दुनिया में सबसे बड़ा काम है- माता-पिता की जिम्मेदारी निभाना, बच्‍चों के हित में कतई नहीं है पिटाई – Up18 News

दुनिया में सबसे बड़ा काम है- माता-पिता की जिम्मेदारी निभाना, बच्‍चों के हित में कतई नहीं है पिटाई

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फर्स्ट मॉम्स क्लब (इंडिया) ने अर्ली चाइल्डहुड एसोसिएशन (ECA) और बॉर्न स्मार्ट के साथ मिलकर फरवरी 2018 में बच्चों को माता-पिता द्वारा पीटने को लेकर भारत में एक सर्वे कराया। 1790 पेरेंट्स पर कराए गए इस सर्वे में पाया गया कि 69 फीसदी पेरेंट को पता है कि बच्चों को थप्पड़ लगाने का क्या प्रभाव होता है। दरअसल जिन पेरेंट्स पर यह सर्वे कराया गया वे पढ़े लिखे और प्रोफेशनल्स थे।

76.4% पेरेंट्स ने कहा कि वे तब हाथ उठाते हैं जब बच्चा परेशान करता है।

72 फीसदी पेरेंट्स ने माना कि बच्चे पर हाथ उठाकर उन्हें पछतावा होता है।

19 फीसदी पेरेंट्स ने माना कि बच्चे को पीटकर ही अनुशासन सिखा सकते हैं।

69% पेरेंट्स ने यह भी माना कि बच्चों पर हाथ उठाना गलत है, लेकिन वे गुस्से में आपा खो बैठते हैं।

लाइफ के पहले 1000 दिन हैं खास, हर सेकेंड दिमाग होता है विकसित

यूनिसेफ के मुताबिक, एक बच्चे की परवरिश के शुरुआती साल उसकी पर्सनैलिटी की नींव रखते हैं। यानी बच्चे का व्यवहार कैसा होगा और किस तरह की सोच रखेगा। यही चीजें जीवन में कामयाबी का आधार बनती हैं।

यूनिसेफ का कहना है कि जीवन के पहले 1,000 दिनों यानी करीब तीन साल तक बच्चे का दिमाग तेजी से विकसित होता है। हर सेकेंड दस लाख से ज्यादा नए न्यूरल कनेक्शन बनते हैं।

ऐसा मौका जीवन में केवल एक बार आता है। ये सभी जुड़ाव एक-साथ तभी होते हैं जब एक बच्चे को सही सेहत, पर्याप्त पोषण, सुरक्षा, जिम्मेदारी से देखभाल और जल्दी सीखने का मौका मिलता है।

न्यूरोसाइंस में इस बात के सबूत मिलते हैं कि जींस दिमाग के विकास का ब्लूप्रिंट तो तैयार करते हैं, लेकिन बच्चे का माहौल उसके दिमाग को विकसित करने में अहम भूमिका निभाता है।

यूनिसेफ के मुताबिक, दुनिया में सबसे बड़ा काम है- माता-पिता की जिम्मेदारी निभाना। इस जिम्मेदारी के तहत पेरेंट के सामने 5 साल तक के बच्चे को सही माहौल देने की और बड़ी जिम्मेदारी रहती है।

इस उम्र के बच्चे में सीखने, समझने और बदलावों को अपनाने की क्षमता विकसित होती है और इस दौरान तमाम घटनाओं का बच्चे के मन पर जो असर पड़ता है, वह जिंदगी भर रहता है। इसी से उसकी पर्सनैलिटी बनती है।

बढ़ने लगा है बेबी प्रूफिंग का चलन

छोटे बच्चों को सेफ रखने के लिए; चाइल्डप्रूफ नर्सरी को ‘बेबी प्रूफ’ कहते हैं। मतलब बच्चे जब तक ठीक से चलना नहीं सीखते तब तक उन्हें बेबी प्रूफ की जरूरत पड़ती है। यूरोप, ऑस्ट्रेलिया सहित कई देशों में बेबीप्रूफिंग का चलन बढ़ रहा है।

Dr. Bhanu Pratap Singh