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जब राधास्वामी मत के गुरु दादाजी महाराज के पहुंचने से उदयपुर में मची हलचल

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राधास्वामी मत के वर्तमान आचार्य और अधिष्ठाता दादाजी महाराज ने कई धर्मों के बारे में विस्तार से दी जानकारी

हजूरी भवन, पीपलमंडी, आगरा राधास्वामी मत (Hazuri Bhawan, Peepal mandi, Agra) का आदि केन्द्र है। यहीं पर राधास्वामी मत (Radha Soami Faith) के सभी गुरु विराजे हैं। राधास्वामी मत के वर्तमान आचार्य और अधिष्ठाता दादाजी महाराज (प्रोफेसर अगम प्रसाद माथुर) हैं, जो आगरा विश्वविद्यालय )  Agra University)के दो बार कुलपति रहे हैं। हजूरी भवन (Hazuri Bhawan) में हर वक्त राधास्वामी नाम की गूंज होती रहती है। दिन में जो बार अखंड सत्संग होता है। दादाजी महाराज ने राधास्वामी मत के अनुयायियों का मार्गदर्शन करने के लिए पूरे देश में भ्रमण किया। इसी क्रम में 21 अक्टूबर, 1999 को होटल आनंदभवन परिसर, उदयपुर (राजस्थान) में सतसंग के दौरान दादाजी महाराज (Dadaji maharaj) ने बताया कि यहां पर वक्त के गुरु की महिमा बहुत भारी है।

राधास्वामी मत मैं धारा नीका।

राधास्वामी मत है सबका टीका।।

एक मत राधास्वामी ही ऐसा है जो सदैव मुक्ति की बात करता है यानी आप स्वयं अपनी मुक्ति होते हुए देख सकते हैं। राधास्वामी मत जिन्दा मत है। यहां पर वक्त के गुरु की महिमा बहुत भारी है। हमारी सारी भक्ति, आधार, आसरा और सहारा एक उस व्यक्तित्व के ऊपर निर्भर करता है दो स्वयं मालिक से मिला हुआ है।

राधास्वामी मत के अलावा जितने भी मत आज तक दुनिया में जारी हुए हैं, उनमें जो सार बताया जाता है वह मुख्यतः जगत में रहने और यहां की ही सुख-सुविधा प्राप्त करने का एक तरीका है। आप ईसाई मत को ही लें तो उसमें आंतरिक साधना की कोई बात नहीं की जाती है। ज्यादा से ज्यादा अच्छे काम करना बताया जाता है जैसे दानशीलता, सबके साथ न्याय और समानता का व्यवहार और गरीबों की मदद करना। चर्च में जाते हैं तो वह अपने गुनाहों की खुदा से माफी मांगते है और दूसरों के लिए या अपने लिए अधिक सुखों की प्रार्थना करते हैं। लेकिन ऐसा कोई अंतरमुखी साधन नहीं बताते हैं जिससे आत्मा यानी सुरत का निर्वाण हो सके। आपने अच्छा काम किया या बुरा किया, इसका निर्णय तो तब लिया जाएगा जब आखीर के दिन रूहें कब्र से उठेंगी।

प्रायः इसी तरह की बात इस्लाम में धर्म में भी हैं। वहां पर भी कोई अंतरमुख साधना नहीं है। ज्यादातर बाहरी नमाज, रोजे या दूसरी बात बताई जाती है। लेकिन मुसलमानों में उनकी बात और है जिन्होंने कि शगले-आवाज किया है और अंतर में भारी गति प्राप्त की है। अजमेर के शेख मुईनुद्दीन चिश्ती अच्छे अभ्यासी हुए हैं और उन्होंने होनहार साध की गति प्राप्त की। वहां जाते के साथ ही मालूम पड़ता है कि कुछ झंकृत ध्वनि है।

जहां तक सनातन धर्म की बात है तो भारतवर्ष की विशेषता यह है कि यहां हर मामले में प्रयोग हुए हैं और प्रयोग के बाद निष्कर्ष निकाला है। कोई ऐसा प्रश्न नहीं है जिसके बारे में सोचा न गया हो जैसे ये जीव कौन है, जन्म काया है, मरण क्या है और मरने के बाद फिर जन्म लेता है आदि। ऋषियों, तपियों, योगी और योगेश्वर ज्ञानियों ने बहुत दिन तक तप और योग संजम किए और प्राणायाम के वसीले, दृष्टि साधना से या मुद्रा आदि से और पांतजली शास्त्र से कुछ अंतरमुख उपासना की लेकिन फिर भी जिस समय तक वे मौजूद थे तब तक वह प्रयोग चले। अब प्रयोगों के नाम पर सिर्फ एक रूढ़िवादी परंपरा रह गई है। (क्रमशः)

(अमृत बचन राधास्वामी तीसरा भाग आध्यात्मिक परिभ्रमण विशेषांक से साभार)