RSS के स्वयंसेवकों को देशभक्ति का नशा तो साहित्यकारों को सृजन का नशा
रवींद्र वर्मा के काव्य संग्रह ‘चंदन माटी मातृभूमि की’ का शानदार विमोचन
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Agra, Uttar Pradesh, Bharat, India, Agra news. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के वरिष्ठ पदाधिकारी श्याम किशोर ने कहा- संघ के स्वयंसेवक में देशभक्ति का नशा होता है। स्वयंसेवक भले ही सो रहा हो लेकिन देश की चिंता करता है। इसी तरह साहित्यकार को भी नशा होता है और वह नशा सृजन का होता है। जब राजा हार गए, सेना हार गई, विदेशी आक्रांता देश में आकर बैठ गए लेकिन हमारे साहित्यकारों ने स्व का जागरण रखा है। महाकवि कुंभनदास ने कहा था- ‘संतन को कहा सीकरी सो काम, आवत जात पनहिया टूटी, बिसरिय गयो हरि नाम।’ आज भी ऐसे साहित्यकार हैं। इसी श्रृंखला में रवींद्र वर्मा हैं।
श्री श्याम किशोर कई पुरस्कारों से सम्मानित रवींद्र वर्मा के 108 छंदों वाला काव्य संग्रह चंदन माटी मातृभूमि की के विमोचन समारोह को संबोधित कर रहे थे। यह कार्यक्रम सरस्वती शिशु मंदिर, पंचकुइयां पर हुआ। समारोह में गिने-चुने लोग थे लेकिन थे सबके सब गंभीर और अपनी विधा के माहिर।
उन्होंने कहा कि साहित्य से अधिक महत्वपूर्ण जनश्रुतियां होती हैं। साहित्यकारों ने अपने साहित्य में जनश्रुतियों को देना शुरू किया है जो समाज का दर्पण होती है। मैं ऐसे साहित्यकारों को संघ की ओर से साधुवाद देता हूँ। विमोचन शब्द सभी नैरेटिव को तोड़ने का काम करेगा।
उन्होंने कहा कि साहित्य लेखन ऐसी विधा है जब लिखने बैठते हैं तो हो सकता है आपके दिमाग में कोई विषय न आए, लेकिन पार्क में बैठे हैं, यात्रा कर रहे हैं तो साहित्यकार का दिमाग चलता है। साहित्यकार का काम कभी समाप्त नहीं होता है बल्कि 24 घंटे चलता है। कविता हृदय से निकलती है। सभी देश के साहित्यकारों का सम्मान है क्योंकि उन्होंने देश के स्व को जगाने का काम किया है। समाज के परिष्करण का जो काम 10 साहित्यकार कर सकते हैं वह राजनीति के 10 लाख लोग नहीं कर सकते हैं।
श्री श्याम किशोर ने कहा कि तुलसी हर समय राम को अपने हृदय में रखते थे और इसी तरह से साहित्यकारों को अपने हृदय में भारत देश को रखना चाहिए। जब ऐसा हो जाएगा तो भारत को कोई भी विश्व गुरु बनने से रोक नहीं सकता।
पुस्तक की समीक्षा करते हुए संपादक मधुकर चतुर्वेदी ने कहा- यह पुस्तक राष्ट्र प्रेम का छंदानुवाद है। उन्होंने 108 कविताओं में से 70 को रागमय बनाया। राग में गाकर भी सुनाया। उन्होंने कहा कि रवींद्र वर्मा तार सप्तक के कवि हैं।
सरस्वती विद्या मंदिर बृज प्रदेश प्रकाशन के निदेशक डॉ. रामसेवक ने समीक्षा करते हुए कहा- आज व्यंग्य और श्रृंगार की कम आवश्कता है। परिवार और विद्यालय से संस्कार का काम चलना चाहिए। कार्यशाला हों तो संवेदना प्रकट होगी। उन्होंने कहा कि चंदन माटी मातृभूमि एक ऐसी कृति है जिसमें अनेक छंदों का पावन संगम है। काव्य की इस पावन सुरसरि में डुबकी लगाने से मातृभूमि की प्रति श्रद्धा, विश्वास, भक्ति, सेवा, समर्पण, कर्तव्य बोध, त्याग अनुराग जैसे गुणों का हृदय में ज्वार उठने लगता है।
पुस्तक के कुछ छंद
वंदे मातरम जय घोष से
राष्ट्रभक्ति गुंजार चले।
कृपा करें मां वाणी ऐसी,
प्रखर शब्दिता धार चले।।
जाति-भाषा द्वेष हमको तोड़ता,
प्रेम में नित रास आकर बढ़ चलें।
धर्म सारे सिखाते हैं जोड़ना
एकता के गीत गाकर बढ़ चलें।।
सदा ही विद्वता गूंजी रही सिरमौर थीं नारी।
सुधी विद्योत्मा, गार्गी, सरीखी कीर्ति गढ़ना है।।
देश में राष्ट्रद्रोही पनप हैं रहे,
खोजकर मात दे राह पाते चलो।
जिंदगी जंग है जीत पाने बढ़ो,
लक्ष्य को भेद मंजिल गढ़ाते चलो।।
अध्यक्षता करते हुए शलभ भारती ने कविता सुनाई –
जो आकर के वसुंधरा पर अपना धर्म निभाते हैं,
वह आने वाली पीढ़ी को उदाहरण बन जाते हैं।
कालचक्र भी हो जाता है उनके आगे नतमस्तक,
जो वक्त वक्त पर वक्त को आइना दिखलाते हैं।
श्री उदयवीर सिंह सोलंकी ने कहा कि साहित्यकारों को रवींद्र वर्मा की तरह उद्देश्यपरक सृजन करना चाहिए। रवीन्द्र वर्मा ने सभी को धन्यवाद देते हुए अभिनन्दन किया। श्रीमती राज फौजदार भी मंच पर विरपाजमान रहीं। सरस संचालन अवधेश उपाध्याय ने किया।
पुस्तक विमोचन के बाद इसके बाद काव्य संध्या हुई। साहित्यकार बृज बिहारी लाल बिरजू, रामेन्द्र शर्मा ‘राम’, प्रभुदत्त उपाध्याय, दिनेश कुमार वर्मा ‘सारथी’, डॉ. सुषमा सिंह, श्रीमती राज फौजदार, राम अवतार शर्मा, रवींद्र वर्मा, अवधेश उपाध्याय ने काव्यपाठ किया। संचालन जितेन्द्र जिद्दी ने किया।
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