devaki nandan son

जाने-माने शू डिजाइनर देवकी नंदन सोन की बात जूता बनाने वालों को बुरी लग सकती है

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अगर जूता उद्योग हमारे हाथों से जा रहा है तो कमी हमारी है

जब आगरा के जूते को जीआई टैग मिल गया है तो चर्मकला बोर्ड क्यों नहीं?

आगरा में शू विलेज बने, जिसमें नीचे वर्कशॉप हो और ऊपर आवास हो

जब व्यक्ति कुल्हड़ बनता हुआ देख सकता है, जूता क्यों नहीं देखेगा

डॉ. भानु प्रताप सिंह

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Agra, Uttar Pradesh, India, Bharat. जाने-माने शू डिजाइनर देवकी नंदन सोन का नाम ही काफी है। वे बॉलीवुड फिल्मों के लिए भी जूता डिजाइन करते हैं। अपने मेहनत, लगन और समर्पण से उच्च स्थान हासिल किया है। देश की सभी प्रसिद्ध पत्रिकाओं में उनके व्यक्तित्व पर आलेख प्रकाशित हुए हैं। भारत सरकार ने उन पर फिल्म भी बनाई है।

देवकी नंदन सोन की मुझे जो बात सबसे अच्छी लगती है, वह है साफगोई। अपनी कमी हो या दूसरे की, खुलकर बताते हैं। अपना उद्योग कल्याण समिति ने होटल ग्रांड में 4 नवम्बर को ‘जूता उद्योग विरासत और चुनौतियां’ विषयक कॉनक्लेव किया। इसमें देवकी नंदन सोन ने अपने जीवन के कुछ अनछुए पहलुओं को छुआ। उन्होंने साफ कहा कि अगर जूता उद्योग हमारे हाथों से जा रहा है तो कमी हमारी है।

आइए, पढते हैं शू डिजाइनर देवकी नंदन सोन की बात उन्हीं के शब्दों में-

मैं ताजगंज की गोबर चौकी में रहता था, बाद में इसका नाम सिद्धार्थ नगर कराया। मैंने देखा कि मिस्त्री जूते का पैटर्न काटते थे। सब उनकी खुशाद करते थे। मेरे बाबूजी भी। मिस्त्री नखरे दिखाता था। यह देखकर मेरे दिमाग में आया कि ये काम महत्वपूर्ण है, क्यों न सीखा जाए।

dr Bhanu Pratap Singh journalist
कॉनक्लेव में पत्रकार डॉ. भानु प्रताप सिंह का सम्मान। साथ में अपना उद्योग कल्याण समिति के पदाधिकारी।

मैं स्कूल में आर्ट पेपर के पीछे जूते की डिजाइन बनाया करता था। इस पर मास्टर ने बाबूजी को स्कूल बुलाया और कहा, ये आगे चलकर जूते का ही काम करेगा, पढ़ना इसके वश की बात नहीं है।

एक दिन अखबार में सीएफटीआई (Central Footwear Training Institute) का विज्ञापन निकला। इसमें जूते की डिजाइन सिखाने और 75 रुपये वेतन देने की बात लिखी थी। उन दिनों मैं 2 रुपये रोज पर जूता का काम करता था। मैंने एडमिशन ले लिया और जूता डिजाइन की तकनीक सीखी। तब पता चला कि शू डिजाइन तो पढ़ाई का विषय भी है।

लैम्को का काम बंद होने पर मुझे तेज शू फैक्टरी में शू डिजाइनर का जॉब मिल गया। मैंने वहां 3 साल में एक भी छुट्टी नहीं की। मेरा लगन और समर्पण देखकर मुझे स्पेशल प्राइज दिया गया।

1983 में तेज शू फैक्टरी में आग लग गई। मैं फैक्टरी मालिक दलजीत सिंह से मिलने गया था। वे नहीं मिले। मैनेजर मिला। मैंने उससे कहा कि आग लगने से जो पैटर्न खराब हो गये हैं, उन्हें मैं ठीक कर दूंगा। फिर दलजीत आए और मेरी बात सुनकर सीने से लगा लिया।

