हजूरी भवन से ताजगंज मोक्षधाम तक पुष्पवर्षा
लोगों ने बाजार बंद रखकर दी श्रद्धांजलि
डॉ. भानु प्रताप सिंह
आपकी असाध्य बीमारियों को ओझल कर दे, दुर्घटनाओं में जीवन रक्षक बनकर प्रकट हो जाए और आप कितने ही विचलित हो और उससे मिलते ही आपको राह मिल जाए, मन शांत और स्थिर हो जाए तो ऐसा व्यक्तित्त्व निःसंदेह ही साधारण मानव की श्रेणी से विलग हो असाधारण महामानव के रूप में स्थापित होने लगता है। ऐसा महामानव हजारों लाखों लोगों को चमत्कारिक रूप से उनकी विपदा, आपदा, अभाव, शोक और विषाद के क्षणों में संजीवनी औषधि सा प्रतीत होने लगे, जब उसकी यशोगाथा, शौर्य गाथा की पताका लिए समाज के मलिन, दलित, शिक्षित, अशिक्षित, साधारण कुल और कुलीन विचरण करने लगे तो वह व्यक्ति महामानव और दिव्य मानव जैसे विशेषण और अलंकारों से भरी व्यक्तियों की आस्था का केन्द्र बिंदु बन जाता है। फिर उसे सद्गुण और सत्तगुणों से परिपूर्ण मान अपने सतगुरु और संत के रूप में आराधने लगते हैं। ऐसे ही ये राधास्वामी मत के गुरु प्रो. अगम प्रसाद माथुर (दादाजी महाराज)। वे राधास्वामी मत के आदि केन्द्र हजूरी भवन, पीपल मंडी, आगरा में विराजते रहे और 92 वर्ष की आयु तक सत्संग और बचन धार फरमाते हुए 25 जनवरी 2023 के दिन चोला छोड़ गये और छोड़ गये बिलखते हुए करोड़ों श्रद्धालु। दादाजी महाराज के चले जाने से प्रेम, दया और मेहर के एक युग का अंत हो गया। दादाजी महाराज का पार्थिव शरीर दो दिन तक हजूरी भवन में श्रद्धालुओं के दर्शनार्थ रखा गया।
हजूर महाराज राधास्वामी दयाल के प्रपौत्र
राधास्वामी मत के संस्थापक परम पुरुष पूरन धनी हजूर महाराज राधास्वामी दयाल के प्रपौत्र एवं राधास्वामी सतसंग के आदि केन्द्र हजूरी भवन, पीपल मंडी आगरा के पंचम अधिष्ठाता थे दादाजी महाराज। यूं तो उनका नाम प्रोफेसर अगम प्रसाद माथुर है लेकिन अनुयायी उन्हें दादाजी महाराज कहते हैं। वे आगरा विश्वविद्यालय के दो बार कुलपति रहे, जो एक कीर्तिमान है।
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डॉ. अतुल माथुर ने दी मुखाग्नि
दादाजी महाराज का अंतिम संस्कार 27 जनवरी की दोपहर में ताजगंज मोक्षधाम पर विधि-विधान से किया गया। दादाजी महाराज के पुत्र डॉ. अतुल माथुर (निदेशक, सेठ पदमचंद प्रबंध संस्थान, खंदारी परिसर, डॉ. भीमराव आंबेडकर विश्वविद्यालय, आगरा) ने मुखाग्नि दी। इससे पूर्व दादाजी महाराज के भ्राता डॉ. सरन प्रसाद माथुर ने पाठ किया। अपने गुरु को परमतत्व में विलीन होते देख अनुयायी रोने लगे। इस दौरान राधास्वामी नाम की गूंज होती रही। ताजगंज मोक्षधाम पर पहली बार इतनी भीड़ देखी गई।
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अंतिम यात्रा का पहला छोर रावतपाड़ा तो दूसरी हाथीघाट पर
दादाजी महाराज की अंतिम यात्रा हजूरी भवन से प्रातः 10.10 बजे शुरू हुई। हजूरी भवन में हजारों श्रद्धालु जमा थे। तिल रखने को भी स्थान नहीं था। मुड़गेली पर भी लोग लटके हुए थे। रावतपाड़ा तिराहे पर एक रथ सुसस्जित था, जिस पर दादाजी महाराज के चित्रों के साथ उनके बचन लिखे हुए थे। अर्थी के साथ रथ को भी सजाया गया था। रावताड़ा तिराहा, दरेसी नम्बर-2, हाथी घाट, यमुना किनारा होती हुई अंतिम यात्रा दोपहर 12 बजे ताजगंज श्मशान घाट पहुंची। अंतिम यात्रा का एक सिरा हाथीघाट पर था तो दूसरा छोर रावतपाड़ा पर। महाराज की अर्थी को कंधा देने की होड़ लगी रही। हजूरी भवन से मोक्षधाम तक अर्थी के आगे पुष्पवर्षा की जाती रही। स्थानीय लोगों ने बाजार बंद रखकर महाराज के प्रति अपना श्रद्धा प्रकट की।
