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राधास्वामी मत के गुरु दादाजी महाराज ने स्वार्थ और परमार्थ को लेकर कही बड़ी बात

NATIONAL REGIONAL RELIGION/ CULTURE

हूजरी भवन, पीपल मंडी, आगरा राधास्वामी (Hazuri Bhawan, Peepal mandi, Agra) का आदि केन्द्र है। यहीं पर राधास्वामी मत (Radha Soami Faith) के सभी गुरु विराजे हैं। राधास्वामी मत के वर्तमान आचार्य और अधिष्ठाता दादाजी महाराज (प्रोफेसर अगम प्रसाद माथुर) हैं जो आगरा विश्वविद्यालय (Agra university) के दो बार कुलपति (Vice chancellor of Agra university)  रहे हैं। हजूरी भवन (Hazuri Bhawan, Peepal Mandi, Agra) में हर वक्त राधास्वामी (Radha Soami)  नाम की गूंज होती रहती है। दिन में जो बार अखंड सत्संग होता है। दादाजी महाराज ने राधास्वामी मत (RadhaSomai faith) के अनुयायियों का मार्गदर्शन करने के लिए पूरे देश में भ्रमण किया। इसी क्रम में 30 मार्च, 2000 को मै. प्रभाती लाल एंड संस, हांसी, जिला हिसार (हरियाणा, भारत) में सतसंग के दौरान दादाजी महाराज (Dadaji maharaj Prof Agam Prasad Mathur) ने कहा- संतमत में समता यानी समानता का सिद्धांत अपनाया जाता है। मालिक की भक्ति चाहे वह कोई भी हो- राजा, रंक, ब्राह्मण, क्षत्रिय या शूद्र अथवा किसी भी जाति का हो कर सकता है।

बेखटके इस मत में सम्मिलित होइए
स्वतंत्रता और समता दोनों हमारे जन्म सिद्ध अधिकार हैं। आप संतमत को मानने के लिए स्वतंत्र हैं। किसी भी प्रकार की कोई रुकावट और बाधा आपके सामने नहीं है। मैं आज यहां उन सब लोगों से जिनका सामाजिक शोषण हो रहा है और अब स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद जिनके अंदर क्षमता आई है और उन्होंने कुछ कर दिखाया है, उनसे कहना चाहता हूं कि आधुनिक संतमत यानी राधास्वामी मत में शामिल हो जाएं और स्वार्थ एवं परमार्थ दोनों बनवावें। राधास्वामी मत समानता के सिद्धांत यानी प्रिंसिपल ऑफ इक्वेलिटी को पूर्ण रूप से मानता है। इसलिए बेधड़क, बेखटके इस मत में सम्मिलित होइए।

परमार्थ करोगे तो स्वार्थ स्वयमेव बनेगा

मालिक राधास्वामी दयाल हजूर महाराज से यह प्रार्थना है कि आप सब सत्संगियों का घर और परिवार फलता फूलता रहे। दीन में बढ़े और दुनिया में भी तरक्की करे लेकिन यदि परमार्थ की मुख्यता रखोगे तो स्वार्थ भी बनेगा। कोई आदमी खेत में जाकर भूसा नहीं बोया करता, अनाज बोता है और फसल कटने के बाद जितना अनाज मिलता है उससे कई गुना भूसा पाता है। इसी तरह से जीवन में भी परमार्थ की मुख्यता रखनी चाहिए। स्वार्थ तो भूसा है। वह तो साथ में मिलेगा ही।

संतमत को मनाने के लिए स्वतंत्र

आज समय और समाज बदल रहा है स्वतंत्रता और समता दोनों हमारे जन्म सिद्ध अधिकार हैं। इसलिए अपने विचारों को प्रकट करने और अपने मत को मानने की स्वतंत्रता है। लेकिन जब स्वतंत्रता का प्रयोग किया जाए तो बहुत देखभाल और सोच समझकर किया जाए। आप संतमत को मनाने के लिए स्वतंत्र हैं। किसी भी प्रकार की कोई रुकावट और बाधा आपके सामने नहीं है। संतमत में समता यानी समानता का सिद्धांत अपनाया जाता है। मालिक की भक्ति चाहे वह कोई भी हो- राजा, रंक, ब्राह्मण, क्षत्रिय या शूद्र अथवा किसी भी जाति का हो कर सकता है-

राधास्वामी जात पात रखें री।
राधास्वामी हिन्दू न तुर्क गहें री।।

छोड़  दो  मन से  सब  उत्पात

रखो नहीं मन में जात और पांत।। (क्रमशः)