rajiv gupta

भाइयो, मिर्गी का दौरा पड़े तो ये काम न करो, अच्छे भले आदमी को बदनाम न करो

NATIONAL PRESS RELEASE REGIONAL RELIGION/ CULTURE

चिकित्सा विज्ञान ने बहुत तरक्की की है। तरक्की का आलम यह है कि मस्तिष्क, जिसमें लाखों कोशिकाएं होती हैं, उसको भी वह खोलकर ठीक कर दिया जाता है। विश्व में आज भी अनेक बीमारियों को ऊपरी हवा का नाम देकर उन्हें झाड़-फूंक या ऊपरी इलाज से ठीक करने का दकियानूसी मानसिकता से किया जाता है। आप ठीक समझ  रहे हैं। वैसे तो अनेक बीमारी हैं पर आज मिर्गी मिर्गी रोग की बात कर रहे हैं। आपने अक्सर भारत में देखा होगा जब भी किसी को मिर्गी आती है तो ऊपरी हवा या किसी प्रेतात्मा का चक्कर कहकर उसे झाड़-फूंक, जूता सुंघाना आदि अन्य देशी तरीक़े से उसे ठीक करने का प्रयास किया जाता है| चिकित्सक विज्ञान के अनुसार यह क्रिया रोगी को मृत्यु के मुंह तक ले जाती है ।आज मिर्गी के रोगियों व उनके परिवारीजनों को जागरूक करने की जरूरत है। मिर्गी लाइलाज बीमारी नहीं है| अगर सही समय पर उचित चिकित्सा प्लान के द्वारा 80 परसेंट तक मिर्गी मरीज ठीक हो जाता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार विश्व भर में लाखों मिर्गी के रोग से पीड़ित हैं इसमें 80% लोग विकासशील देशों में रहते हैं, जो एक चिंता का विषय है।

मिर्गी रोग एक मस्तिष्क रोग होता है। चिकित्सा विज्ञान में मिर्गी को न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर भी कहा जाता है| भारत में आज भी करीब सवा करोड़ मरीज मिर्गी के रोग से पीड़ित हैं। न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर होने से बार-बार दौरे पड़ते हैं| यह जन्मजात असमानता, मस्तिष्क में संक्रमण, प्रवास के समय चोट लगना, स्ट्रोक एवं ब्रेन ट्यूमर या बचपन में लंबे समय तक तेज बुखार से पीड़ित होना मुख्य कारण होता हैं| आजकल एक आम कारण और है दुर्घटना में घायल होना या सिर में चोट लग जाना।

मिर्गी का दौरा अमूमन 2 मिनट या 5 मिनट का होता है। आधा घंटा से ज्यादा का नहीं होता है| ऐसे में हमें मिर्गी के रोगियों को हेयदृष्टि से नहीं देखना चाहिए और ना ही उन लोगों को उनके रोग का पता चलने के बाद नौकरियों से निकालना चाहिए, बल्कि उनके साथ जिस तरीके से हम मधुमेह और उचरक्तचाप के मरीजों के साथ व्यवहार करते हैं, उसी तरह से व्यवहार करना चाहिए।

परिवार को मिर्गी रोगी के व्यवहार के प्रति बहुत सजग रहना चाहिए। जब भी दौरा पड़े तो उसे कोई जूता या अन्य चमत्कारी झाड़-फूंक टाइप इलाज ना करके उन्हें समतल जमीन पर सीधा लेटा देना चाहिए| उनके मुंह में कुछ भी खाने को नहीं डालना चाहिए बल्कि सिर एक तरफ कर देना चाहिए ताकि उसके मुँह से लार व झाग निकल जाए। रोगी पौष्टिक भोजन के साथ पूरी नींद लेनी चाहिये। आजकल सब के हाथ में मोबाइल होता है तो ऐसे समय पर अगर रोगी का वीडियो बन जाए तो चिकित्सक को रोगी की स्थिति को समझने में बहुत आसानी हो जाती है, जिससे उसका इलाज भी वह ठीक से कर पाता है और रोगी पूर्णतया स्वस्थ हो जाता है| इस बात का विशेष ध्यान रखें कि रोगी के आसपास फर्नीचर, काँच का सामान या नुकीली कोई भी चीज ना हो। जब दौरे पड़ते हैं तो वह हाथ पैर फेंकता है ऐसे में जख्मी होने का डर बरकरार बना रहता है। दांतों को बलपूर्वक खोलने का प्रयास करना चाहिए ताकि जीभ न कट जाए ।

राजीव गुप्ता जनस्नेही

लोक स्वर आगरा

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