guru gavind singh

Motivational story दशम पातशाही श्री गुरु गोबिन्द सिंह और कर्मफल

PRESS RELEASE

एक बार दशम पातशाही श्री गुरु गोबिन्द सिंह जी का दरबार सजा हुआ था। कर्म-फल के प्रसंग पर पावन वचन हो रहे थे कि जिसकी जो प्रारब्ध है उसे वही प्राप्त होता है कम या अधिक किसी को प्राप्त नहीं होता क्योंकि अपने किये हुये कर्मों का फल जीव को भुगतना ही पड़ता है।

वचनों के पश्चात मौज उठी कि जिस किसी को जो वस्तु की आवश्यकता हो वह निःसंकोच होकर माँग सकता है उसे हम आज पूरा करेंगे।

एक श्रद्धालु ने हाथ जोड़ कर प्रार्थना की कि प्रभु मैं बहुत गरीब हूँ। मेरी तमन्ना है कि मेरे पास बहुत सा धन हो जिससे मेरा गुज़ारा भी चल सके और साधु सन्तों की सेवा भी कर सकूँ । उसकी भावना को देखकर श्री गुरु गोबिन्द सिंह जी ने शुभ आशीर्वाद दिया कि तुझे लखपति बनाया और ऐसे ही दूसरे गुरुमुखों ने भी मांगा।

उसी गुरुमुख मण्डली में सत्संग में एक फकीर शाह रायबुलारदीन भी बैठे थे। उसकी उत्सुकता को देखकर अन्तर्यामी गुरुदेव ने पूछा- रायबुलारदीन आपको भी कुछ आवश्यकता हो तो निसन्देह निसंकोच होकर कहो, उसने हाथ जोड़कर खड़े होकर प्रार्थना की कि प्रभु मुझे तो किसी भी सांसारिक वस्तु की कामना नहीं है। परन्तु मेरे मन में एक सन्देह उत्पन्न हो गया है। अगर आपकी कृपा हो तो मेरा सन्देह दूर कर दें !

प्रार्थना है कि प्रभु अभी-अभी आपने वचन फरमाये हैं कि प्रारब्ध से कम या अधिक किसी को नहीं मिलता अपने कर्मों का फल प्रत्येक जीव को भुगतना ही पड़ता है तो मेरे मन में सन्देह हुआ कि अभी जिसे आपने लखपति होने का आशीर्वाद दिया है, जब इनकी तकदीर में नहीं है तो आपने कहां से दे दिये ?

गुरु गोबिन्द सिंह जी ने सेवक द्वारा एक मोहर वाली स्याही मँगवाई और रायबुलारदीन से फरमाया कि बताओ इस के अक्षर उल्टे हैं कि सीधे ?

उसने उत्तर दिया कि उल्टे हैं सच्चे पादशाह, फिर स्याही में डुबो कर कोरे कागज़ पर मोहर छाप दी अब पूछा बताओ अक्षर उल्टे हुये है कि सीधे।

उत्तर दिया कि महाराज अब सीधे हो गये हैं।

वचन हुये कि तुम्हारे प्रश्न का तुम्हें उत्तर दे दिया गया है, उसने विनय की भगवन मेरी समझ में कुछ नहीं आया।

गुरु गोबिन्द सिंह जी ने फरमाया जिस प्रकार छाप के अक्षर उल्टे थे लेकिन स्याही लगाने से छापने पर वह सीधे हो गये हैं। इसी तरह ही जिस जीव के भाग्य उल्टे हों और अगर उसके मस्तक पर सन्त सत्गुरु के चरण कमल की छाप लग जाये तो उसके भाग्य सीधे हो जाते हैं।

सीख

सन्त महापुरुषों की शरण में आने से जीव की किस्मत पल्टा खा जाती है। कहते हैं ब्रह्मा जी ने चार वेद रचे इसके बाद जो स्याही बच गई वे उसे लेकर भगवान के पास गये उनसे प्रार्थना की कि इस स्याही का क्या करना है, भगवान ने कहा इस स्याही को ले जाकर सन्तों के हवाले कर दो उनको अधिकार है कि वे लिखें या मिटा दें या जिस की किस्मत में जो लिखना चाहें लिख दें।