hindu dharma rakshak gokula jat book release

डॉ. भानु प्रताप सिंह ‘चपौटा’ की पुस्तक ‘हिन्दू धर्म रक्षक वीर गोकुला जाट’ का लोकार्पण

साहित्य

Agra, Uttar Pradesh, India. देश और हिन्दू धर्म की रक्षा के लिए बलिदान देने वाले वीर गोकुला जाट की प्रतिमा का अनावरण शाहजहां गार्डन के मुख्य द्वार पर किया गया। आगरा के महापौर नवीन जैन ने प्रतिमा की स्थापना की है। इससे पूर्व आयोजित समारोह में वरिष्ठ पत्रकार और साहित्यकार डॉ. भानु प्रताप सिंह ‘चपौटा’ द्वारा लिखित पुस्तक ‘हिन्दू धर्म रक्षक वीर गोकुला जाट’ पुस्तक का लोकार्पण किया गया।

 

केन्द्रीय विधि एवं न्याय राज्यमंत्री प्रो. एसप सिंह बघेल, महापौर और अखिल भारतीय महापौर परिषद के राष्ट्रीय अध्यक्ष नवीन जैन, राज्यसभा सांसद हरद्वार दुबे, विधायक डॉ. जीएस धर्मेश, विधायक डॉ. धर्मपाल सिंह, विधायक पुरुषोत्तम खंडेलवाल, विधान परिषद सदस्य विजय शिवहरे, अनिल चौधरी, जेएस जाट, पुस्तक लेखक डॉ. भानु प्रताप सिंह ने किया। सभी ने पुस्तक की सराहना की। केन्द्रीय मंत्री ने अपने भाषण से पूर्व पुस्तक को ध्यानपूर्वक पढ़ा। बता दें कि वीर गोकुल सिंह को वीर गोकुल जाट के नाम से जाना जाता है। वीर गोकुल सिंह ने 16वीं सदी में आतताई औरंगजेब की धर्मांधतापूर्ण नीति के खिलाफ सशस्त्र किसान क्रांति की। इतिहास की यह पहली किसान क्रांति है। धर्मनगरी मथुरा के मंदिर अगर सुरक्षित हैं, तो वह वीर गोकुला जाट के शौर्य का परिणाम है।

gokula book release
हिन्दू धर्म रक्षक वीर गोकुल जाट पुस्तक का लोकार्पण करते अतिथि। दाएं हैं लेखक डॉ. भानु प्रताप सिंह।

औरंगजेब ने 9 अप्रैल 1669 को केशवराय मंदिर ध्वस्त करने का आदेश दिया। हिन्दुओं के गुरुकल बंद करा दिए। हिन्दुओं पर जजिया लगा दिया। कर वसूली के लिए अतिशय अत्याचार होने लगे। महिलाओं की आबरू लूटी जाने लगी। जब तिलपत के जमींदार वीर गोकुल सिंह ने 20 हजार किसानों की सेना बनाई। सिहोरा गांव (मथुरा) में मथुरा के फौजदार अब्दुन्नवी का वध किया। सादाबाद छावनी को तहस-नहस कर दिया। पांच माह तक इस तरह के युद्ध होते रहे। इससे घबराए फौजदार शफ शिफन खां ने गोकुल सिंह को संधि प्रस्ताव भेजा कि क्षमा मांग ले। गोकुल सिंह ने इनकार कर दिया। इससे बौखलाया औरंगजेब भारी फौज के साथ 28 नवम्बर, 1669 को दिल्ली से चलकर मथुरा आया। उसने दाऊ जी का मंदिर तोड़ने का प्रयास किया लेकिन सफलता नहीं मिली। उसने चमत्कार को नमस्कार किया और पांच गांव दाऊ जी मंदिर के नाम कर दिए। 4 दिसम्बर, 1669 को मुगल फौज ने जाटों की तीन गढ़िया नष्ट कर दीं। हिन्दू महिलाओं ने अपनी आबरू बचाने के लिए जौहर किया। इस जौहर का इतिहास में कहीं उल्लेख नहीं है।

 