पूरन डावर
जूता निर्यातक पूरन डावर को स्मृति चिह्न देते अपना उद्योग कल्याण समिति के पदाधिकारी।

अब हम सुनते हैं कि हमारा रोजगार दूसरों के हाथ में जा रहा है तो कमी हमारी है। हम शादी से 15 दिन पहले काम बंद कर देते हैं और एक माह बाद शुरू करते हैं। तिथि देखकर काम शुरू करते हैं जैसे पंचमी से, आखिर क्यों? जब जूता का का मैकेनाइज्ड हो गया है तो चर्मकार या जाटव ही जूते का काम क्यों करेंगे? हमें तरक्की करनी है तो समर्पण भाव से काम करना होगा। मिस्त्री होते ही दिमाग सातवें आसमान पर पहुँच जाते हैं और समय पर काम नहीं करते हैं, इससे बचें।

40 वर्ष पुरानी एक घटना है। एक मिस्त्री मेरे पास आया और नौकरी मांगी। उसके भाग्य से दो दिन बाद ही एक काम आ गया। जिसे जूते का पैटर्न कटवाना था, उसे मैंने मिस्त्री के पास नरीपुरा भेज दिया। कंपनी के व्यक्ति ने मिस्त्री से दो डिजाइन बनाने को कहा। मिस्त्री ने पैसे मांगे। मिस्त्री को 200 रुपये दे दिए। मिस्त्री ने दो दिन बाद आने को कहा। कंपनी का व्यक्ति न्यू आगरा से नरीपुरा गया। मिस्त्री ने एक ही डिजाइन बनाकर दिया और कहा कि एक के ही पैसे आए थे। मेरी नजर में यह गलत बात है। हमें अपना आचरण सुधारना होगा।

 लैम्को (जूता बनाने में अग्रणी रही सरकारी कंपनी) चालू कराने की लड़ाई लड़ी। उस समय पत्रकार भानु प्रताप सिंह ने बहुत साथ दिया। आज भी सरकार हमारी उपेक्षा कर रही है। स्कूलों की छुट्टियां 10 दिन के लिए बढ़ाई जा रही हैं कि विद्यार्थी माटी कला सीखेंगे। केश कतरन पर भी ध्यान है। 4000 करोड़ का निर्यात करने वाले जूता पर ध्यान नहीं है।

अभी तक चर्मकला बोर्ड क्यों नहीं बनाया है। जब आगरा के जूते को जीआई टैग मिल गया है तो चर्मकला बोर्ड क्यों बन सकता? सींगना में निर्यातकों की प्रदर्शनी लगती है तो जूता दस्तकारों की क्यों नहीं लग सकती? शिल्पग्राम में जूता निर्माण की प्रदर्शनी क्यों नहीं है? शिल्पग्राम उसी उद्देश्य से बनाया गया था, लेकिन कुछ और ही हो रहा है।

आगरा में शू विलेज बने, जिसमें नीचे वर्कशॉप हो और ऊपर आवास हो। जब व्यक्ति कुल्हड़ बनता हुआ देखता है, जूता क्यों नहीं देखेगा।

समारोह में उपस्थित जूता उद्यमी

जूता का काम करने वाले जीएसटी में पंजीकरण कराओ। जब सात लाख रुपये कमा लोगे तभी तो टैक्स लगेगा। ज्यादा कमाओ तो ज्यादा खर्च करो, टैक्स नहीं लगेगा।

आज की तकनीक देखकर हर्ष होता है। हर चीज मोबाइल पर है। आसानी से सीखा जा सकता है। एक वह भी समय था जब मेरे बाबा सात नम्बर के सोल को पीट-पीटकर 9 नम्बर का बनाते थे। इतनी मेहनत करनी पड़ती थी।

कोई व्यक्ति 10 हजार रुपये का सुइट पहन ले और अगर पैर में जूता नहीं है तो सब बेकार है। देश का दुर्भाग्य है कि जिंदगी बनाने वालों को छोटा मान लिया गया है।

एक वह भी समय था जब प्याऊ पर जाति पूछकर पानी पिलाया जाता था। गंगा सागर की टोंटी में बांस का टुकड़ लगाकर पानी पिलाते थे ताकि पवित्रता भंग न हो। मेरे बाबूजी ने यह सब झेला है। अब सबकुछ बदल गया है।

