radha krishna

राधा-कृष्ण प्रेम की वास्तविकता, ऐसा सच जो आपको हैरान कर देगा

NATIONAL PRESS RELEASE REGIONAL RELIGION/ CULTURE

उत्तर भारत के अनेक संत-कवियों ने भगवान श्रीकृष्ण और राधा के विषय में श्रृंगाररसपूर्ण काव्यरचनाएं की हैं । उसके पश्चात हिन्दी और अन्य भाषाओं के कवियों ने भी ऐसे गीत लिखे । उनमें श्रृंगार, रूप, मधुर संवाद, भाव-भावनाओं का रस पूर्ण वर्णन है । आजकल के कुछ कथावाचक, मठाधीश, संत, पीठाधीश्वर आदि श्रीकृष्ण और राधा की प्रेमकथा रंगीन बनाकर बताते हैं । इस प्रकार की काव्य रचनाएं, लेख, चलचित्र और दूरदर्शन के धारावाहिकों की संख्या इतनी अधिक हो गई है उन्हें देखकर कुछ लोगों के मन में श्रीकृष्ण की छवि एक प्रेमवीर की बन गई है ।

ये संतकवि, महात्मा और सामान्य जनता श्रीकृष्ण चरित्र से अपनी रुचि के अनुसार बातें चुनते हैं। वास्तविक, श्रीकृष्ण का व्यक्तित्व केवल अष्टांगी नहीं, अपितु उसके अनंत रंग हैं। वैभव, बल, यश, संपत्ति, ज्ञान, वैराग्य, मधुर बांसुरी वादन, सौंदर्य, चातुर्य, भगिनी प्रेम, भ्रातृप्रेम, मित्रप्रेम, युद्ध कौशल, सर्व सिद्धि संपन्नता – उनमें क्या नहीं है, सब कुछ है। सभी गुणों की उच्चतम अवस्था है। ऐसा होने पर भी, वे सबसे अलिप्त थे। भगवान् श्रीकृष्ण के मायातीत, निर्लिप्त स्वरूप का ज्ञान सर्वसाधारण लोगों को नहीं रहता, इसलिए वे लौकिक स्त्री-पुरूष भेद पर आधारित श्रृंगार रस पूर्ण कथाओं में डूब जाते हैं। श्रीकृष्ण के विषय में निम्नलिखित बातें अवश्य जान लें।

श्रीकृष्ण ने कभी प्रेम विवाह नहीं किया – श्रीकृष्ण ने एक भी प्रेम विवाह नहीं किया था । उनके विवाहों की संक्षिप्त जानकारी आगे दे रहे हैं ।

रुक्मिणी – विदर्भ की राजकुमारी रुक्मिणी की इच्छा श्रीकृष्ण से विवाह करने की थी । परंतु, उनके भाई ने उनका विवाह शिशुपाल से निश्‍चित किया था । तब, रुक्मिणी ने श्रीकृष्ण को पत्र भेजकर स्वयं को वहां से छुडाकर ले जाने के लिए कहा । श्रीकृष्ण ने उन्हें देखा भी नहीं था । उनकी इच्छानुसार श्रीकृष्ण आकर उन्हें ले गए ।

जाम्बवन्ती – श्रीकृष्ण जब स्यमन्तक मणि खोज रहे थे, तब उसके लिए उनका जाम्बवन्त से युद्ध हुआ, जिसमें जाम्बवन्त पराजित हो गए । तब उन्हें अनुभव हुआ कि पहले के श्रीराम ही आज के श्रीकृष्ण हैं । इसलिए उसके उपरांत उन्होंने श्रीकृष्ण को मणि तथा अपनी कन्या जाम्बवन्ती को सौंप दिया ।

सत्यभामा – सत्यजित ने श्रीकृष्ण पर अपना स्यमन्तक मणि चुराने का आरोप लगाया था । आगे सच्चाई समझने पर उन्हें पश्‍चाताप हुआ और उन्होंने अपनी कन्या सत्यभामा का विवाह श्रीकृष्ण से कर दिया ।

कालिन्दी – सूर्यदेव की कन्या कालिन्दी ने श्रीकृष्ण की प्राप्ति के लिए यमुना तट पर कठोर तपस्या की । उसके उपरांत श्रीकृष्ण ने उनको अपनाया ।

मित्रविंदा – अवन्ती (उज्जैन) के राजा विन्द और अनुविन्द ने अपनी बहन मित्रविंदा का स्वयंवर रचा था; परंतु मित्रविंदा की इच्छा श्रीकृष्ण को पति बनाने की थी । श्रीकृष्ण उसे ले गए ।

