पर्यटन व्यवसायी अरुण डंग ने आगरा छावनी के ऐतिहासिक रहस्यों पर पर्दा उठाया

साहित्य

आगरा छावनी: इतिहास की छिपी धरोहरों का भव्य उद्घाटन

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Agra, Uttar Pradesh, India, Bharat.

आगरा की सांस्कृतिक धरती पर एक अनूठा समारोह हुआ, जहां साहित्यकार अरुण डंग की नवीनतम कृति ‘आगरा छावनी’ का लोकार्पण संपन्न हुआ। होटल ग्राण्ड के भव्य सभागार में रंगलीला, शीरोज हैंगआउट और प्रेमकुमारी शर्मा आयोजन समिति के संयुक्त तत्वावधान में सात सितंबर की संध्या को यह कार्यक्रम आयोजित किया गया। छावनियों को इतिहास की जीवंत साक्षी बताते हुए अरुण डंग ने कहा कि 1803 में अंग्रेजों के आगमन के साथ आगरा छावनी का जन्म हुआ, जबकि इससे पूर्व की बादशाहतों में सेनाएं बैरकों में निवास करती थीं। 1857 के विद्रोह ने छावनी के स्वरूप में परिवर्तन लाया, और इसे शहर से न तो निकट रखा गया, न ही दूर। ग्वालियर की निकटता के कारण मराठाओं से मुकाबले हेतु इसकी स्थापना की गई।

दस्तावेजों से उभरी अनजानी कथाएं

अरुण डंग ने अपनी रचना की प्रक्रिया साझा करते हुए बताया कि प्रारंभ में उन्हें छावनी की गहन जानकारी नहीं थी, किंतु असंख्य दस्तावेजों और पुस्तकों की खोजबीन से कई महत्वपूर्ण तथ्य उजागर हुए, जिन्हें इस संक्षिप्त कृति में समाहित किया गया है। उन्होंने जोर देकर कहा कि आगरा छावनी में इतना विशाल इतिहास छिपा है कि इससे एक वृहत् ग्रंथ रचा जा सकता था, परंतु उन्होंने इसे संक्षिप्त रूप में प्रस्तुत किया। अंग्रेजों से पूर्व मराठाओं का शासन था, और शहजादी मंडी के बारे में रोचक विवरण मिला जहां फूलों की मंडी लगती थी तथा शहजादियां पालकियों में फूल खरीदने आती थीं। काछीपुरा कभी जहाँआरा बाग के नाम से जाना जाता था, जिसे लोग जोहरा बाग कहते हैं। छावनी के निवासियों की आवश्यकताओं हेतु 500 दुकानों वाला सदर बाजार बसाया गया, जिसे सौदागर लाइन भी कहा जाता है। सुलतानपुरा का नाम अकबर के ठहराव से पड़ा, जब वे फतेहपुर सीकरी से आते हुए यहां रुके।

मुख्य वक्ता की ऐतिहासिक अंतर्दृष्टि

इतिहास लेखक राजीव कुमार पाल ने मुख्य वक्ता के रूप में बोलते हुए कहा कि अंग्रेजों ने युद्ध की रणनीति के अनुरूप भारत में छावनियों की स्थापना की। मद्रास, बॉम्बे और कलकत्ता प्रेसीडेंसी के पश्चात आगरा को भी प्रेसीडेंसी का दर्जा मिला, जिससे इसकी छावनी का महत्व बढ़ा। उन्होंने 1857 के गदर और सर सैय्यद के युग का उल्लेख किया, तथा आगरा को अंग्रेजी हुकूमत का प्रमुख केंद्र बताया। हर क्षेत्र में इसका ऐतिहासिक स्थान रहा है। अपनी बात को मजबूत करते हुए उन्होंने नजीर अकबराबादी के शेर का सहारा लिया: “रखता है गो कदीम से बुनियाद आगरा, अकबर के नाम से हुआ आबाद आगरा। इसमें सदा खुशी से रहा है तेरा नजीर, हमेशा रखियो आबाद ये आगरा।”