अच्छा काम करो, किसी से डरो मत।

मैंने बाबूजी के निधन के दूसरे दिन ही फैक्टरी खोल दी थी। एक्सपोर्ट करने के लिए रात-दिन काम करना होता है। मेरी फैक्टरी में काम करने वाले बस्ती के लोग कहते थे कि ये तो कम कराकर मार डालेगा। मुझसे एक्सपोर्टर पूछते थे कि यह कैसा जाटव है जो दारू नहीं पीता है और समय पर काम करता है, बिंदास रहता है।

मैं आपको जूता से संबंधित सलाह फ्री में देने के लिए हर समय उपलब्ध हूँ।

‘जूता उद्योग विरासत और चुनौतियां’ विषयक कॉनक्लेव में प्रसिद्ध शू एक्सपोर्टर पूरन डावर ने कहा, सब सोचें पूरन डावर कैसे बनना है?

देवकी नंदन सोन के बारे में

शू डिजाइनिंग तथा अपनी कुशल जूता निर्माण शैली से निरंतर 50 वर्षों से आगरा के विश्वविख्यात जूता उद्योग को अपना योगदान देते हुए अनेक सम्मान तथा कीर्तिमान स्थापित करने वाले देवकी नंदन सोन ने 01 अक्टूबर 1971 को सेंट्रल फुटवियर ट्रेंनिंग सेंटर (सीएफटीआई) आगरा में शू डिजाइनिंग की ट्रेनिंग के लिए एडमिशन लिया था। वहां से 1 वर्ष की ट्रेनिंग में विशेष योग्यता प्राप्त कर अब तक हवाई कुदान, बर्फ पर फिसलने वाले तथा भारतीय मार्केट और लैक्मे फैशन वीक की मॉडल्स के साथ-साथ  क्रिकेट सम्राट सुनील गावस्कर के सनी ब्रांड के जूते बनाए। अब क्रिकेट विश्व कप विजेता क्रिकेटर कपिल देव की जीवनी पर बनी फिल्म ‘83’ और अभिनेता अजय देवगन की निर्माणाधीन फिल्म ‘मैदान’ के लिए भी अपनी शू कोन ग्रामोद्योग कंपनी से जूते सप्लाई किए हैं।

सोन द्वारा डिजाइन किए गए जूतों की इटली की विश्व प्रसिद्ध कैटलॉग ए.आर.एस. में भी स्थान मिल चुका है। 1998 में आजादी की 50वीं वर्षगांठ पर विदेश मंत्रालय द्वारा प्रख्यात फिल्म निर्देशक कबीर खान से सोन की जीवनी पर ‘ए नेशन सेलीब्रेट’ डॉक्यूमेंट्री फिल्म का निर्माण कराया। इसे दूरदर्शन के मैट्रो चैनल पर प्रदर्शित किया गया। उनकी शू डिजाइनिंग को स्थानीय समाचार पत्रों, अनेक अंतरराष्ट्रीय मैगजीन, टीवी चैनलों पर स्थान मिला है। सोन के योगदान के लिए देश के अनेक शहरों में उन्हें सम्मानित किया जाता रहा है। फिल्मकार यश चोपड़ा तथा पूर्व लोकसभा अध्यक्ष मीरा कुमार भी सोन की जूता दस्तकारी से प्रभावित रहे हैं। सीएफटीआई ने सोन को 2020 में ‘प्राइड ऑफ सीएफटीआई’ से सम्मानित किया है। जिला उद्योग केन्द्र ने चर्मकला के लिए ‘मास्टर क्राफ्ट्स मैन’ घोषित किया। प्रधानमंत्री रोजगार योजना में बेरोजगारों को प्रशिक्षित किया। तमाम लोग उनसे प्रेरणा लेकर शू डिजाइनिंग सीखकर आगरा के जूता उद्योग की चमक बनाए रखने के लिए समर्पित हो रहे हैं। सोन आगरा के जूता दस्तकारों की कुशल दक्षता के प्रतीक हैं।

Dr. Bhanu Pratap Singh