Agra, Uttar Pradesh, India. गीता में शरीर को रथ की उपमा देते हुए कहा गया है कि इंद्रियां इसके घोड़े हैं, मन सारथी और आत्मा स्वामी है। शरीर और मन का संबंध शासित और शासक जैसा है। गीता केवल एक धार्मिक ग्रंथ या पुस्तक नहीं है बल्कि यह मनुष्य का मैनुअल है। हमें गीता को सिर्फ पढ़ना नहीं है बल्कि जब आप गीता ज्ञान की ओर अग्रसर होते हैं तो इसे अपने जीवन में उतारना पड़ता है। यह कहना है श्रीश्री जगन्नाथ मंदिर, इस्कॉन आगरा के अध्यक्ष अरविंद स्वरूप दास प्रभु का।
रेनबो हॉस्पिटल में शुक्रवार को अरविंद स्वरूप दस प्रभु जी ने गीता ज्ञान का प्रसार किया। इसमें गीता की चिकित्सा में उपयोगिता के बारे में बताया। उन्होंने कहा कि जब हम गीता को पढ़ते हैं तो पाते हैं कि यह केवल एक धार्मिक ग्रंथ या पुस्तक न होकर मनुष्य का मैनुअल है। यह ग्रंथ कब आपके जीवन को परिवर्तित कर दे पता भी नहीं चलता।
वरिष्ठ न्यूरोसर्जन डा. आरसी मिश्रा ने कहा कि शरीर वह करता है जिसका निर्देश मन देता है। ऐसा कोई शारीरिक क्रियाकलाप नहीं जो मन की इच्छा के विपरीत होता है। मन से बलवान आत्मा है, इससे ज्यादा ताकतवर शरीर में कोई नहीं। विज्ञान भी मानता है कि मन का असंतुलन शोक, रोग और बीमारियों के रूप में भी प्रभावित करता है। गीता में ऐसे बहुत अध्याय हैं जिनके अनुरूप चिकित्सा विज्ञान को पाया जा सकता है। चिकित्सा इनसे मेल खाती है।
रेनबो आईवीएफ की निदेशक डॉ. जयदीप मल्होत्रा ने कहा कि आध्यात्मिक चिकित्सा उतनी ही जरूरी है जितनी दूसरी चिकित्सा पद्धतियां। रेनबो हॉस्पिटल के निदेशक डॉ. नरेंद्र मल्होत्रा ने बताया कि पिछले दो साल से डॉक्टर, नर्स, स्टाफ सभी बहुत विषम परिस्थितियों में काम कर रहे हैं। कोरोना ने तन और मन दोनों पर प्रभाव छोड़ा है। इससे कभी-कभी तनाव भी महसूस होता है। ऐसे में अस्पताल में गीता ज्ञान का प्रसार किया गया ताकि आध्यात्मिक चिकित्सा से जुड़ा जा सके। यह कार्यशालाएं यहां हर माह आयोजित की जाएंगी और हम धीरे-धीरे गीता ज्ञान की ओर अग्रसर होंगे।
इस अवसर पर डॉ. केशव मल्होत्रा, आईएमए यूपी के पूर्व अध्यक्ष डॉ. सुधीर धाकरे, चिकित्सा अधीक्षक डॉ. राजीव लोचन शर्मा, डॉ. वंदना कालरा, डॉ. तृप्ति सरन, डॉ. शेखर, डॉ. सुधीर वर्मा, डॉ. आहद, डॉ. करिश्मा, डॉ. आदित्य, डॉ. विनीत जैन, डॉ. दिनेश राय आदि की उपस्थिति उल्लेखनीय रही।