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मुखाग्नि देते ही रोने लगे श्रद्धालु
श्मशान घाट पर अंतिम संस्कार की तैयारी पहले ही कर ली गई थी। संस्कार स्थल को फूलों से सजाया गया था। फायर ब्रिक्स लगाई गईं। चंदन काष्ठ पर्याप्त मात्रा में था। काफी देर तक पाठ चला। गुरु की महिमा बताने वाले भजन हुए। राधास्वामी नाम की गूंज तो निरंतर हो रही थी। करीब सवा बजे डॉ. अतुल माथुर ने मुखाग्नि दी। श्रद्धा के चलते अनेक अनुयायी रो रहे थे। श्मशान घाट पर महिलाएं भी बड़ी संख्या में थीं। मुखाग्नि से पहले महिलाओं को घर भेज दिया गया। इसके बाद भी पांच महिलाएं अंतिम समय तक जमी रहीं। किसी ने टोका तो उन्होंने कहा कि महाराज की मौज में रुके हैं।
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एक युग का अंत
दादाजी महाराज के भ्राता डॉ. सरन प्रसाद माथुर, पुत्र डॉ. अतुल माथुर, भतीजे इंजीनियर विवेक माथुर, इंजीनियर आलोक माथुर, पौत्र सुमिर माथुर, सरल माथुर, सरस माथुर, अधर माथुर, अनहद माथुर आदि शोकमग्न हैं। सभी का कहना है कि गुरु महाराज के चले जाने से एक युग का अंत हो गया।
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27 जुलाई, 1930 को हुआ था जन्म
सावन का महीना उमंग, उत्साह और उल्लास से भी ऐसी ऋतु है, जब प्रकृति अपने पूर्ण यौवन पर होती है। आकाश से बरसते मेघ न केवल परती को प्यास बुझाते है, वरन पेड़-पौधों, पशु-पक्षी आदि को भी आनन्दित करते हैं। इसी सावन मास की दौज यानि 27 जुलाई सन् 1930 ई. को हजूरी भवन में एक ऐसे बालक का जन्म हुआ, जिसने आगे चल कर सम्पूर्ण मानव जाति को आनन्दित और उत्तसित किया और अपने पितामह द्वारा दिये गये नाम ‘अगम’ को सार्थक किया। यह बालक और कोई नहीं, दादाजी महाराज हैं, जिनके विषय में लिखा गया यह वृतान्त उनके गुणों को न केवल उजागर करेगा, बल्कि नये रूप से प्रकाशित करेगा और आने वाली पीढ़ी का मार्गदर्शन करेगा, यद्यपि यह प्रयास सूरज को दीपक दिखाने के समान है। दादाजी महाराज का बहुआयामी व्यक्तित्व उन्हें एक व्यक्ति नहीं, वरन एक सम्पूर्ण संस्था के रूप में स्थापित करता है। निःसन्देह यह आज के परिवेश में एक स्वर्णिम हस्ताक्षर है जिनकी एक झलक पाने के लिये लोग बेताब और बेकरार रहते थे। एक शिक्षक, शिक्षाविद, इतिहासकार, कुशल प्रशासक, कवि, लेखक, वक्ता तथा समाज सुधारक के रूप में प्रवीणता से कार्य करते हुए ये उक्त सभी विधाओं के शिखर पर पहुँचे। इतना ही नहीं, आध्यात्मिक प्रकाशपुंज दादाजी महाराज राधास्वामी मत के अधिष्ठाता के रूप में यह दशक से अध्यात्म के गूढ़ रहस्यों को प्रेमियों और जिज्ञासुओं के लिये सहज और सरल ढंग से उजागर किया। उनका बहुआयामी व्यक्तित्व मात्र उपरोक्त विधाओं तक ही सीमित नहीं है, वरन उनका कार्यक्षेत्र, चिन्तन और मनन उन्हें आधुनिक सदी के युगदृष्टा और गुणसृष्टा के रूप में स्थापित करता है। उनका ओजयुक्त ललाट और उनकी सम्पूर्ण देह से निकलती चैतन्य किरणें हर किसी को समर्पण करने को विवश कर देती थीं। ऐसे दादाजी महाराज को लाइव स्टोरी टाइम का प्रणाम।
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