Dadaji maharaj agra

राधास्वामी मत गुरु Dadaji Maharaj के अनमोल बचन -80: सुबह उठने के साथ ही राधास्वामी नाम लीजिए

NATIONAL PRESS RELEASE REGIONAL RELIGION/ CULTURE

राधास्वामी मत (Radhasoami Faith) के प्रवर्तक परम पुरुष पूरन धनी स्वामीजी महाराज (Soamiji Maharai) और परम पुरुष पूरन धनी हजूर महाराज (Hazur maharaj) ने इस नश्वर संसार में इस बात के लिए अवतार धारण किया कि जीवों का उद्धार हो सके। उन्होंने जीवों पर अनोखी दया लुटाई, बचन बानी के माध्यम से जीवों को अपने चरनों में खींचा, चेताया और उनका कारज बनाया। उन्होंने गुरुभक्ति और सतगुरु सेवा पर भी विशेष बल दिया और स्पष्ट रूप से कह दिया कि जब तक संपूर्ण जगत का उद्धार नहीं होता, धार की कार्यवाही निरंतर जारी रहेगी, वक्त के गुरु जीवों को चेताते रहेंगे। तब से लेकर आज तक यह सिलसिला जारी है और हजूर महाराज के घर हजूरी भवन, पीपल मंडी, आगरा (Hazuri Bhawan, Peepal mandi, Agra) में वर्तमान सतगुरु दादाजी महाराज (Radha Soami guru Dadaji maharaj) जीवों पर अपनी दया फरमा रहे हैं, उनका भाग जगा रहे हैं। दादा जी महाराज (Prof Agam Prasad Mathur former Vice chancellor Agra university) अपने सतसंग (Radhasoami satsang) में नित्य नवीन बचन फरमाते हैं जिससे यह जीव चेते और चरनों में लगे। उन्हीं बचनों में से कुछ अप्रकाशित वचन पुस्तिका ‘दादा की दात’ में जीवों के कल्याण के वास्ते दिए गए हैं। ये वचन न केवल जीवों के प्रीत प्रतीत को बढ़ाएंगे वरन उनका कारज भी बनाएंगे। यहां हम प्रस्तुत कर रहे हैं दादाजी महाराज के बचनों की श्रृंखला।

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गुरु स्वरूप का ध्यान करना चाहिए क्योंकि यह गुरुमत है। बिना गुरु के अपने आप न तो यह अभ्यास बन सकता है और न भक्ति प्राप्त हो सकती है। यानी निराकार की भक्ति नहीं हो सकती, साकार की भक्ति हो सकती है। इसीलिए राधास्वामी दयाल ने संत सतगुरु रूप धारण करके यहां मौजूद हर मौज फरमाई। वो तो हम लोगों के धन्य भाग हैं कि आखरी जमाने में स्वामी जी महाराज के फोटोग्राफी शुरू हो गई और स्वामी जी महाराज का खड़ा हुआ स्वरूप और एक बैठा हुआ स्वरूप, पूरे परिवार के साथ, जिसमें पीछे हजूर महाराज छाबा लिए हुए खड़े हैं, हम लोगों की अमूल्य धरोहर हैं। हम अब हम देख पाते हैं कि राधास्वामी दयाल का रूप कैसा था। यह बड़ी बड़भागिता है। फिर क्या वजह है? क्यों काहिली? क्यों जाहिली? रोज बैठकर अभ्यास नहीं करते। खाना खाते हो, काम करते हो, मेहनत करते हो, आठ-आठ दस घंटे लगे रहते हो, तो तुमसे आधे घंटे लगकर अभ्यास नहीं किया जाता। ताकीद किया जाता है कि सुबह उठने के साथ ही राधास्वामी नाम लीजिए। अंदर ही अंदर राधास्वामी नाम का सुमिरन कीजिए तब उठिए और पहला काम सुमिरन का, ध्यान का, भजन कीजिए, तब दूसरे काम में हाथ लगाइए। यह रोज नियम से करना चाहिए अपने परमार्थ के लिए, अपनी सुरत की रक्षा के लिए, अपनी सुरत को शब्द में लगाने के लिए।

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जिन-जिन ने अभ्यास की युक्ति ली है यानी उपदेश लिया है और उसका पालन करते हैं तो उनका उद्धार निश्चित है, यह भी समझ लीजिए। यह भी जान लीजिए कि अंत समय पर जबकि संसारी लुटते-पिटते जाते हैं तब सत्संगी की सुरत राधास्वामी दयाल के चरनों से लिपट कर ऊंचे स्थान पर जाती है और दो-तीन जन्म देकर उसका पूरा-पूरा उद्धार यानी सत्पुरुष राधास्वामी के चरनों में उसको बासा मिलता है जो महासुख का भंडार है, आनंद का भंडार है, जहां तृप्ति है, जहां शांति है, जहां किसी किस्म की बेचैनी नहीं है, तो जिस किसी को इस दुनिया और जहां की बेचैनी और तरह-तरह के प्रपंचों से बचना मंजूर हो उनको राधास्वामी मत ग्रहण करना चाहिए। इस मत में भक्ति पर जोर है, जबरदस्त जोर है। जिसको जीव का सच्चा कल्याण कराना है वह इस मत में शामिल हो। स्वामी जी महाराज आम लोगों के लिए इसे जारी नहीं करना चाहते थे लेकिन हजूर महाराज की निरंतर पुकार और फरियाद पर यह नायाब तोहफा जीवों को मिला है तो इसका फायदा उठाओ, सरन में आओ, चरनों में लिपट जाओ, बेड़ा पार है।