द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी ने महाकवि सूरदास के वात्सल्य रस को आगे बढ़ाया, जयंती पर आत्मकथा का लोकार्पण

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आगरा में अक्षरा साहित्य अकादमी के तत्वावधान में राष्ट्रीय पुस्तक मेले में बाल कवि द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी की जयंती पर साहित्य उत्सव का आयोजन किया गया। इस अवसर पर उनकी आत्मकथा “सीधी राह चलता रहा” का विमोचन किया गया।

कार्यक्रम की अध्यक्षता पद्मश्री उषा यादव ने की। उन्होंने कहा कि द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी जी को बचपन से सुना, जिसके कारण उनका बाल साहित्य के प्रति रुझान बढ़ा। उन्होंने कहा कि नंदन पत्रिका के संपादक जय प्रकाश भारती ने द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी जी को सबसे पहले बच्चों के गांधी जी कहकर पुकारा था।

मुख्य अतिथि अपर पुलिस आयुक्त केशव कुमार चौधरी ने कहा कि महाकवि सूरदास ने जिस वात्सल्य रस को काव्य में विकसित किया था उस रस को आगे द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी द्वारा ही बढ़ाया गया। उन्होंने कहा कि द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी जी की रचनाएं बच्चों के मन को छूती हैं और उन्हें सही मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करती हैं।

इस अवसर पर बाल कवियों ने अपनी रचनाओं से काव्यात्मक श्रद्धांजलि अर्पित की। बाल कवि सम्मेलन के बाद द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी जी की आत्मकथा का विमोचन किया गया।

द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी जी के सुपुत्र और अक्षरा साहित्य अकादमी के अध्यक्ष डॉ विनोद माहेश्वरी ने बताया कि बाबूजी ने अपनी आत्म कथा अंतिम सांस लेने से एक घंटे पूर्व पूर्ण की थी। आज भी उनकी कृतियां उनके जीवित होने का आभास कराती हैं।

कार्यक्रम का संचालन सुशील सरित ने किया।

द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी की आत्मकथा सीधी राह चलता रहा का विमोचन

मुख्य अतिथि अपर पुलिस आयुक्त केशव कुमार चौधरी, विशिष्ट अतिथि पुलिस उपायुक्त अरुण चंद्र, कार्यक्रम अध्यक्ष पद्मश्री डॉ उषा यादव, मंहत योगेश पुरी, अरुण डंग, डॉ ज्ञान प्रकाश, डॉ कैलाश सारस्वत, डॉ राकेश भाटिया, डॉ विकास जैन, राज्य महिला आयोग सदस्य निर्मला दीक्षित, आकाशवाणी के डिप्टी डायरेक्टर मयंक अग्रवाल और डॉ विनोद माहेश्वरी ने आत्मकथा का विमोचन किया।

द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी जी की रचनाओं की विशेषताएं

द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी जी की रचनाएं सरल, सुबोध और भावपूर्ण होती हैं। उन्होंने बच्चों के लिए अनेक कविताएं, कहानियां, नाटक और निबंध लिखे हैं। उनकी रचनाओं में बच्चों के मनोभावों को बड़ी ही खूबसूरती से उकेरा गया है।

Dr. Bhanu Pratap Singh