आजादी के 75 साल बाद अब भारतीय सेना में कई चीजें बदल गई हैं। एक वक्त था का पाकिस्तानी सेना भारतीय सेना का मजाक उड़ाते थे। लेकिन अब वे खौफ में रहते हैं क्योंकि अब हुक्म हमारी जेब में है।
जब मैं 1977 में कश्मीर में था तो मेरी तैनाती किशनगंगा पर थी। वहां से मुजफ्फराबाद नजर आता था। जब हम अपने अपने बंकरों के ऊपर खड़े होकर पाकिस्तानी अफसरों से बात करते थे तो कई बार वह मजाक करते थे कि आपका हुक्म तो दिल्ली से आता है, हमारा हुक्म तो हमारी जेब में है। तब ये सोच थी कि जो हुक्म ऊपर से आएगा वही तालीम होगा और उसके बिना कोई फायरिंग भी नहीं करेगा। लेकिन यह सोच वक्त के साथ बदली है। अब फौज के सीनियर से लेकर जूनियर ऑफिसर तक को मालूम है कि हुक्म हमारी जेब में है। अगर सैनिकों की जान को खतरा है तो फायर कर सकते हैं। सबको मालूम है कि अगर सही कदम उठाया है तो सब साथ खड़े होंगे। अब वह लंबे सवाल जवाब नहीं होंगे, जो पहले होते थे। अब सबकी सोच में बदलाव आया है कि जरूरत पड़े तो हम कार्रवाई कर सकते हैं। यह बहुत बड़ा बदलाव है। पहले पाकिस्तान की ताने मारने की आदत थी लेकिन अब वह खौफ में रहता है कि ये पता नहीं कब क्या कर दें।
हम लोग तब फौज में वन टन, थ्री टन, जॉन्गा इन गाड़ियों में सफर करते थे लेकिन वक्त के साथ गाड़ियां बेहतर हुई हैं। स्पीड के मामले में भी और प्रोटेक्शन के मामले में भी। अब फौज में नई तरह की गाड़ियां हैं। जब ऑपरेशन मेघदूत के तहत हम लोग सियाचीन पहुंचे तब हमारे सारे कपड़े स्विटरजलैंड या यूरोप से इंपोर्ट किए हुए थे लेकिन अब बहुत सारा सामान भारत में ही बनने लगा है। पहले जो भारत की बनी ऊन की टोपियां होती थीं, वह बहुत चुभती थीं। उनसे खुजली भी होती थी और हम सब मजाक करते थे कि ये टोपियां पहनकर हम जल्दी टकले हो जाएंगे। लेकिन अब भारत में बने सामान इंटरनेशनल स्टैंडर्ड के हैं। जब मैं फौज में भर्ती हुआ, उस वक्त कश्मीर में आतंकवाद नहीं था। हालांकि लोग तब भी पूछते थे कि आप कहां से आए हैं… भारत से? लेकिन उस वक्त हम यूनिफॉर्म में बिना हथियारों के आराम से कहीं भी जा सकते थे। तब माहौल खराब नहीं था, न ही आतंकवाद था।
फिर पाकिस्तान का फैलाया आतंकवाद दिखा। जहां हम पहले वहां बुलेट प्रूफ जैकेट का इस्तेमाल नहीं करते थे अब एलओसी के पास हर वक्त सैनिक बुलेट प्रूफ जैकेट, हेलमेट, पटखा पहने रहते हैं। तब से अब तक फौज का काफी आधुनिकीकरण हुआ है। नए हथियार आए हैं, रहने, खाने, पहनने, सारी सुविधाएं बेहतर हुई हैं । पहले जब 90 दिन की छुट्टी मिलती थी तो 10-12 दिन तो सफर में ही लग जाते थे लेकिन अब इंफ्रास्ट्रक्चर बेहतर होने से सफर में 1-2 दिन ही लगते हैं। पहले जवान जब छुट्टी में जाते थे तो घर से लड्डू और दूसरा खाने का सामान लेकर आते थे और हमें भी खिलाते थे। रास्ते के लिए भी वह खाने का सामान पैक कर लाते थे लेकिन अब सफर आसान हुआ है तो घर से यह सब सामान लाना भी लगभग बंद हो गया है। पहले लकड़ी के बक्से होते थे और उसी में हम अपना सामान लेकर जाते थे, फिर स्टील के ट्रंक आए और अब तो सब ट्रॉली बैग या बैगपैक ही इस्तेमाल करते हैं।
(लेखक लेफ्टिनेंट जनरल कुलकर्णी भारतीय सेना से डीजी इंफ्रेंट्री के पद से रिटायर हुए हैं)
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