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सामाजिक महामारी है स्मार्ट फोन की लत, पढ़िए क्या कहते हैं विशेषज्ञ

NATIONAL PRESS RELEASE REGIONAL

Agra, Uttar Pradesh, India. कोविड -19 के अनेक परिणाम हमारे सम्मुख उभरकर आए हैं, उनमें से एक है स्मार्ट फोन । बच्चों और यहाँ तक ​​कि वयस्कों में इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स की बढ़ती लत आज निश्चित रूप से चिंता का विषय है। इसी पर चर्चा और विश्लेषण करने के लिए ज़ूम मीटिंग के माध्यम से अप्सा (एसोसिएशन ऑफ प्रोग्रेसिव स्कूल्स ऑफ आगरा), हिंदुस्तान इंस्टीट्यूट, (एसजीआई), वी फोर आगरा एंड रेडिको के सौजन्य से एक वेबिनार आयोजित किया। विषय था- स्मार्ट फोन की लत – एक सामाजिक महामारी। वेबिनार के मॉडरेटर- डॉ. नवीन गुप्ता (निदेशक – एचआईएमसीएस) थे।

 वार्ता के प्रमुख वक्ता डॉ.अरुण कुमार पुलेला (स्कूल ऑफ क्रिमिनोलॉजी, राष्ट्रीय रक्षा विश्वविद्यालय, गुजरात), डॉ. श्वेता शर्मा (सलाहकार नैदानिक ​​मनोवैज्ञानिक, कोलंबिया एशिया अस्पताल), डॉ. सत्यम् (सहायक प्रोफेसर, नैदानिक ​​मनोवैज्ञानिक, एबीवीआईएमएस एवं आरएमएल अस्पताल, नई दिल्ली) थे।

इस वेबिनार के माध्यम से बच्चों एवं वयस्कों को स्मार्टफोन्स एवं अन्य इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स के प्रयोग के प्रति जागरूक करने का प्रयास किया गया। वार्ता के दौरान  डॉ. अरुण पुलेला ने बताया कि जब भी हम सोशल मीडिया पर कोई फोटो शेयर करते हैं तो उसके माध्यम से हम से जुड़ी बहुत सारी जानकारी स्वत: ही मिल जाती है। बिना आवश्यकता के हमें GPS या लाइव लोकेशन चालू नहीं रखना चाहिए।

 डॉ. श्वेता शर्मा ने मोबाइल फोन से दूर रहने के लिए परंपरागत पारिवारिक समय सारिणी बनाने पर जोर दिया। इसके माध्यम से हम सुबह का नाश्ता एवं रात का भोजन साथ खाने का नियम बनाएँ, जिससे उस समय मोबाइल फोन से सभी दूर रहें।

डॉ. सत्यम् ने कहा कि कोरोना के चलते बच्चों को अध्ययन के लिए तीन चार घंटे तक स्मार्टफोन का प्रयोग करना पड़ रहा है। इसके बाद वे लगभग एक घंटा खेलने या वीडियो कॉल के लिए चाहते हैं। इसके लिए हम रिवार्ड्स का नियम बनाएँ। घर के छोटे-मोटे कामों में उन्हें व्यस्त रखें। संयुक्त परिवार के कारण बच्चों के लिए बनाए नियमों में आने वाली परेशानी के प्रश्न का उत्तर देते हुए डॉ. नवीन गुप्ता ने कहा कि संयुक्त परिवार के बहुत सारे लाभ हैं और कुछ कमियाँ भी हैं। इस बात को ध्यान में रखते हुए प्रेम और धैर्य से अपनी बात को सदस्यों को समझाने का प्रयास करें। कि अगर हम बच्चों को मोबाइल के सीमित प्रयोग की इच्छा रखते हैं तो हमें स्वयं इसके लिए उन्हें अपना उदाहरण पेश करना होगा। जैसा हम करेंगे, वैसा ही बच्चे अनुकरण करते हैं।

 डॉ. सत्यम ने कहा कि पारिवारिक समय सारिणी सभी सदस्यों की सहमति से ही बनाई जाती है तो सभी को साथ बैठकर किसी भी विषय पर अप्रत्यक्ष रूप से चर्चा करके उसका समाधान निकाला जा सकता है। डॉ. श्वेता ने कहा कि अगर हम चाहते हैं कि बच्चे देर रात तक फोन का इस्तेमाल न करें तो हमें स्वयं भी नौ-साढ़े नौ बजे तक अपना फोन निर्धारित स्थान पर रखना होगा, जिससे बच्चे आपका अनुकरण करते हुए अपने समय का निर्धारण कर सकें।

डॉ. गुप्ता ने कहा कि आज कोरोना की भयावहता को देखते हुए ऑनलाइन क्लासेज के अलावा और कोई विकल्प नहीं है, इसके चलते बच्चों एवं अभिभावकों को आ रही परेशानियों को ध्यान में रखकर इस वेबिनार की महती आवश्यकता थी। मेरे विचार से आज की वार्ता के बाद इस समस्या से निपटने में हम सभी को मदद मिलेगी। इस कार्यक्रम के आयोजन में अप्सा के अध्यक्ष डॉ. सुशील गुप्ता, हिंदुस्तान इंस्टीट्यूट के डॉ. नवीन गुप्ता एवं रेडिको के के.सी. जैन का विशेष योगदान रहा।