दिसम्बर, 1669 के अंतिम सप्ताह में औरंगबेज की फौज और वीर गोकुल सिंह की सेना के मध्य युद्ध हुआ। तीन दिन तक युद्ध चला। 4000 मुगल सिपाही और 5000 किसान सैनिक मारे गए। तिलपत गढ़ी की कच्ची दीवारें तोप के गोलों के आगे ध्वस्त हो गईं। वीर गोकुला, उनके चाचा उदय सिंह और 7000 किसान सैनिकों को गिरफ्तार कर लिया गया। आगरा किला में गोकुल सिंह के समक्ष शर्त रखी गई कि मुसलमान बन जाओ तो जान बख्श दी जाएगी। गोकुल सिंह के इनकार कर 1 जनवरी, 1670 को आगरा की पुरानी कोतवाली (सुभाष बाजार, आगरा) के सामने चबूतरे पर गोकुल सिंह की अंग-अंग काटकर हत्या कर दी गई। उदय सिंह की खाल खिंचवा ली गई। इसके तत्काल बाद मथुरा का केशवराय मंदिर ध्वस्त करके मस्जिद खड़ी कर दी गई। अगर वह मुस्लिम बन जाते तो जीवित रहते और जमींदारी भी वापस मिल जाती।

hindu dharma rakshak gokula jat book release in agra
hindu dharma rakshak gokula jat book को पढ़ते एसपी सिंह बघेल और विजय शिवहरे।

गोकुल सिंह के बलिदान के बाद मथुरा के माथुर वैश्यों पर औरंगजेब ने कहर बरपाया। इसका कारण यह था कि देशभक्त माथुर वैश्य गोकुल सिंह को आर्थिक मदद देते थे। माथुर वैश्यों को मथुरा से पलायन करना पड़ा। यमुना के बीहड़ों में रहने लगे। 150 साल तक निर्वासित जीवन जीने को मजबूर हुए। आगरा पर अंग्रेजों ने कब्जा किया तो माथुर वैश्य बीहड़ों से निकलकर गांवों और कस्बों में आए।

 

डॉ. भानु प्रताप सिंह चपौटा ने वीर गोकुल सिंह की इस महागाथा को उपन्यास शैली में रेखांकित किया है। वीर गोकुल सिंह के साथ इतिहासकारों ने अन्याय किया। गोकुल सिंह के लिए एक पंक्ति तक नहीं लिखी। यह काम इसलिए किया कि वीर गोकुल सिंह ने औरगंजेब के छक्के छुड़ा दिए थे। औरंगजेब की झूठी शान बनाए रखने के लिए वीर गोकुल सिंह का नाम किताबों से तो गायब कर दिया लेकिन आम जनता के मस्तिष्क पटल से गायब नहीं कर सके। किंवदंतियों में गोकुल सिंह आज भी जीवित हैं और सदा रहेंगे। वीर गोकुल सिंह जैसा दिलेर संसार में नहीं हुआ है। अगर गोकुल सिंह सिख धर्म में जन्मे होते तो उनकी स्वर्ण प्रतिमाएं लग गई होतीं।

 

इस पुस्तक में कई रहस्योद्घाटन भी किए गए हैं। वीर गोकुल सिंह का आगरा में वास्तविक बलिदान स्थल खोजा गया है। गोकुल सिंह के वंशज आज भी गांव में रहते हैं। गोकुल सिंह की बहन भँवरी कौर के बलिदान का रोमांचक वर्णन है। तिलपत युद्ध का रोमांचक खाका खींचा गया है। यह पुस्तक आपके रोम-रोम को रोमांचित कर देगी। वीर गोकुल सिंह के बलिदान पर आप नतमस्तक हो जाएंगे। देश, समाज और हिन्दू धर्म की सेवा करनी है तो पुस्तक पढ़िए और अपने मित्रों को उपहार में दीजिए। यह पुस्तक श्री आनंद शर्मा और श्री प्रदीप जैन के सहयोग से प्रकाशित हो सकी है।

veer gokula jat

हिन्दू धर्म रक्षक वीर गोकुला जाट पुस्तक ऑनलाइन खरीदने के लिए यहां क्लिक करें

 

Dr. Bhanu Pratap Singh