आगरा के समाजसेवी दंपत्ति ने 104 वर्षीय जापानी महिला से जाना लम्बी आयु का राज

PRESS RELEASE

जहां उम्र सिर्फ एक संख्या है: ‘न्यूचीगुसई’ से होती है दीर्घायु की शुरुआत, ‘इकिगाई’ से मिलती है जीवन को दिशा

आगरा। विकास और प्रकृति के संतुलन की मिसाल जापान के ओकीनावा द्वीप में दीर्घायु सिर्फ आकंड़ों की बात नहीं, बल्कि जीवनशैली की जीवंत सच्चाई है। इसी प्रेरणा को समझने आगरा के रोटरी क्लब के वरिष्ठ पदाधिकारी एवं समाजसेवी अंबरीश पटेल और उनकी पत्नी सोनल पटेल जापान की यात्रा पर निकले। छह महीने की तैयारी के बाद, वे उन चुनिंदा लोगों में शामिल हुए जिन्हें ओकीनावा के सौ वर्ष से अधिक आयु वाले लोगों से मिलने का अवसर मिला।

इस यात्रा का मुख्य आकर्षण रही 104 वर्षीय वृद्धा टोयोमा हिराहो से हुई आत्मीय भेंट। इस विशेष मुलाकात के दौरान श्री और श्रीमती पटेल ने भारत की ओर से उन्हें शॉल और उपहार भेंट कर सम्मानित किया। उनकी बातचीत की भाषा-संयोजक बनीं स्थानीय युवती साशा, जिन्होंने सजीव अनुवाद किया।

टोयोमा हिराहो ने खुलासा किया कि वे औषधीय पौधों और सुपाच्य आहार को अपने दीर्घ जीवन का मूल कारण मानती हैं। उनका आहार मिक्सी में बने तरल खाद्य पदार्थों जैसे पंपकिन, गाजर, केला, किनाको और ग्रीक योगर्ट तक सीमित है। वे 12 घंटे की गहरी नींद लेती हैं, टीवी देखती हैं, किताबें पढ़ती हैं और अपनी सहेलियों से डे-केयर केंद्रों में मुलाकात करती हैं।

यहां के लोग भोजन को केवल शरीर की जरूरत नहीं, बल्कि ‘न्यूचीगुसई’ – यानी जीवन की औषधि मानते हैं। वे भूख से 20% कम भोजन करते हैं जिसे ‘हारा हाची बु’ कहा जाता है। तनाव मुक्त जीवन, सीमित लेकिन पौष्टिक आहार, सामाजिक सहभागिता और आत्मिक संतुलन इनकी दीर्घायु का रहस्य है।

अंबरीश पटेल बताते हैं कि ओकीनावा के लोग ‘इकिगाई’ यानी जीवन का उद्देश्य खोजते हैं और समाज में सकारात्मक योगदान देने को अपना धर्म मानते हैं। ‘टी सुनागारी’ के अनुसार, समाज के प्रत्येक व्यक्ति को दूसरे के प्रति संवेदनशील और सजग रहना चाहिए।

पटेल दंपत्ति का यह अनुभव न केवल व्यक्तिगत था, बल्कि यह भारत-जापान के सांस्कृतिक संबंधों को भी एक नई ऊंचाई पर ले जाता है। इस यात्रा से उन्होंने जो सीखा, वह अब वे आगरा सहित पूरे देश में ‘दीर्घायु जीवनशैली अभियान’ के तहत साझा करेंगे।

जापान से लौट कहकर अंबरीश पटेल ने कहा, हमने ओकीनावा में केवल दीर्घायु नहीं देखी, हमने जीवन को पूरे सम्मान और प्रेम के साथ जीने की कला सीखी।

Dr. Bhanu Pratap Singh