dadaji maharaj agra

राधास्वामी मत के आदि केंद्र हजूरी भवन आगरा में विशेष सत्संग महोत्सवः दादाजी महाराज का पवित्र रज कलश समाध में विलीन, व्याकुल हुए सत्संगी

RELIGION/ CULTURE

डॉ. भानु प्रताप सिंह

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Agra, Uttar Pradesh, India, Bharat. प्रेम और करुणामयी वातावरण, अश्रूपूर्ण नैन लिये प्रेमियों की लम्बी कतार, प्रीतम से बिछड़ने का वियोग और मुख पर एक ही सवाल कि ‘पिया तुम जाय छिपे किस ओर’। प्रेमी से पूछा गया कि कौन हैं तुम्हारे प्रीतम, किसके वियोग में रोते हो, किससे बिछड़कर परेशान होते हो। रुआंसी आवाज़ में जवाब आया कि – ‘वो अकथ हैं, अनंत  हैं, सबके लबों पर हैं, सबके दिलों में हैं। किसी के भाई, सखा, किसी की प्रेरणा, किसी की चितवन, धड़कन, किसी के पिता और करोड़ों लोगों के परम पिता। मुझ दुखियारे के लिये अचूक मंत्र। समाज की हर अनैतिकता को काट फेंकने वाला अमोघ यंत्र। जो मात्र नेत्र की श्वेतिका की हलचल से काट दें अनाचार का तंत्र। नि:संदेह बरबस ही उनके अभिवादन में झुकते हैं लाखों मस्तक। जुड़ जाते हैं दीन -दुखियों के हाथ इसी विश्वास से कि सारी दुनिया भले ही छोड़ दे पर यह प्रेम के शहंशाह कभी नहीं छोड़ेंगे हमारा साथ। फिर दुनिया से क्या डरना। किसकी परवाह करना। कौन है जो डिगा सकता है हमें। कौन है जो मिटा सकता है हमें। जब सिर पर है उनका दया भरा हाथ।’ उस परवाने के नैनो से अनायास ही अश्रु धारा बह उठती है और वो गाने लगता है –

ढूँढत ढूँढत थक कर हारी।

रैन हुई चहुँ ओर।

पिया तुम जाय छिपे किस ओर।।

राधास्वामी सत्संग हज़ूरी भवन में आज हज़ारों सत्संगी अपने प्रीतम परम पुरुष पूरन धनी दादाजी महाराज की विशेष सेवा के लिये एकत्रित हुए। अपने प्रीतम की नवनिर्मित समाध पर उनकी पवित्र रज प्रतिस्थापित करने। अपने प्रीतम के प्रेम में एक बार फिर भाव विभोर होने। अपने प्रीतम से एक बार फिर अपने दिल की बात कहने। अपने प्रीतम की याद में व्याकुल हो तड़पने और कहने कि –

व्याकुल व्यथित फिरूँ बौरी सी।

रोय पड़ी बहु ज़ोर।

तुम बिन मैं बस रहत सकत नहिं।

कित जाऊँ किस ठौर।

पिया तुम जाय छिपे किस ओर।।

दादाजी महाराज की समाध
हजूरी भवन आगरा में राधास्वाामी मत के पंचम गुरु दादाजी महाराज के पवित्र रज कलश को समाध के भूमिगत कक्ष में पहुंचाया जा रहा है।

प्रात: राधास्वामी नाम की धुन के साथ नम आँखे लिये लम्बी कतार में सत्संगियों ने दादाजी महाराज की पवित्र रज के दर्शन किये। दुनियावी दृष्टि से तो अस्थि कलश ही  था लेकिन प्रेमियों के लिए उनके प्रीतम की मौजूदगी का प्रतीक। नतमस्तक तो होना ही था,  दिल भर आना ही था, याद में व्याकुल होना ही था। पवित्र रज के कलश को फिर दादाजी महाराज की समाध में बने भूमिगत कक्ष में उतारा गया और गुलाब के फूलों से ढकने के बाद अष्टकोणीय संगमरमर से कक्ष बंद कर दिया गया। कक्ष बंद होते ही कलश दिखाई देना बंद हो गया और प्रेमियों में वियोग की लहर उठ आई –

