह, जानिए क्या है इसकी महत्ता

RELIGION/ CULTURE

डॉ. भानु प्रताप सिंह

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Agra, Uttar Pradesh, India, Bharat. आगरा में पार्श्वधाम, छीपीटोला आगरा में विराजमान आचार्य श्री विशुद्ध सागर जी महाराज के शिष्य मुनिश्री 108 साक्ष्य सागर जी महाराज, मुनिश्री 108 योग्य सागर जी महाराज, मुनिश्री 108 निवृत सागर जी महाराज जी संसघ के सानिध्य में पिच्छिका परिवर्तन समारोह बड़ी धूमधाम से मनाया गया।  श्रावक श्राविकाओं ने पिच्छिका की शोभायात्रा निकाली। भक्ति संगीत पर जमकर नृत्य किया। पिच्छिका को बड़े आकर्षण ढंग से सजाया गया। गाजेबाजों के साथ कार्यक्रम स्थल तक लाया गया। मंच संचालन सतेंद्र जैन साहूला ने किया।

सबसे पहले दीप प्रज्ज्वलन मुन्ना बॉबी, महेश मीटर, मुन्ना लाल सतेंद्र साहुला ने किया। महिला मंडल द्वारा मंगलाचरण किया गया। मुनिश्री का पाद प्रक्षालन, शास्त्र भेंट किया गया। मुनिश्री के संघ का मंच पर आगमन हुआ। समूचा परिसर मुनिश्री 108 साक्ष्य सागर जी महाराज, मुनि श्री 108 योग्य सागर जी महाराज,मुनि श्री 108 निवृत सागर जी महाराज के जयकारों से गुंजायमान हो उठा।

श्रावक आशु बाबा, प्रवीन जैन, रविन्द्र जैन तेहरा, सुभाष जैन, भुवनेश, रजत, राजीव ने जैन मुनि को नवीन पिच्छिका भेंट की। पुरानी पीछी श्री निवृत्त सागर जी महाराज जी की प्रवीन, पियूष, पद्मावती ज्वेलर्स परिवार, श्री योग्य सागर जी महाराज जी की नितिन जैन परिवार, श्री साक्ष्य सागर महाराज जी की दीपक, भावना, ईदगाह ने प्राप्त की। मुनि श्री ने राम कथा से संबंधित परीक्षा में पास हुए लोगों को पुरस्कृत किया। चार्तुमास संबंधित लोगों को सम्मान देकर उनका उत्साहवर्धन किया।

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पिच्छिका परिवर्तन समारोह में उपस्थित जैन समाज के श्रावक।

मुनि श्री 108 साक्ष्य सागर जी महाराज ने महाराज जी ने बताया कि दिगंबर जैन साधु के पास तीन उपकरण के अलावा और कुछ भी नहीं होता। पिच्छिका, कमंडल और शास्त्र इन तीन उपकरणों के माध्यम से ही वे अपनी जीवन भर साधना करते रहते हैं, संयमोपकरण जिसे पिच्छिका कहते हैं, यह पिच्छिका मोर पंखों से निर्मित होती है, मोर स्वत: ही इन पंखों को वर्ष में तीन बार छोड़ते हैं। उन्हीं छोड़े हुए पंखों को इकट्‌ठा करके श्रावकगण पिच्छिका का निर्माण करते हैं। पिच्छिका के माध्यम से मुनिराज अपने संयम का पालन करते हैं। जब कहीं यह उठते हैं, बैठते हैं तब उस समय जमीन एवं शरीर का पिच्छिका के माध्यम से परिमार्जन कर लेते हैं, ताकि जो आंखों से दिखाई नहीं देते ऐसे जीवों का घात न हो सके। यह पिच्छिका उस समय भी उपयोग करते हैं जब शास्त्र या कमंडल को रखना या उठाना हो। जहां शास्त्र या कमंडल रखना हो वहां पर जमीन पर सूक्ष्म जीव रहते हैं जिन्हें हम आँखों से नहीं देख सकते। पिच्छिका से उन जीवों का परिमार्जन कर दिया जाता है, ताकि उन्हें किसी प्रकार का कष्ट न पहुंचे। यह पिच्छिका इतनी मृदु होती है कि इसके पंख आंख के ऊपर स्पर्श किए जाएं तो वह आंखों में नहीं चुभते। जब इन पंखों की एक साल के भीतर मृदुता कम होने लगती है तो इस पिच्छिका को बदल लिया जाता है। इस कार्यक्रम को पिच्छिका परिवर्तन के नाम से जाना जाता है।

इस मौके पर मंदिर कमेटी अध्यक्ष अनिल जैन कांटा, मंत्री प्रवेश जैन, रविंद्र जैन (कोषाध्यक्ष), प्रदीप जैन सी.ए, राजेश जैन, रोहित जैन, चक्रेश जैन, विवेक जैन, आशु जैन (बाबा), मुन्ना लाल, सतीश चंद्र, सतेंद्र साहुला, मुरारी लाल जैन, पवन जैन, दिनेश जैन, राजीव जैन, प्रवीन जैन (नेताजी), दीपक जैन, नितिन जैन, विराग चैन, सौरभ जैन, राहुल जैन (वासु),  मनोज जैन, अखलेश, पवन, राजीव, आदिश, मीडिया प्रभारी राहुल जैन एवं सकल जैन समाज सहित बड़ी संख्या में श्रद्धालु उपस्थित थे।

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Dr. Bhanu Pratap Singh