garun putra

पढ़ने लायक है धर्मवीर तोमर का उपन्यास गरुड़ पुत्र

साहित्य

डॉ. भानु प्रताप सिंह

धर्मवीर तोमर ऐसे लेखक हैं, जिन्हें लिखने के लिए सपने आते हैं। उनके सपनों में कहानियां आती हैं। बस लिखने बैठ जाते हैं और लिखते जाते हैं। इन्हीं सपनों के आधार पर उन्होंने गरुड़ पुत्र उपन्यास श्रृंखला शुरू की है। इसका भाग-1 आ गया है। बाकी लिख रहे हैं।

 

गरुड़ पुत्र भाग-1 को मैंने पूरा पढ़ा। गरुड़ पुत्र नाम से यह न समझें कि यह कोई धार्मिक कहानी है। बिलकुल नवीनता लिए नई कथा है। इसे रोमांचक ढंग से प्रस्तुत किया गया है। गरुड़ पुत्र आपको अनजानी दुनिया में ले जाएगा और पढ़ने की उत्सुकता कायम रखेगा। शुरुआत में ‘पहले ये…’ और इसके बाद ‘अब ये… ’ दोनों शीर्षक चौंकाते हैं। भूमिका के नाम पर कोई ज्ञान नहीं पेला गया है। सीधी-सादी सी बात कह गई है। ‘पहले ये…’  वास्तव में कथा का ही एक हिस्सा है।

 

लेखक धर्मवीर तोमर के बारे में कुछ न कहूँ तो बात पूरी नहीं होगी। वे आगरा के हैं। एक प्रकाशन संस्थान में लेखा प्रबंधक हैं। वे जीवन का सबसे कठिन काम प्राइवेट नौकरी को मानते हैं। लिखने का कीड़ा उनके अंदर है और यह बढ़ता जा रहा है। इसलिए प्राइवेट नौकरी का तनाव सकारात्मक लिखकर दूर कर रहे हैं। मैं उन्हें शुभकामनाएं देता हूँ।

 

मैं आभारी हूँ श्री ओसवाल पब्लिशर्स (Oswal Publishers) के श्री राजेश उपाध्याय का कि उन्होंने धर्मवीर तोमर से मेरा परिचय कराया और गरुड़ पुत्र के बारे में जानकारी दी। श्री तोमर ने कृपापूर्वक मुझे पुस्तक भेंट की, तदर्थ उनका भी धन्यवाद है। काश मुझे भी धर्मवीर तोमर की तरह सपने आते!

 

 

Dr. Bhanu Pratap Singh