सत्या – कोसल देश (अयोध्या) के राजा नग्नजीत की कन्या सत्या के स्वयंवर में सात दुर्दान्त बैलों को नाथने की प्रतियोगिता जीतकर श्रीकृष्ण ने विवाह किया ।

भद्रा – कैकेय देश के राजा संतर्दन ने अपनी बहन भद्रा का विवाह श्रीकृष्ण से कर दिया ।

लक्ष्मणा – मद्रदेश की राजकन्या लक्ष्मणा का स्वयंवर था । परंतु, उसकी इच्छा श्रीकृष्ण से विवाह करने की थी; इसलिए श्रीकृष्ण उसे ले गए ।

16100 राजकन्या – प्राग्ज्योतिषपुर का राजा भौमासुर (नरकासुर) ने 16100 राजकन्याओ का अपहरण किया था । भौमासुर का वध करने के पश्‍चात, उन कन्याओं का स्वीकार समाज नहीं कर रहा था । तब श्रीकृष्ण ने उनसे विवाह कर, उन्हें प्रतिष्ठा दी ।

मथुरा जाने के पश्‍चात कभी बरसाना नहीं आए – बारह वर्ष की अवस्था में श्रीकृष्ण ब्रजभूमि छोड़कर मथुरा गए। उसके पश्‍चात वे जीवन में कभी भी राधा अथवा गोपियों से मिलने बरसाना अथवा व्रज नहीं गए, जबकि ये गांव मथुरा से थोडी ही दूर हैं। श्रीकृष्ण की अपेक्षा राधा आयु में बड़ी थीं।

नवधा भक्ति में ‘राधाभाव’ नहीं – भक्ति मार्ग में नवधा भक्ति प्रसिद्ध है। इसमें, प्रत्येक प्रकार की भक्ति अनन्य श्रद्धा भाव से करने पर ही ईश्‍वर तक पहुंचा जा सकता है। परंतु, इस नवधा भक्ति में ‘राधाभक्ति’ का समावेश नहीं है।

भागवतपुराण में राधा का उल्लेख नहीं – ‘महाभारत, हरिवंश पुराण, विष्णु पुराण और पुराणों में श्रेष्ठ तथा सात्विक भागवत पुराण में राधा का उल्लेख तक नहीं ।’ (संदर्भ : दि. 16.8.2017 का मराठी दैनिक सनातन प्रभात पृष्ठ सं. 7) (टिप्पणी)

गीता में वर्णित अनेक प्रकार की भक्तियों में राधाभाव नहीं – भगवद्गीता में भगवान् श्रीकृष्ण ने अनेक प्रकार की भक्तियां बताई हैं। परंतु, आजकल राधा की कृष्ण के प्रति जिस प्रेम भक्ति अथवा मधुरा भक्ति के विषय में बताया जाता है, वैसी भक्ति के विषय में श्रीकृष्ण ने कुछ नहीं कहा । 

महाराष्ट्र में राधा-कृष्ण की नहीं, विठ्ठल-रखुमाई के देवालय होना – हिन्दी भाषीय राज्यों में राधा-कृष्ण के मंदिर दिखाई देते हैं परंतु महाराष्ट्र में विठ्ठल-रुखुमाई को महत्त्व दिया है। विठ्ठल, श्रीकृष्ण का ही दूसरा नाम है। वे विष्णु की सोलह कलाओं के पूर्णावतार थे। रुक्मिणी, लक्ष्मी का अवतार थीं। महाराष्ट्र में मराठी लोगों ने राधा-कृष्ण के देवालय नहीं बनाए। 

तात्त्विक विवेचन – राधा-कृष्ण की कथाएं काल्पनिक, अतिरंजित अथवा वास्तविक, जैसी भी हों, राधा भाव बुरा नहीं है और निरुपयोगी भी नहीं है । परंतु, वह स्वभावदोष दूर करने में सहायक अथवा चित्त शुद्धि के अनेक साधनों में एक साधन है; साध्य नहीं । भाव कोई भी हो, वह ईश्‍वर का स्वरूप नहीं, अंतिम ध्येय नहीं । साध्य के समीप पहुंचने पर साधन छूटना आवश्यक होता है । (गीता अध्याय 6 श्‍लोक 3). ‘पातञ्जलयोगदर्शन’ में भी चित्तवृत्तियों के निरोध के विषय में कहा गया है । (समाधिपाद 1, सूत्र 2)  – अनंत आठवले। 

(टिप्पणी – अठारह महापुराणों में छह सत्त्वप्रधान, छह रजप्रधान और छह तम प्रधान माने जाते हैं ।)

-कु. कृतिका खत्री, दिल्ली

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