आगरा में पहली बार आयोजित तीन दिवसीय चतुर्थ राष्ट्रीय प्राकृत संगोष्ठी का शुभारंभ आज शुक्रवार को, स्थानाङ्गसूत्र पर होगा गहन विचार-विमर्श

PRESS RELEASE

आगरा: भारत की प्राचीन जनभाषा प्राकृत को पुनर्जीवित करने और उसके गूढ़ ज्ञान को आधुनिक संदर्भ में प्रस्तुत करने के उद्देश्य से तीन दिवसीय चतुर्थ राष्ट्रीय प्राकृत संगोष्ठी का आयोजन 3 से 5 अक्टूबर तक महावीर भवन, जैन स्थानक, न्यू राजा की मंडी कॉलोनी, आगरा में किया जा रहा है। यह पहली बार है जब आगरा इस स्तर की प्राकृत संगोष्ठी की मेज़बानी कर रहा है।

मीडिया समन्वयक विवेक कुमार जैन की सूचनुसार इस संगोष्ठी का शुभारंभ 3 अक्टूबर को प्रातः 10 बजे राज्यसभा सांसद श्री नवीन जैन द्वारा किया जाएगा। मुख्य वक्ता के रूप में विश्व हिंदू परिषद के राष्ट्रीय संयुक्त महामंत्री डॉ. सुरेन्द्र जैन उपस्थित रहेंगे, जबकि विशिष्ट अतिथि के रूप में काशीनाथ न्यौपाने और श्रुत रत्नाकर ट्रस्ट, अहमदाबाद के संस्थापक निदेशक डॉ. जितेन्द्र भाई शाह संगोष्ठी को संबोधित करेंगे।

आयोजन की विशेषताएँ:

• संगोष्ठी का केंद्रीय विषय “स्थानाङ्गसूत्र” है — जो जैन आगम साहित्य का एक अत्यंत महत्वपूर्ण ग्रंथ है।
• इसमें ज्ञान, दर्शन, मनोविज्ञान, खगोलशास्त्र और जीवनमूल्यों की गहन विवेचना की गई है।
• देशभर से पचास से अधिक प्राकृत भाषा के विद्वान और शोधकर्ता भाग लेंगे।
• 36 से अधिक शोध पत्र प्रस्तुत किए जाएंगे, जो स्थानाङ्गसूत्र के विविध पहलुओं को आधुनिक दृष्टिकोण से समझने का प्रयास करेंगे।

प्रमुख संतों का पावन सानिध्य:

इस आयोजन को जैन मुनि आगम ज्ञान रत्नाकर, बहुश्रुत जय मुनि जी और गुरु हनुमंत आदीश मुनि जी का पावन सानिध्य प्राप्त होगा, जिससे संगोष्ठी का आध्यात्मिक महत्व और भी बढ़ जाएगा।

शोध पत्रों के प्रमुख विषय:

• प्राकृत में हाल के विकास के पचास मार्ग
• स्थानाङ्ग सूत्र में ध्यान का वर्गीकरण
• क्रोध के प्रकार – एक मनोवैज्ञानिक विश्लेषण
• रोगोत्पत्ति के नौ कारणों का चिकित्सा विज्ञान से तुलनात्मक अध्ययन
• कर्मबंध और कर्मक्षय के कारण
• ब्रह्मचर्य की सैद्धांतिक और व्यावहारिक पृष्ठभूमि
• Dualism के परिप्रेक्ष्य में जीव और जगत की व्याख्या
• स्थानाङ्ग सूत्र में प्रतिपादित जीवन मूल्य

प्राकृत भाषा का महत्व:

प्राकृत भाषा भारतवर्ष की प्राचीन जनभाषा रही है। सभी जैन आगम इसी भाषा में रचे गए हैं — जिनमें सैद्धांतिक, धार्मिक, नाटक, महाकाव्य एवं कथा ग्रंथ शामिल हैं। भारतीय संस्कृति का सम्यक् बोध प्राकृत साहित्य के अध्ययन के बिना अधूरा है। संस्कृत नाटकों में भी प्राकृत का व्यापक प्रयोग हुआ है

पुनर्जीवन का प्रयास:

पिछले कुछ वर्षों में प्राकृत भाषा का अध्ययन-अध्यापन रुक गया था। इसे पुनर्जीवित करने का कार्य श्रुत रत्नाकर ट्रस्ट, अहमदाबाद द्वारा डॉ. जितेन्द्र बी. शाह के नेतृत्व में विगत 25 वर्षों से किया जा रहा है। इस प्रयास को भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय का भी सहयोग प्राप्त है।

वक्ताओं की सूची में शामिल प्रमुख नाम:

आचार्य नंदिघोषसूरि जी, पी. जयमुनि जी, अभिषेक जैन, अक्षिता संघवी, अमोघ प्रभुदेसाई, धर्म चंद जैन, दिलीप ढींग, दीनानाथ शर्मा, गणेश तिवारी, कल्पना शाह, कमल जैन, कुणाल कपासी, एम. चंद्रशेखर, मानसी धारीवाल, मोहन पांडे, मोहित जैन, नीरू जैन, पत्रिका जैन, पवन कुमार जैन, फूलचंद जैन, प्रेमी प्रीति रानी जैन, रजनीश शुक्ला, राका जैन, रेनू जैन, रेशमा देवेंद्र, शोभना शाह, श्वेता जैन, सुभाष कोठारी, सुमत कुमार जैन, सुनेना जैन, सुनीता जैन, सुषमा सिंघवी, तारा डागा, वैशाली शाह, विजय कुमार जैन सहित अनेक प्रतिष्ठित विद्वान।

संगोष्ठी का उद्देश्य:

यह संगोष्ठी न केवल प्राकृत भाषा और जैन दर्शन के विद्वानों के लिए एक मंच है, बल्कि यह आत्मशुद्धि, ज्ञान और साधना का भी एक अवसर है। स्थानाङ्गसूत्र की गूढ़ता को समझने और जीवन में उतारने की इस यात्रा में सभी प्रतिभागियों को बहुत कुछ नया सीखने का अवसर मिलेगा।

समय सारिणी:

संगोष्ठी प्रतिदिन प्रातः 10 बजे से सायं 5:30 बजे तक चलेगी।

-up18News

Dr. Bhanu Pratap Singh