हे सतगुरु मेरी टेर सुनो अब।

जल्दी दरस देओ चितचोर।

दया करो हुई देर घनेरी।

आय मिलो पिया मोर।

पिया तुम जाय छिपे किस ओर।।़

नवनिर्मित समाध पर तुरंत दादाजी महाराज की चौकी लगायी गई जिसपर उनके नयनाभिराम स्वरूप लगाये गए। प्रेमीजनों ने मिलकर फिर अपने प्रीतम की आरती करी।

राधास्वामी मात पिता पति मेरे।

दे दो धीरज बंदी छोड़।

पिया तुम जाय छिपे किस ओर।।

dadaji maharaj
राधास्वामी मत के पंचम गुरु दादाजी महाराज की हजूरी भवन आगरा में नवनिर्मित समाध पर सतसंग।

वियोग तो था ही, तड़प भी थी, दिल के साथ साथ गले भी भर उठे थे। कहते है कि प्रीतम अपने प्रेमी को तड़पता देख दर्शन दे ही देते हैं। समाध परिसर में रूहानी रौनक, फ़िज़ा में प्रीतम की खुशबू, और सबको ढांढस बंधाता प्रीतम का अहसास, मानो प्रेमी की तड़प बुझाने चले आये हों और वहीं मौजूद हों –

दया करी और विनय सुनी मोरि।

प्रगट हुए कर दीनी भोर।।

कार्यक्रम

6-12-2023 को सायं 6:45 बजे से विशेष आरती सतसंग – 125 वाँ आरती सतसंग (अंग्रेजी तिथि) परम पुरुष पूरन धनी हजूर महाराज राधास्वामी दयालः स्थानः समाध परम पुरुष पूरन धनी हजूर महाराज राधास्वामी दयाल

7-12-2023 को प्रातः 11:00 बजे से 125 वाँ वार्षिक आरती सतसंग एवं भंडारा। स्थानः परम पुरुष पूरन धनी हजूर महाराज राधास्वामी दयाल। स्थानः समाध परम पुरुष पूरन धनी हजूर महाराज राधास्वामी दयाल।

dadaji maharaj hazuri bhawan
राधास्वाामी मत के पंचम गुरु दादाजी महाराज के पवित्र रज के अंतिम दर्शन करते सतसंगी यह रज हजूरी भवन आगरा के गुरु भवन में रखी गई।

दादाजी महाराज के बारे में

अगम प्रसाद माथुर का जन्म 27 जुलाई, 1930 को पीपल मंडी स्थित हजूरी भवन में हुआ था। उन्होंने सेंट जोंस कालेज से शिक्षा ग्रहण की। वर्ष 1952 में उन्होंने आगरा कालेज में अध्यापन शुरू किया। वर्ष 1982 से 1985 तक और 1988 से 1991 तक वह आगरा विश्वविद्यालय (वर्तमान डा. भीमराव आंबेडकर विश्वविद्यालय) के दो बार कुलपति रहे। वर्ष 1980 में उन्होंने यादगार-ए-सुलह-ए-कुल का आयोजन आगरा किला व फतेहपुर सीकरी में कराया था।

राधास्वामी मत के दूसरे आचार्य हजूर महाराज ने वर्ष 1885 में पीपल मंडी स्थित अपनी जन्मस्थली के नजदीक तीन टीलों को खरीदकर सात चौक वाला मकान बनवाया था। मत संस्थापक और आचार्य हजूर महाराज की पवित्र कर्मस्थली को राधास्वामी मतावलंबी हजूरी भवन के नाम से पुकारते हैं। यहां पर हजूर महाराज, तृतीय आचार्य लालाजी महाराज, चतुर्थ आचार्य कुंवरजी महाराज की पवित्र समाध, उनकी पवित्र लीला स्थली और निज कक्ष, हजूरी रसोई और हजूरी आवास मौजूद हैं।  पंचम आचार्य दादाजी महाराज की समाध बन गई है।

हजूरी रसोई में हजूर महाराज ने साधुओं व बाहर से आने वाले अनुयायियों के निशुल्क भोजन व प्रसाद की व्यवस्था की थी। वर्ष 1980 में दादाजी महाराज के निर्देशन में रसोई की चार मंजिला इमारत बनवाई गई थी। रसोई में सुबह व शाम एक हजार से अधिक लोग भोजन करते हैं।

Dr. Bhanu Pratap Singh