आम शादियों से सिंधी शादी के रिवाज थोड़े से अलग होते हैं। यहां सात नहीं चार फेरों के जरिए लड़का-लड़की एक दूसरे को अपना बनाते हैं। सिंधी शादियों के मुहूर्त भी देर रात ही निकाले जाते हैं। कुंडली मिलान को लेनी-देनी कहा जाता है। अगर आपने कोई सिंधी शादी अटेंड की है, तो शायद आपको बहुत ही यूनिक फूड के साथ-साथ कल्चर का एक अलग ही शेड देखने को मिला हो।
वैसे तो सिंधी शादियों में भारत के कई अन्य राज्यों की शादियों का समागम मिल जाएगा, लेकिन वो अपने आप में कुछ अलग भी होती हैं।
शादी के वक्त बदल दिया जाता है लड़की का पूरा नाम
सरनेम चेंज करने की प्रथा तो सदियों पुरानी है, लेकिन सिंधी शादियों में लड़की का नाम भी बदल दिया जाता है। मैंने अपनी एक सहेली की शादी अटेंड की थी जिसमें उसका नाम उसके पति के नाम के आधार पर बदला गया है। पंडित जी अक्षर निकालते हैं जिससे नाम रखा जाता है। मेरी सहेली ने शादी के पहले ही तीन नाम अपने लिए चुनकर रखे थे क्योंकि उसे पता था कि उसके नाम के लिए कौन सा अक्षर आएगा।
शादी के वक्त पंडित जी ने यह भी बताया कि आखिर ऐसा क्यों होता है। उनका कहना था कि शादी के बाद लड़की का नया जन्म माना जाता है। उसे एक नए घर में जाकर अपनी जिंदगी शुरू करनी होती है। इसलिए अपने परिवार वालों द्वारा दिया गया नाम बदलना होता है। इसे शादी के बाद एक अच्छे जीवन का संकेत माना जाता है।
सात नहीं चार फेरों का है रिवाज
आमतौर पर आपने सात फेरों का महत्व देखा होगा, लेकिन सिंधी शादियों में सिर्फ चार ही फेरे लिए जाते हैं। इसमें से पहले तीन में दुल्हन आगे होती है और आखिरी फेरे में ही दूल्हा आगे आता है। हर फेरा मंत्र और वचन से बंधा होता है।
पहला फेरा – धर्म
इस फेरे में दूल्हा-दुल्हन का क्या धर्म होगा उससे जुड़ी जानकारी दी जाती है।
दूसरा फेरा- अर्थ
इस फेरे में एक दूसरे के साथ किस तरह का व्यवहार करना है और कैसे साथ निभाना है उसकी जानकारी दी जाती है।
तीसरा फेरा- काम
यह फेरा जोड़े के प्यार और एक दूसरे के प्रति सत्कार की भावना को बताता है।
चौथा फेरा- मोक्ष
यह फेरा किसी भी चिंता से मुक्ति के बारे में दिखाता है।
3. कच्ची मिश्री-पक्की मिश्री
कच्ची मिश्री को रोका की तरह ही समझें। यहां दोनों परिवार मिलकर एक फॉर्मल रोका सेरेमनी में एक दूसरे को शगुन और तोहफे देते हैं।
पक्की मिश्री को सगाई ही समझ लीजिए। यहां दूल्हा-दुल्हन एक दूसरे से रिंग एक्सचेंज करते हैं और दूल्हे की मां मिश्री से भरा एक मटका दुल्हन की मां को देती है। यहां एक छोटी सी पूजा भी होती है जिसमें सात शादीशुदा महिलाएं भगवान गणेश की आराधना करती हैं।
4. देव बैठना
जिस तरह यूपी-बिहार में मंडप लगाने की प्रथा है, वैसे ही सिंधी शादियों में देव बैठाने की प्रथा होती है। दूल्हे और दुल्हन दोनों के घर में पूजा होती है जहां दोनों के घर में एक-एक पत्थर की चक्की रखा जाती है। इसे ही देव माना जाता है और प्रार्थना की जाती है।
जब शादी की रस्में शुरू हो जाती हैं, तो फिर से 7 शादीशुदा महिलाएं इस चक्की की पूजा करती हैं और फिर दूल्हा-दुल्हन के ऊपर तेल डाला जाता है जिसे देव स्नान की तरह माना जाता है।
5. घरी पूजा
इस पूजा में उसी चक्की से अनाज पीसा जाता है। यहां भी शादीशुदा महिलाएं ही शामिल होती हैं। यह पूजा दूल्हे और दुल्हन दोनों के घर में की जाती है। इस पूजा को नए जोड़े के लिए समृद्धि का प्रतीक माना जाता है।
इसी के साथ, नवग्रह पूजा, हल्दी, मेहंदी, संगीत, बारात, जयमाल आदि रस्में भी होती हैं।
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