आप अपने आपको पंजाबी कहते रहिए, पर मैं हूं पंजाबी, मैं हूं सच्चा सिख
हूजरी भवन, पीपल मंडी, आगरा राधास्वामी (Hazuri Bhawan, Peepal mandi, Agra) का आदि केन्द्र है। यहीं पर राधास्वामी मत (Radha Soami Faith) के सभी गुरु विराजे हैं। राधास्वामी मत के वर्तमान आचार्य (Radhasoami guru Dadaji maharaj) और अधिष्ठाता दादाजी महाराज (प्रोफेसर अगम प्रसाद माथुर) हैं जो आगरा विश्वविद्यालय (Agra university) के दो बार कुलपति (Vice chancellor of Agra university) रहे हैं। हजूरी भवन (Hazuri Bhawan, Peepal Mandi, Agra) में हर वक्त राधास्वामी (Radha Soami) नाम की गूंज होती रहती है। दिन में जो बार अखंड सत्संग होता है। दादाजी महाराज ने राधास्वामी मत (RadhaSomai faith) के अनुयायियों का मार्गदर्शन करने के लिए पूरे देश में भ्रमण किया। इसी क्रम में 2 अप्रैल 2000 को ली ग्रांड पैलेस, लुधियाना, (पंजाब भारत) में सतसंग के दौरान दादाजी महाराज (Dadaji maharaj Prof Agam Prasad Mathur) ने कहा- चार विशेषताओं को याद रखो- एक सतगुरु और दूसरा सत्संग, तीसरा सतनाम यानी राधास्वामी नाम और चौथा सत अनुराग यानी उनके चरणों में प्रीत और प्रतीत को बढ़ाना और उनसे प्रेम की दात पाना।
छह महीने में परिवर्तन
जिसको सुरक्षा कवच चाहिए उसको टेक छोड़नी पड़ेगी। यह पांच नाम की टेक छोड़ दो और राधास्वामी नाम का सहारा ले लो। राधास्वामी नाम का सुमिरन करो और देखो अगर छह महीने में अपने आप में परिवर्तन होता हुआ ना दिखे तब कहना।
राधास्वामी नाम का सुमिरन चालू कर दो
मैं तो बहुत दूर नहीं हूं। उन पांच नदियों से तो मेरी जाती नजदीकी है। यहां आने के बाद मुझमें प्रेम की अजीब मस्ती आती है। मैं पंजाबी जानूं या ना जानूं लेकिन हर दिल की धड़कन को पहचानता हूं। इसमें पंजाब की महक और लहर दौड़ रही है। आप न उस महक से परिचित हैं न लहक से। आप अपने आपको पंजाबी कहते रहिए, पर मैं हूं पंजाबी, मैं हूं सच्चा सिख। राधास्वामी दयाल को डंके की चोट पर मानता हूं और आज यहां डंके की चोट पर बात कहने के लिए आया हूं। अगर अंतर में डंका बजाना चाहते हो और डंका सुनना चाहते हो तो राधास्वामी नाम का सुमिरन चालू कर दो-
मेल करो निजनाम गुसइयां।
मेल करो निज नाम ।।
गुरु के चरण धार रहु हिय में ।
खुले सेत और श्याम ।
उन चार विशेषताओं को याद रखो
वह सतनाम, वह निज नाम राधास्वामी है। इसलिए राधास्वामी से मेल करना है। जो मूल बात है वह राधास्वामी नाम को दृढ़ता से पकड़ने की है। इसलिए उन चार विशेषताओं को याद रखो- एक सतगुरु और दूसरा सत्संग, तीसरा सतनाम यानी राधास्वामी नाम और चौथा सत अनुराग यानी उनके चरणों में प्रीत और प्रतीत को बढ़ाना और उनसे प्रेम की दात पाना। तो अब क्या चाहिए। देख कर चैन आए तो देख कर चैन कर लो और बात मानकर चैन आए तो बात मान कर चैन कर लो। सारी बेचैनी और धड़कन मिट जाएगी। चैन और सुख आ जाएगा।
गुरु प्यारे करें आज जगत उद्धार ।।
जीवन को अति दुखी देखकर ।
उनकी दया जा का वार न पार।।
नर स्वरूप धर जग में आए ।
भेद सुनाया घर का सार ।।
मैं सरस हूं
जो थोड़ी सी प्रीत प्रतीत राधास्वामी दयाल के चरणों में लाएगा और अपने गुरु के साथ चलेगा उसका उद्धार निश्चित है, लेकिन निगुरे को दखल नहीं है। इसलिए घबराओ, मत निराश मत हो। मैं घबराहट पैदा करने नहीं, घबराहट दूर करने आया हूं। अशांत करने नहीं, शांत करने आया हूं। मैं बड़ा सरस हैं और आपको भी सरस बनाने आया हूं। मैंने रसीले देखे हैं इसलिए मैं उन रसीलों से मिलाना चाहता हूं ताकि आप भी रसीले हो जाएं यानी रसीले का संग देना चाहता हूं और रंगीले का रंग देना चाहता हूं। सतगुरु अंतर्यामी है और बस एक ही बात याद रखनी चाहिए कि-
अनामी प्यारे राधास्वामी ।।
गत मत तुहरी कोई नहिं जाने ।
घट घट अंतरजामी।।
देश तुम्हारा सबसे न्यारा ।
नहीं वहां कृष्ण न रामी।।
(लुधियाना सतसंग समाप्त)
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