समारोह में उपस्थित लेखकगण

साहित्यप्रेमियों के संस्मरणों की बानगी

साहित्यप्रेमी हरविजय सिंह बाहिया ने छावनी से जुड़े अपने व्यक्तिगत संस्मरण साझा किए। उन्होंने बताया कि 1957 से 1962 तक वे माल रोड पर रहे, और इससे पूर्व उनका परिवार बैरकपुर छावनी में निवास करता था। उन्होंने रोचक घटना सुनाई कि शनिवार को छावनी के मित्रों के साथ वे ताजमहल में भोजन करते थे, तथा एक बार इंग्लैंड की महारानी को यहां देखने का दुर्लभ अवसर मिला।

विशेषज्ञों की प्रशंसा और विश्लेषण

डॉक्टर अखिलेश श्रोतीय ने पुस्तक की सराहना करते हुए कहा कि यह सरल भाषा में इतिहास को रेखांकित करती है, जिसमें मुगल, अंग्रेज और मराठाओं के काल की जानकारी उपलब्ध है। प्रोफेसर रामवीर सिंह ने इसे इतिहास, राजनीति शास्त्र और समाजशास्त्र का मिश्रण बताया, तथा आश्चर्य व्यक्त किया कि मुट्ठीभर लोग कैसे इतनी विशाल आबादी पर शासन कर चले गए। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि कथादेश के संपादक हरिनारायण मंचासीन रहे।

आयोजन का संचालन और स्वागत

कार्यक्रम का संचालन प्रोफेसर नसरीन बेगम ने किया, जबकि विषय प्रवर्तन और धन्यवाद ज्ञापन प्रोफेसर प्रियम अंकित ने। आयोजकों रंगलीला के निर्देशक अनिल शुक्ल, रामभरत उपाध्याय तथा डॉक्टर महेश धाकड़ ने अतिथियों का हार्दिक स्वागत किया। इस अवसर पर डॉक्टर सीपी राय, राजगोपाल वर्मा, प्रोफेसर ज्योत्सना रघुवंसी, डॉक्टर मधु भारद्वाज, डॉक्टर मुनीश्वर गुप्ता, श्रीकृष्ण, कर्नल जीएम खान, भावना रघुवंशी, प्रो. आभा चतुर्वेदी, अनिल डंग, मनोज सिंह, डॉक्टर शैलबाला अग्रबाल, संजय गुप्त, वरिष्ठ पत्रकार और लेखक डॉक्टर भानुप्रताप सिंह, मनोज शर्मा, सुनीता चौहान, ब्रजबिहारी लाल, डॉक्टर राजीव शर्मा, अभिनय प्रसाद, शंकरदेव तिवारी, रमेश पण्डित, महेश आलोक, हिना खान सहित अनेक बुद्धिजीवी उपस्थित रहे।

अरुण डंग

संपादकीय: अरुण डंग का साहित्यिक योगदान – इतिहास की जीवंत आवाज

आगरा की सांस्कृतिक विरासत को नई दृष्टि प्रदान करने वाले साहित्यकार अरुण डंग की कृति ‘आगरा छावनी’ न केवल इतिहास के अनछुए पहलुओं को उजागर करती है, अपितु हमें अपने अतीत की गहराइयों में झांकने का अवसर देती है। डंग जी की अनुसंधानपूर्ण लेखनी में दस्तावेजों की खोजबीन से निकली रोचक कथाएं, जैसे शहजादी मंडी की फूलों वाली मंडी या सुलतानपुरा का अकबरी नामकरण, इतिहास को जीवंत बनाती हैं। उनकी सरल किंतु गहन शैली से यह स्पष्ट होता है कि वे न केवल एक लेखक हैं, अपितु इतिहास के संरक्षक भी। इस छोटी कृति में उन्होंने विशाल इतिहास को समेटकर सिद्ध किया कि सच्चा साहित्यकार ज्ञान की सागर से मोती चुनकर समाज को समृद्ध करता है। अरुण डंग की सराहना इसलिए आवश्यक है क्योंकि उन्होंने आगरा की छावनी को मात्र एक सैन्य स्थल से ऊपर उठाकर एक सांस्कृतिक धरोहर के रूप में स्थापित किया है। ऐसे रचनाकारों की बदौलत हमारा इतिहास जीवित रहता है, और भविष्य की पीढ़ियां अपनी जड़ों से जुड़ी रहती हैं। डंग जी की यह उपलब्धि साहित्य जगत के लिए एक प्रेरणास्रोत है।

 

Dr. Bhanu Pratap Singh